Doctor’s day special :- ईश्वर के समान पूजे जाने वाले डॉक्टरों के सम्मान में आज के दिन हर साल मनाया जाता है डॉक्टर्स डे…पढ़िए 2 नौजवान डॉक्टर भाइयों की कहानियां जिनका करियर कोविड से शुरू हुआ…..

नया भारत डेस्क :- डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय की याद में आज हमारा देश डॉक्टर्स डे मना रहा है। एक जुलाई, 1882 को जन्मे डॉ. रॉय का निधन 1962 में एक जुलाई को ही हुआ था। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री भी।

डॉक्टरी पढ़ाने वाले बड़े प्रोफेसर होने के बावजूद नर्स का भी काम कर लेने वाले डॉ. रॉय को याद करने का शायद इससे बेहतर समय कोई और नहीं हो सकता। कोरोना के इस भीषण दौर ने साबित कर दिया है कि ज्यादातर डॉक्टर सच में किसी भगवान से कम नहीं।


तो आइये बेहद चुनौती भरे इस दौर में दो ऐसे नौजवान डॉक्टरों भाइयों की कहानी जानते हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत कोरोना  से की। इनका पहला ही एक्सपीरियंस ऐसा था कि बाकी दुनिया के लिए वह किसी सबक से कम नहीं...

डॉक्टर ईशान दुबे :-

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डॉक्टर हमेशा से ऐसे थे, लेकिन लोगों ने अब उन्हें पहचाना शुरू किया है'


डॉ ईशान दुबे कहते  हैं, "आज लोगों ने हमें कोरोना की वजह से वॉरियर्स बना दिया है, लेकिन हम तो कई सालों से ऐसे ही काम करते आ रहे हैं। हम कुछ नया नहीं कर रहे हैं। बस बीमारियां और मरीज बदलते रहते हैं, लेकिन डॉक्टर हमेशा इसी तरह लगे रहते हैं। आज कोरोना है, कल कोई और बीमारी होगी। फर्क सिर्फ इतना है कि अब लोगों ने हमें रिकग्नाइज करना शुरू किया है। डॉक्टर जो करते हैं ये उनका फर्ज है और वो हमेशा आपके लिए ऐसे ही सब कुछ करते रहेंगे। लेकिन आपको भी डॉक्टर पर भरोसा करना होगा। ये समझना होगा कि हम डॉक्टर हैं, भगवान नहीं।

मरीजों की हालत देख अपनी परेशानी भूल जाते थे’

डॉक्टर ईशान दुबे बताते हैं कि दिन में 6 घंटे और रात में 12 घंटे तक PPE किट पहने रहने की वजह से वॉशरूम तक नहीं जा पाते थे। पानी की कमी से कमजोरी लगने लगती और दिमाग कहता था कि अब नहीं हो पाएगा, लेकिन जब मरीजों का चेहरा देखते थे, तो लगता था कि इन्हें हमारी जरूरत है, यह हमारा फर्ज है।

डॉक्टर शुभम दुबे :-

“कोरोना ने डॉक्टर के पेशे को लेकर मेरी सोच में भी काफी बदलाव किया है। इससे पहले पढ़ाई तो की मगर इतना सब कुछ देखा नहीं था। जिस हिसाब से लोगों की परेशानी देखी। उनकी डॉक्टरों से उम्मीदें देखीं, मुझे लगता है कि मैं अब मरीजों के ज्यादा करीब आ गया हूं।”
 

"मैं सभी साथी डॉक्टरों से अपील करूंगा कि वो मरीजों से ज्यादा से बात करें। उन्हें सहारा दें। दवाएं उन पर जितना असर करती हैं उतना ही असर इस बात का होता है कि डॉक्टर क्या कह रहे हैं। डॉक्टर कैसे बात कर रहे हैं। मैं भी अपने मरीजों से बातचीत बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूं। ताकि उनमें बीमारी के खिलाफ भरोसा जाग सके।"

 

एक जुलाई चिकित्सक दिवस फिर वह भी कोविड के समय पहले तो मेरा सभी चिकित्सको को चिकित्सक दिवस पर बधाई वहीं आप लोगों के स्तुतय कार्य पर नमन ।  वहीं उन चिकित्सको को जिन्होंने अपने कर्तव्यो पर चलकर अपनी जान तक गंवा दी।

  ऐसे पूरे देश मे बहुत चिकित्सक है जिन्होंने अपने जान की फिक्र तक नहीं की । इसलिए हर जगह के चिकित्सक देवदूत बनकर आए । यह ऐसी महामारी जहां कुछ परिजनों ने भी अपना पल्ला झाड़ लिया पर चिकित्सक बिरादरी ही थी गंभीरता के साथ खडे थे । चलो पर आज जो माहौल है वह काफी ही संवेदनशील है । अब न चिकित्सक का मरीजो से वह रिश्ता  नहीं रहा।  

आज यह मानने मे कोई शक नहीं होना चाहिए कि अब चिकित्सक व मरीज का संबंध सिर्फ उपभोक्ता दुकानदार  का बनकर रह गया है ।  इसलिए न मरीजो का चिकित्सकों पर वह विश्वास रह गया है जो अभी तक आज तक रहता था। वहीं चिकित्सको को भी वैसे मरीज नहीं मिल रहे हैं जो पूर्णतः उस पर विश्वास करते है ।संबंधो मे यह हृआस का कारण दोनों तरफ से है । आज वैसे इलाज महंगा हो गया है।  जहां चिकित्सक भी चाहकर भी वह मदद करने मे असमर्थ पाता है । 

उसको अपने नर्सिंग होम के मैंनटेनेंस के वो खर्च ही उसको वह भलाई के काम करने मे बाधक बनता है । दूसरे तरफ भी आम लोग भी चिकित्सक के ज्ञान से कम परिपूर्ण  नहीं रहते है । वह चिकित्सको को ही सलाह देने से कम नहीं चूकते।  मैने देखा है प्रेकटिस मे महसूस भी किया है जो चिकित्सक इंवेसटिगेशन नहीं कराते उन्हे वह ठीक ठाक भी नहीं लगते । 

जब तक यह लोग सेल्फ ही जांच करवा कर चिकित्सक के पास पहुचते है  । विशेषकर गांव के लोगों मे ही पहले एक्सरे अब सोनोग्राफी कराने का बहुत शौक रहता है भले उन्हे कुछ न होता हो । वहीं दूसरा आम शौक ताकत के लिए ग्लूकोज चढाने का व ताकत के इंजेक्शन का रहता है । 

वहीं विशेषकर महिलाओं मे भी गर्भाशय के ऑपरेशन की रूचि क्यो है यह आज तक समझ से परे है। यही कारण है कि पूरी चिकित्सका ही मरीज ही तय करने लगे है । इसलिए नर्सिंग होम भी पूरी तरह से पंच सितारा ही बनने लगे है ।  जहां थोड़ी भी कमी व असुविधा न मरीजो को न परिजनों को नागवार गुजरती है । चिकित्सक कितना भी अच्छा हो लोग इंफ्रासटरकचर देखकर ही   लोग चिकित्सको का पैमाना तय करने लगे है  ।  

विशेषकर आजकल तो जहां जनरल प्रैक्टिसनर को भी फैमिली चिकित्सक को भी लोग नहीं पूछते थोड़ी भी समस्या हो विशेषज्ञ स्वंय तय कर लेते है । अभी तो जो कोरोना से इतना प्रभावित हुआ है वह तो सिर्फ सेल्फ मेडिकेशन भी एक कारण है। अभी सोशल मीडिया में स्टेरॉयड के उपर बहुत कोरोना मे इसके रोल और दुष्परिणाम पर बहुत चर्चा हुई।  पर कुछ सज्जनो ने कोरोना मे इसके उपयोग की सलाह भी दे डाली। 

इसके बाद भी अगर कम खर्च पर चिकित्सका आम लोगों को मुहैया कराना है तो चिकित्सक दिवस पर उसकी चर्चा लाजमी है । कम ब्याज पर लोन और जमीन पर रियायत किसी भी चिकित्सका व्यवसाय को काफी राहत पहुंचा सकता है  । 

वहीं कुछ कम बोझ के चलते चिकित्सक भी समाज के लिए कुछ करने के लिए आगे बढने की सोच सकते है । थोड़ा समय मे  भी बदलाव आया है पहले चिकित्सा शिक्षा शासकीय हुआ करती थी जिसके कारण बहुत  कम खर्च मे ही चिकित्सक बन जाया करते थे । 

फिर सपने भी छोटे हुआ करते थे।  घर और एक गाडी मे ही समाज मे अलग दिखने लगते थे । पर यह पहुंच भी चिकित्सक के बालों को सफेद होने तक ही पूरी हो पाती थी।  अब वहीं यह शिक्षा उधोग के पौधे रोपण जैसे हो गई है अगर लोन लेकर कहीं करने की कोई सोचता है तो वह बंदा पहले इस ॠण से बाहर होने की पहले सोचता है । वहीं कुछ लोगों के लिए यह व्यवसाय से ज्यादा भी नहीं है।   खैर इसके बाद भी चिकित्सक समर्पित है अपवाद कहीं भी पाये जा सकता है।  यही कारण है कि पीपीई किट पहनकर मौत के कुएं मे कूदने के जोखिम जैसे काम कर यह इन लोगों ने दिखा दिया कि यह इनका दूसरे पक्ष को समाज नहीं नकार सकता ।  

यह इतना भी कटु सत्य है कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है।  बस यही इनके साथ हो रहा है । गेंहू के साथ घुन भी दशकों से पिसा रहा है।  पता नहीं यह लोग वह विश्वास फिर से ला पाऐंगे कि नहीं जो मेरे को मुश्किल सा लगता है । आज तो स्थिति यह है कि अपनी सुरक्षा के लिए अब इन्हे शासकीय नीतियों की आवश्यकता आन पडीं है । 

वहीं अब लोगो का इंट्रेस्ट नान क्लिनिकल सबजेक्ट पर ज्यादा हो रहा है जिससे लोगों का सामना प्रत्यक्ष न करना पडे । वहीं इतने लंबे उबाऊ कैरियर के बदले कम समय मे ज्यादा आर्थिक लाभ वाले शिक्षा का कैरियर ज्यादा लोग पसंद कर रहे है ।  जिनके माता पिता चिकित्सक है वह अपने बच्चो को दूसरे तरफ ही जाने की सलाह देते है । पर कुछ लोगों की व्यवसायिक मजबूरी है कि लाने का विकल्प बचता है । 

  मेरा उन चिकित्सको को नमन है  जिन लोगों ने इस महामारी मे अपने जान तक की आहुति दे दी ।  इस लेख मे मैं उन सरकार को नेताओं को भी धिक्कारता हू जिन्होने इस मौतों मे भी राजनीतिक फायदा देखकर अनुदान भी धर्म देखकर  दिया है । वहीं इनके संगठन की खामोशी भी इस मुद्दे पर इनके अपने ही साथियों के साथ हो रहे अन्याय पर प्रश्न चिन्ह खडा करती है कि क्यो नही आवाज उठाई गई जब एक विशेष के लिए तो क्या नहीं कर डाला गया। 

चिकित्सक दिवस औपचारिकता बनकर न रह जाए कुछ ऐसा होना चाहिए कि लोगो से संवाद कायम होने की आवश्यकता है।  वहीं यह दिवस बडे शहरों व बड़े चिकित्सक तक ही नहीं रहना चाहिए जो हो भी रहा है यह दिवस ग्रामीण और पिछडे इलाकों के चिकित्सक तक भी इसकी छाया पहुचने की आवश्यकता है जहां चिकित्सक सिर्फ अभिवादन तक के लिए  तरस जाते है ।  चिकित्सक दिवस की अशेष शुभकामनायें  ।
 



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