जयगुरुदेव बाबा उमाकान्त ने बताया गंगा की धाराएं, शिव धनुष तोड़ना किसे कहते हैं...

जयगुरुदेव बाबा उमाकान्त ने बताया गंगा की धाराएं, शिव धनुष तोड़ना किसे कहते हैं

सन्तमत में साधना बहुत उपर से शुरू होती है

उज्जैन (म.प्र.) : पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि एक आंख अंदर में जीवात्मा में है, उसको ज्ञान चक्षु कहते हैं। शिव का लोक सीधा दिखाई पड़ता है क्योंकि तीनों देवों में छोटे शिवजी हैं। शिव के अधीन जीवात्मा है। शिवजी के द्वारा ही यह जीवात्माएं इधर फैली हुई है। तो जीवात्माओं की धारायें उतरी है, उसी को लोगों ने कहा गंगा की धाराएं। जब कर्मों के पर्दे हटते हैं तो शिव का लोक दिख जाता है। किसी ने शिव नेत्र, थर्ड आई, रूहानी आंख कहा। तो एक आंख अंदर है जीवात्मा में। यह दो आंख बाहर इस शरीर के और दो कान जिनसे बाहर की आवाज आती है।। इसको चर्म कर्ण कहा गया। अंदर में एक कान (दिव्य कान) है जिससे अनहद वेदवाणी, आकाशवाणी सुनाई पड़ता है। वह कान जहाँ जीवात्मा बैठी हुई है इन्ही दोनों आंखों के बीच में उसी में है।

 

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शिव धनुष तोड़ना किसे कहते हैं

बाहर की आंखों से बाहर की चीज दिखाई पड़ती है। और जब आंख बंद कर लो और अंदर में देखने की कोशिश करो, यही तवज्जो जो बाहर देखने को देते हो, वही अगर अंदर में दोगे तब तो बाहर देखने की धारा, प्रवृत्ति, वह अंदर की तरफ हो जाएगी तब दोनों आंखों को इकट्ठा करके एक जगह पर देखने के लिए बताया जाता है। वह जो देखने वाली दोनों एक जगह पर पहुंच जाती है तो वह उसी स्थान पर पहुंचती है। अंदर का बनावट जैसे धनुष होता है वैसा है धनुषाकार है। जैसे ध्यान इधर से हटकर के वहां पहुंच जाता है तब उसी को शिव धनुष तोड़ना कहते हैं। क्योंकि शिव ही इस शरीर के मालिक है। शिव का लोक सबसे नीचे है और शिव ही इसको संचालित करते हैं। तो उसी को शिव धनुष तोड़ना कहते हैं सन्तमत में।

गणेश , लक्ष्मी  के दतक पुत्र हैं

प्रभावी स्टोर मेनेजर के उदाहरण से समझाया कि कुबेर कैसे व्यर्थ खर्चा रोकते हैं। गणेश जी का पहले नाम गजानन था। तो इनका सिर कट गया, हाथी का सर लगा दिया तो इनको लोग गजानन कहने लगे, कोई गणेश कहने लग गया। तो ये शिव और पार्वती के बेटा है। लेकिन लक्ष्मी ने उनको गोद ले लिया, जिसको दत्तक पुत्र कहते हैं। इनको यह काम दे दिया, कहते हैं- गणेश, कुबेर, रिद्धि-सिद्धि, लक्ष्मी आवे कुबेर जी वहां रहे तो कुबेर खत्म नहीं होने देते हैं और रिद्धि-सिद्धि भी बड़ा भंडार रखती है। तो इनकी सबकी पूजा दिवाली के दिन होता है। व्यापार करने के स्थान पर गद्दीयों पर व्यापारी लोग लिखते हैं- श्री गणेशाय नमः, लक्ष्मी जी सदा सहाय। लक्ष्मी जी बरकत दिलावे और कुबेर इसको रोक करके रखें। और रिद्धि-सिद्धि भंडार को भरने में कमी न रखें, उसको ऐसे जाया (व्यर्थ खर्च) न होने दे। आगे इन सब देवी-देवताओं के स्थान और इनको देखने के तरीके के बारे में महाराज जी ने बताया। ये सब चीजें सन्तमत में ज्यादा महत्त्व नहीं रखती है क्योंकि यहां साधना इनसे उपर की है।

लक्ष्मी एक तरह से बरकत है

लक्ष्मी गणेश जी की पूजा लोग करते हैं। इसकी पौराणिक कथा क्या है? तो दुर्वासा बड़े जिद्दी और गुसैल थे। तो उन्होंने इंद्र को उसके अहंकार की वजह से श्राप दे दिया। अहंकार धन, बल, ताकत, पद, पोस्ट, जगह का आता है। तो इंद्र के पास तीनों चीज थी। देवताओं की शक्ति थी। इंद्र, देवताओं के राजा कहे जाते हैं। धन की भी कोई कमी नहीं थी, बड़ा भंडार था और पोस्ट पर थे राजा थे। तो इंद्र को इस बात का अहंकार था। अगर दीनता होती तो वह हाथ फैला करके (दुर्वासा द्वारा दी गयी वस्तु) ले लेते। लेकिन अहंकार वश उन्होंने तिरस्कृत किया था। इसलिए दुर्वासा ऋषि ने कह दिया था जो तुम्हारा लोक धन्य-धान्य से पूर्ण है, वह वैभव अब खत्म हो जाएगा, कुछ नहीं रह जाएगा। तो वहां उजाड़ हो गया, सब दुखी हो गए। तो विष्णु भगवान से प्रार्थना हुई तो यह उनके भी पावर से ज्यादा वाली बात थी लेकिन युक्ति (उपाय) उनको मालूम थी। तब उन्होंने कहा अब समुद्र देवता से इन चीजों को लेना (मांगना) पड़ेगा क्योंकि समुद्र में हर चीज रहती है। ऐसे भी नदियों में हर तरह की चीज बहकर के समुद्र में जाती है। कोई घर बनाता है, सोना-चांदी रखे रहता है, बाढ़ आ गई बहकर के चला गया, नदियों में से होकर के समुद्र में पहुंच जाता है। तो समुद्र में तो बहुत तरह की चीजें, रत्न रहते हैं। तो बोला समुद्र देवता से मंथन करके अब लेना पड़ेगा। गहरे समुन्द्र को ऊंचे पहाड़ और पाताल लोक में सांपों का लोक है, जहां शेषनाग एक राजा है तो सांप को लपेट करके समुद्र का मंथन किया। तो 14 रत्न उसमें से निकला था। श्री मणि रम्भा वारुणी अमिय शंख गजराज, कल्पवृक्ष धनु धेनु शशि धन्वंतरि विष वाज आदि 14 रत्न निकले थे तो उसी में से लक्ष्मी भी निकली थी। लक्ष्मी का नाम अब इस समय पर लोगों ने रुपया-पैसा का रख दिया है लेकिन लक्ष्मी एक तरह से बरकत है।



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