NBL, 28/12/2024, Lokeshwar Prasad Verma Raipur CG: The real Aghori Sadhus, Saints and Naga Sadhus of Sanatan Dharma are older than many religions of the world. They cannot change their clothes, food or anything. This is the real proof of Sanatan Dharma, which cannot be erased. पढ़े विस्तार से..... दुनिया बहुत बड़ी है और दुनिया में कई धर्म हैं, लेकिन एक धर्म दुनिया में बहुत पुराना है और वह है सनातन धर्म। इसके कठोर अनुशासन में रहने वाले असली सनातनियों की एक भी अनुशासन का पालन करना दुनिया के अन्य धर्मों के धार्मिक गुरुओं के लिए बहुत कठिन है। वह है सनातन धर्म के असली संतों और सनातन धर्म के नागाओं की कठिन तपस्या और उनका पहनावा और उनका खान-पान बहुत रहस्यमय है जिसका पालन दुनिया के किसी भी धर्म के लोग और उनके धार्मिक गुरु नहीं कर सकते। सनातन धर्म के इन असली अघोरी साधु और इन नागाओं की परंपराएं और तपस्या इतनी कठिन हैंकि भारत आने वाले विदेशी पर्यटक इन संतों और नागाओं की बहादुरी देखकर हैरान रह जाते हैं। सदियों पहले अंग्रेजों और मुस्लिम मुगलों ने सनातन धर्म के इन संतों और नागाओं की परीक्षा लेने की कोशिश की थी लेकिन इसके विपरीत इन विदेशी आक्रमणकारियों को नुकसान उठाना पड़ा और वे इन अघोरी साधु संतों और नागाओं से उलझने से डरते थे। क्योंकि वो विदेशी लुटेरा भारत की सम्पत्ति लूटने आया था इसीलिए ये विदेशी आक्रमणकारी अंग्रेज और मुस्लिम मुगल चुपचाप भारत के सनातनी धर्म के हिंदूओ की सम्पत्ति लूटते रहे इन सनातनी नागा योद्धाओं को परेशान किए बिना क्योंकि वह एकांत और सांसारिक सुखों से दूर जंगलों और पहाड़ों में तपस्या कर रहे अघोरी साधु-संतों और नागाओं को देखकर उन्हें नहीं भड़काया। अगर भड़काते तो ये विदेशी आक्रमणकारी अंग्रेज और मुस्लिम मुगल भारत को लूटने की हिम्मत कैसे कर पाते। सनातनी धर्म के इन नागा साधु चीर फाड़ कर रख देते, नागा साधु इन विदेशी आक्रमणकारियों के लिए बहुत खतरनाक होते। क्योंकि यह नागा साधु योद्धा होते है।
सदियों से ईसाई मिशनरियों और मुसलमानों द्वारा इन सनातनी नागा और अघोरी साधुओं के बारे में भारतीय हिंदुओं में भ्रम पैदा करने के लिए अनेक षड्यंत्र रचे गए और धर्मांतरण का खेल खेला गया, अनेक सनातनी हिंदुओं ने ईसाई मिशनरियों के जाल में फंसकर ईसाई धर्म अपना लिया और इसी तरह उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया। भारत में अधिकांश ईसाई और मुसलमान सनातनी हिंदू धर्म से ही संबंध रखते हैं। आज इनके माध्यम से उत्पात मचाने का घिनौना काम इन दोनों धर्मों के असली ईसाई और मुसलमानों द्वारा किया जा रहा है। और भारत में राजनीति भी इन धर्मांतरित ईसाइयों और मुसलमानों पर उसी तरह से राज कर रही है। पहले ये ईसाई मिशनरी सनातनी हिंदुओं के तीर्थ स्थानों पर जाकर खुलेआम अपने ईसाई धर्म में शामिल होने के निमंत्रण पत्र बांटते थे और सनातनी धर्म के अघोरी और नागा साधु संतों का दुष्प्रचार और निंदा करते थे। मूर्ति पूजा का घोर विरोध करते थे और अपने ईसाई धर्म के नकली सार्थक प्रमाण देकर सनातनी हिंदुओं को गुमराह करते थे और इसी कांग्रेस सरकार ने भारत को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित कर दिया और देश के कोई भी व्यक्ति अन्य धर्म अपनाने की आजादी दे दी। कांग्रेस की इस आजादी से ईसाई मिशनरियों और मुसलमानों को बल मिला और देश में धर्मांतरण का खेल जोरों पर शुरू हो गया और सनातनी हिंदू धर्म के देवी-देवताओं को काल्पनिक बताकर और इस सनातनी धर्म को ढोंग का धर्म बताकर कई सनातनी हिंदुओं का धर्मांतरण कर दिया गया। नहीं तो आज भारत में सनातनी हिंदुओं की जनसंख्या 100 करोड़ होती। 140 करोड़ में। कांग्रेस ने सनातनी हिंदुओं के साथ इतना घोर अन्याय किया भारत को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित करके।
नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं। त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे को दर्शाते हैं। ये साधु प्रायः कुम्भ में दिखायी देते हैं। नागा साधुओं को लेकर कुंभ मेले में बड़ी जिज्ञासा और कौतुहल रहता है, खासकर विदेशी पर्यटकों में।
अघोरी जहां तंत्र साधना करते हैं और एकांत में रहते है। वहीं नागा साधु मंत्र साधना और योग करते हैं और सामाजिक स्तर पर काफी सक्रिय रहते हैं। धर्म की रक्षा के लिए नागा साधु प्रतिबद्ध रहते हैं और समय आने पर युद्ध तक करने के लिए तैयार होते हैं। इन्हें युद्ध कला में पारंगत माना जाता है।
इस अखाड़े की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी. कहते हैं इस अखाड़े में 5 लाख नागा सन्यासी और महामंडलेश्वर हैं. यह अखाड़ा शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा है। सात अखाड़े ही बनाते हैं नागा : संतों के तेरह अखाड़ों में सात संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं:- ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।
ऐतिहासिक रूप से यह माना जाता है कि नागा परम्परा तब शुरू हुई जब आदि शंकराचार्य (8वीं शताब्दी) ने उन्हें एक हिंदू सेना के रूप में बनाया। भारत में सिर्फ दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा ही महिला नागा साधुओं को साध्वी बनने की इजाजत देता है। अन्य अखाड़ों में पुरुषों को ही लिया जाता है। शुरुआती दौर में महिलाओं के लिए कोई अलग से अखाड़ा नहीं था। जूना अखाड़े में ही माई बाड़ा नाम से उनके लिए अलग शिविर का आयोजन किया जाता था।
अघोरी, हिंदू धर्म के तपस्वी शैव साधुओं का एक संप्रदाय है. ये तंत्र साधना में लीन रहते हैं और अपने विचित्र अनुष्ठानों के लिए जाने जाते हैं. अघोरी, श्मशान में रहते हैं, अपने शरीर पर राख लगाते हैं, मानव खोपड़ी को बर्तन के रूप में इस्तेमाल करते हैं, और मानव शवों का मांस खाते हैं. अघोरी, शिव को अपना परम देवता और गुरु मानते हैं. अघोरी से जुड़ी कुछ खास बातेंः
* अघोरी, अपने शरीर पर चिता की राख लपेटे रहते हैं और चिता की अग्नि पर ही अपना भोजन पकाते हैं।
* अघोरी, किसी से कुछ नहीं मांगते।
* अघोरी, अपने पास नरमुंड यानी इंसानी खोपड़ी रखते हैं, जिसे 'कापालिका' कहा जाता है।
* अघोरी, तामसिक और सात्विक, दोनों तरह की पूजा करते हैं।
* अघोरी, नवग्रह शांति साधना से लेकर आत्मरक्षा, देह रक्षा, धनप्राप्ति, शादी, पुत्र प्राप्ति, आपत्ति निवारण, रोग निवारण, मारण, वशीकरण समेत कई कामों को पूरा करने का दावा करते हैं।
* अघोरी, कुत्तों से बहुत प्रेम करते हैं।
* अघोरी, हर गंदगी और अच्छाई को एक ही नज़र से देखते हैं।
अघोर पंथ, अघोर मत या अघोरियों का संप्रदाय, हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को 'अघोरी' कहते हैं। इसके प्रवर्त्तक स्वयं अघोरनाथ शिव माने जाते हैं। अघोरी तपस्वी शैव साधुओं का एक संप्रदाय है जो हिंदू धर्म के एक अनोखे और चरम रूप का पालन करते हैं। वे अपने विचित्र और अपरंपरागत अनुष्ठानों के लिए जाने जाते हैं, जैसे श्मशान में रहना, अपने शरीर पर राख लगाना, मानव खोपड़ी को बर्तन के रूप में इस्तेमाल करना और मानव शवों का मांस खाना।
अघोरियों से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें: अघोरी, भगवान शिव के साधक होते हैं. अघोर पंथ की उत्पत्ति भगवान शिव से ही हुई है, ऐसा माना जाता है. अघोरियों को ओघड़ भी कहा जाता है. अघोर का मतलब है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो. अघोरी बनने के लिए, व्यक्ति को अपने घृणा को निकालना होता है. इसलिए समाज जिन चीज़ों से घृणा करता है, अघोरी पंथ उसे ही अपनाता है।
अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं - श्मशान साधना, शिव साधना, शव साधना. अघोर पंथ में सबसे पहले अपने जप और पुण्य की रक्षा करने की शक्ति प्राप्त होती है. अघोरियों के तौर-तरीके और पहनावा एक आम व्यक्ति के काफी अलग होता है. अघोरियों के लिए वाराणसी के रविन्द्रपुरी में कीनाराम का आश्रम एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
अघोर पंथ में सबसे पहले अपने जप और पुण्य की रक्षा करने की शक्ति प्राप्त होती है. इस शक्ति को शिष्य गुरु मंत्रों के जाप से अर्जित करते हैं. रक्षण शक्ति मिलने पर वह स्वयं की और असहाय लोगों की सहायता करने में सक्षम हो जाते हैं।
अघोरी और आध्यात्मिक ज्ञान वे खुद को शरीर और आत्मा दोनों के उपचारक के रूप में देखते हैं । कई लोगों का मानना है कि उनकी गहन तपस्या और भक्ति उन्हें असाधारण शक्तियाँ प्रदान करती है, जिसमें बीमारियों को ठीक करने, आशीर्वाद देने और यहाँ तक कि भविष्य की भविष्यवाणी करने की क्षमता भी शामिल है।