बाबा उमाकान्त महाराज ने समझाया प्रार्थना,सतसंग एवम नामदान का महत्व
उज्जैन (म.प्र) : इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले दुःखहरता बाबा उमाकान्त महाराज ने 19 नवम्बर 2024 को जिला सतना, म.प्र. में प्रातः काल की बेला में दिए अपने सतसंग में प्रार्थना, नामदान एवम सतसंग के महत्व को समझाया। बाबाजी ने कहा कि जब लोगों को नामदान के फायदे समझ में आएंगे तो सैकड़ों कोस से दौड़कर इस अनमोल दौलत को लेने के लिए आएंगे। पूज्य महाराज जी ने सतसंग की महिमा को बताते हुए कहा कि सतसंग सुनने से कर्मों की मैल धुल जाती है और हर तरह की जानकारी हो जाती है। साथ ही प्रार्थना द्वारा प्रभु को याद करने और उनकी मदद लेने की युक्ति को बाबाजी ने समझाया।
एक समय ऐसा आएगा कि सैकड़ों कोस से दौड़ करके लोग नामदान लेने के लिए आयेंगे।
पहले लोग बहुत दूर-दूर से पैदल चल कर आते थे। चार-चार, पांच-पांच महीने लगते थे नामदान लेने के लिए। तब सवारी के साधन इतने ज्यादा नहीं थे। अब तो सवारी के सब साधन हो गये। अब तो बहुत दूर की दूरी भी नजदीक हो गई और जब लोग नाम के महत्व को समझ जाते हैं, नाम के फायदे लोगोें की समझ में आ जाते हैं तब तो दौड़ करके पहुंचते हैं। एक समय ऐसा आएगा कि लोग सौ-सौ, दो-दो सौ, चार सौ कोस से भी दौड़ करके नामदान लेने के लिए आएंगे। पता लगाएंगे कि कहां गए नामदान देने वाले। जब ये अध्यात्म की बेल बढ़ जाएगी, फल देने के लायक हो जाएगी, तब देखना।
सतसंग सुनने से कर्मों की मैल साफ होने लगती है।
जो जान-अनजान में आपके कर्म बन गए हैं, उनकी मैलाई सतसंग वचन सुनने से साफ होगी। सतसंग वचन सुनने से बहुत लोगों में बदलाव आ गया। लंकिनी (जो लंका में रहने वाली एक राक्षसी थी) ने सतसंग सुन करके याद कर लिया था और उसकी जान बच गई थी। बहुत सारी बातें आपको सतसंगों में बताई गई हैं। सतसंग से बहुत फायदा होता है। इसलिए सतसंग तो छोड़ना ही नहीं चाहिए। जब पहले के समय में लोग सतसंग सुनने की आदत बनाए हुए थे, पंद्रह दिन में, महीने में एक बार सुनने के लिए आते-जाते रहते थे, तब हर चीज की बराबर जानकारी रहती थी। तब खाने और लैट्रिन करने में ही आदमी का समय नहीं बीतता था। आज के समय में सतसंग की सभी लोगों को बहुत जरुरत है, इसलिए सबको सतसंग बराबर सुनते रहना चाहिए।