मांसाहार यदि इसी तरह से बढ़ता रहा तो कितनी भी फैक्ट्रियां खोल लो, दवाइयां नहीं मिल पाएगी

गुरु पूर्णिमा पर बाबा उमाकान्त जी के उच्च कोटि के आध्यात्मिक सतसंग वर्षा से सरोबार हुए भक्त


जयपुर (राजस्थान)। वक़्त के पूरे सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने नजरें इनायत गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम के तीसरे व अंतिम दिन 13 जुलाई 2022 सायंकाल को जयपुर में भारी संख्या में अमेरिका, सिंगापुर, दुबई, होंगकोंग आदि कई देशों से आये भक्तों पर नजरें इनायत करते हुए दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु भक्ति अगर आ जाए तो काम हो जाए।

प्रेमी ढूंढा मैं चला, प्रेमी मिला न कोई।
प्रेमी से प्रेमी मिले, गुरु भक्ति दृढ़ होए।।

 

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आप सोचते हो कि मैं प्रचार में, सतसंग में चला जाऊंगा तो आमदनी कम हो जाएगी, बंद हो जाएगी तो बच्चे कैसे पलेंगे, घर कैसे चलेगा। वो मालिक सब करता है। गृहस्थी में सिवाय दुःख के और कुछ नहीं। सूखी रोटी खाओ ठंडा पानी पियो, रोग कोसों दूर रहते हैं। माल खाने वाले बड़े-बड़े सेठों के हार्ट फेल होते हैं। जब से सूखे मेवे की बिक्री बढ़ी, चटपटा माल खूब बाजार में आने लगा तब से बीमारियां बहुत बढ़ गई। भोजन के बाद कौड़ी भर गुड खाते थे। आदमी सुख के लिए बनाता है लेकिन वही दुखदाई हो जाता है जैसे मकड़ी सुख के लिए जाला बुनती है लेकिन उसी में फंस कर रह जाती है। जैसे बंदर जबान के सुख के लिए चने के पतले मुंह वाले घड़े, सुराही में हाथ डालता है। जब लालच आ जाता है तो फंस जाता है। अगर मुट्ठी खोल दे, 'छोड़ दे' तो हाथ बाहर आ जाए, बच जाएगा। आज व्यक्ति जानता ही नहीं कि कैसे गृहस्ती सुलझाई जाए क्योंकि सन्तों का सतसंग नहीं मिला। मोटी बात है कि भोग भोगने के लिए बनाया, फंसने के लिए नहीं बनाया। महाराज जी ने सन्तों के बाहरी लक्षण, भौतिक पहचान का कुछ इशारा किया जैसे वह बहुत सीधे-साधे होते हैं, झगड़-झंझट में नहीं फंसते, परोपकार करते हैं, दूसरों के दुःख से द्रवित हो जाते हैं और उसे दूर करने की कोशिश करते हैं लेकिन उनकी असली पहचान तो अंतर में ही हो सकती है। काल भगवान ने वरदान मांगा कि सन्त जीवों को नहीं ले जाएंगे, उन्हीं से मेहनत कराएंगे तो प्रेमियों करना तो आपको ही पड़ेगा क्योंकि वरदान मांगा हुआ है। ज्यादा त्यागना इस समय पर नहीं है। मांसाहार यदि इसी तरह से बढ़ता रहा तो कितनी भी फैक्ट्रियां खोल लो, दवाइयां नहीं मिल पाएगी। अभी भी घर-घर में बीमारियां हो गई हैं। जब वह प्रभु मिल जाए तो किसी भौतिक चीज की कमी नहीं रहती है। खेल-खेल में काम बना देते हैं महात्मा। कर्म इस कदर कटवा देते हैं कि मालूम ही नहीं पड़ता। जैसे नए ब्रांड के तेल मसाला आदि सामान बाजार में आते हैं लेकिन लोग जल्दी नहीं लेते हैं लेकिन जब कुछ मात्रा सैंपल उपयोग करते हैं और खुशबू अच्छी आती है तो कहते हैं कि अगली बार से यही वाला लेंगे, ऐसे ही कोई भी व्यक्ति एक बार जयगुरुदेव नाम की परीक्षा ले कर देख सकता है। जो नामदानी सतसंगी नहीं है लेकिन शाकाहारी नशा मुक्त है और कर्मों की सजा पा रहा है वो भी यदि जयगुरुदेव नाम ध्वनि लगातार बोलता रहेगा तो आराम मिलेगा और अगर सुबह शाम नाम ध्वनि बोलेगा तो तकलीफें घर से निकल जाती हैं। केवल मनुष्य ही परोपकार कर सकता है, जानवर नहीं। नंगे को कपड़ा, भूखे को रोटी दे सकता है। जो है खाने को, उसे दे, बांट सकता है। इतिहास में है कि एक ही रोटी थी और भूखा जानवर आ गया, उसको वह रोटी दे दी और केवल पानी पीकर सो गया तो उसके इस पुण्य के बदले पूरा राज्य तराजू के पलड़े में हल्का पड़ गया। आजकल सब दुःखी हैं। गरीब चिल्लाता है और अमीर चुपचाप दुःख को पीता जाता है। गुरु का प्रचार करोगे तब सपूत माने जाओगे। तीन होते हैं कपूत, पूत और सपूत। कपूत जो गुरु को मानते हैं लेकिन गुरु की नहीं मानते, मन मुखी होते हैं। पूत वो जो थोड़ा बहुत करते हैं, उसी स्तर को बनाए रखते हैं, लेकिन ऊपर नहीं ले जा पाते और सपूत एक अलग रास्ता निकाल लेते हैं।

लीक-लीक कायर चलें, लीकहिं चले कपूत।
लीक छोड़ तीनों चलें - शायर सिंह सपूत।।

जैसे कहते हैं कि पिता ने नींव रखी थी तो इसको तैयार करवाना ही है चाहे खुद के रहने के लिए पहले से कोई मकान हो। इसी प्रकार गुरु महाराज के अधूरे मिशन को आपको हमको पूरा करना है। महात्मा दूर की बात करते हैं लेकिन लोग जल्दी चाहते हैं। सतयुग की नींव गुरु महाराज ने डाल दी है अब सतयुग की किरण लानी है। अगर आप अपने को भक्त मानते हो तो प्रचार करने में शर्म कैसी? आगरा के राय शालिग्राम की कहानी सुनाई की मान सम्मान की परवाह किये बगैर पाँव में घुंघरू बांध कर  दुनिया के सामने नाचते गाते हुए गए कि देखो राय शालिग्राम जा रहा है अपने गुरु की सेवा करने। यह सेवा की मिसाल है। और आप सोचते हो कि कुछ करना ही न पड़े, सब ऐसे ही हो जाए, बस दया कर दो, दया कर दो बोलते रहते हो। घर में देखो तो ऐशोआराम की कई चीजें ऐसी ही पड़ी रहती हैं तो बताओ धन से पाप हुआ कि नहीं। सेवा करने से ही माफ होगा। हफ्ते में एक दिन, दो दिन छुट्टी हो, जो भी समय मिले तो प्रचार करो। जहां गए वहां प्रचार किया, दुकान दफ्तर भीड़ कहीं भी गए, लोगों को समझाया। मुंह से बोले, पांव से चलकर गए तो वह सब सेवा में जुड़ता है। सेवा भजन साधना में सहायक होती है, जुड़ती है। ताकत हिम्मत से आती है। आप हिम्मत मत हारो, गुरु आपको ताकत देते हैं और देंगे। यदि वो आपकी संभाल नहीं करते तो आप इस गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम में नहीं आ सकते थे। वह हर पल अपने भक्तों की संभाल करते रहते हैं। चाहे अलख या अगम लोक में जाकर आराम करते रहे लेकिन अपनाए हुए जीवों के लिए बराबर नीचे त्रिकुटी तक आते-जाते रहते हैं। जब अपनाए हुए सारे जीव जयगुरुदेव धाम पहुंच जाते हैं तो फिर वह दोबारा नीचे नहीं आते, पलट कर भी नहीं देखते। आप लोग तीन अभियान चलाओ- पहला जयगुरुदेव नाम का, दूसरा शाकाहारी, तीसरा सतयुग आने का। प्रेमियों के प्रचार से कलयुग घबरा रहा है, उसका सिंहासन हिलना शुरू हो गया। जब सिंहासन डोलेगा तो छोड़ कर भाग जाएगा। आप लोग घर से निकलने की आदत डालो, प्रचार-प्रसार में जाने की आदत डालो तो जल्दी भाग जाएगा। प्रचार-प्रसार में मन तब लगेगा जब ध्यान भजन सुमिरन करोगे। ध्यान भजन सुमिरन में मन तब लगेगा जब प्रचार प्रसार सेवा करोगे। सहारा मदद कोई तभी देगा जब चल पढ़ोगे। बैठे, लेटे रहोगे तो कुछ नहीं। साधना में आपको लंबा बैठना है।

पड़े रहो दरबार में, धक्का धनी का खाए।
कभी तो गरीब नवाजे ही, जो दर छोड़ न जाय।।

मन कितना भी भागे, भागने दो लेकिन आप दर मत छोड़ो, यही दर है। सुबह उठे, आलस भगाया हाथ मुंह धो लिया, अंतर में प्रार्थना बोल लिया, दो तीन प्रार्थना तो सभी याद कर लो। फिर साधना में बैठ जाओ। समय है तो एक साथ कर लो नहीं तो खंडों में कर लो। कैसे भी करो, करना है। चाहे लेट्रिन में ही करना पड़े, करो। सभी जगह साप्ताहिक सतसंग शुरू कर दो। प्रार्थना करो, ध्यान भजन सुमिरन करो, समझाने वाले हो तो समझा दें और या तो संगत में आने वाली पत्रिका पढ़कर गुरु के वचन सुना दो। जब सतसंग में गुरु प्रेमी मिलते हैं गुरु का वचन आदेश दोहराया जाता है तो ताजा हो जाता है। हर तहसील जिले प्रांत में गोष्ठी, समीक्षा करते रहो। जो जिस लायक है उसको वो काम दे दो तभी जिम्मेदार माने जाओगे। गरीबों छोटों की ज्यादा मदद करनी चाहिए। सहयोग की भावना होनी चाहिए। जब सतगुरु देने लगते हैं तो हार नहीं मानते। आप लोग भी तो सोचो कि आज दे दे तो कल हमारे पास और आ सकता है।

माया तो है रुखड़ी, न दो पल की दातार।
खावत ख़र्चत मुक्ति दे, संचत नरके द्वार।।

गुरु महाराज से कुछ छुपा नहीं है। जो आपने यहां आने में खर्चा किया, आपको कुछ घाटा नहीं होगा, ज्यादा ही मिलेगा। इस गुरु पूर्णिमा प्रसाद का बड़ा महत्व है। आप बहुत टेंशन में हो, काम नहीं हो रहा है तो जयगुरुदेव बोल करके मुंह में दो दाने डाल के ध्यान पर बैठो, मदद मिलेगी। कोई बेहोश है, या अंत समय में है या प्रेत बाधा है कोई भी बात हो दो दाना मुंह में डालकर जयगुरुदेव बोलो तो मदद मिलेगी। दे दो। प्रसाद को ध्यान से रखना नहीं तो चूहे दांव मार देंगे, उनका काम हो जाएगा और आप खाली रह जाओगे।



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