धन धान्य सुख समृद्धि को लेकर मनाया गया कठोरी पूजा ।

लखनपुर नयाभारत सितेश सिरदार:–सरगुजा लोक संस्कृति में कठोरी पूजा का विशेष महत्व है।सदियों से चली आ रही परम्परा को कायम रखते हुए नगर लखनपुर के वार्ड क्रमांक 01 झिनपुरीपारा स्थित महादेव कलेसरी देव स्थल में कृषक वर्ग के लोगों ने पूरे आस्था के साथ 4 मई दिन शनिवार को कठोरी पूजा मनाया ।प्रथा अनुसार ग्राम बैगा ने विधिवत गौरा महादेव, माता कलेसरी, देवी अन्नपूर्णा, इन्द्र, वरुण ,धरती रासबढावन डीह डिहारीन के पूजा अर्चना किये।

 दरअसल देवी देवताओं के अलावा कठोर भूमि की पूजा अर्चना किया जाना ही कठोरी पूजा है।

 ऐसी मान्यता है कि कठोरी पूजा के दौरान ग्राम बैगा द्वारा पूजित धान को ही सर्वप्रथम किसान अपने खेत में बोकर कृषि कार्य का श्रीगणेश करता है। कठोरी पूजा किसानो के लिए खास होता है प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में कठोरी मनाया जाता है। इस पूजा में किसान एक जुट होकर अपने धान की पूजा कराते हैं। जनश्रुति से पता चलता है कि 

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 रियासत काल में खास 

कठोरी पूजा दिन के लिये सख्त नियम बनाये गये थे ।

 कठोरी पूजा के एक रोज पहले पूरे गांव में मुनादी करा दी जाती थी कि बिना पूजा अनुष्ठान हुये रास ढोढी जलस्त्रोत से पानी ना भरें।

 बल्कि एक रोज पहले पीने के पानी का इंतजाम कर लें।

कठोरी पूजा से पहले ढोढी से पानी भरने पर मनाही थी। 

उस जमाने में ढोढी पोखर ही पेयजल के मुख्य स्रोत हुआ करते थे।

 इस लिए पानी वाले स्थानों को पूजनीय माना जाता था। और आज भी मानते हैं। उनके सम्मान में ऐसे नियम बनते थे।

 भूमि की खोदाई जोताई पर पहरा लगा दिया जाता था । 

 शर्तों के दायरे में रहते हुए लोग कठोरी पूजा के एक रोज पहले ढोढी से पीने का पानी भर लिया करते थे । ताकि पूजा होने तक इस्तेमाल कर सकें ‌

 जमीन की खुदाई जोताई नहीं करते थे।

यह प्रथा आज भी कहीं-कहीं जिंदा है।

 लेकिन कुछ कायदे वक्त के साथ मिटने लगे है।

 कठोरी पूजा में गौरा महादेव, इन्द्र ,वरुण पवन आकाश अग्नि धरती आदि देवी देवता की पूजा किया जाना समाहित था।

 कठोरी पूजा के दिन आमजन धरती माता के सम्मान में फावड़ा चलाने खोदने जोतने से परहेज़ करते हुए शाही फरमान का अनुपालन किया करते थे।

 बताया जाता है उस काल खंड में बनाये नियमों का पालन नहीं करने वाले लोगों को अर्थ दंड से दंडित किया जाता था।

यह एक सामंती व्यवस्था थी।

 कठोरी पूजा के बाद ही लोग रासढोढी से पानी भरते थे। पूजा उपरांत 

शाम को ग्राम बैगा किसानों के घरो में जाकर पूजा किया हुआ जल (रास पानी) बांटता था ,और आज भी बांटते हैं। माना जाता है इस पानी से धन धान्य की वृद्धि होती है। इस पानी के एवज में किसान तबके के लोग ग्राम बैंगा को चावल दाल कुछ पैसा दान स्वरूप देते रहे हैं। पानी को घरों में छिड़का जाता है।

यह प्रथा आज भी चलन में है। 

गौरा महादेव को प्रसन्न करने के लिए गांव के लोग सामुहिक रुप से ढ़ोल नगाड़ों के धून पर बायर नृत्य किया करते थे।

  कालांतर में नगर को छोड़कर अन्य सभी दूसरे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आज भी कठोरी पूजा के उपलक्ष्य में बायर नृत्य किया जाता है।

उस पुराने जमाने में लखनपुर एक गांव हुआ करता था।तब बायर नृत्य किया जाता था।

कालांतर में बायर नृत्य किये जाने का चलन नगर से उठ गया है।

कठोरी पूजा मनाये जाने की और भी धार्मिक पहलूए है ।बहरहाल नगर लखनपुर में उत्साह के साथ कठोरी पूजा मनाया गया। क्षेत्र में अपने सुविधा व्यवस्था के अनुसार लोग कठोरी पूजा मना रहे हैं यह सिलसिला जारी है। सही मायने में अक्षय तृतीया की रात किसान वर्ग कठोरी पूजा में ग्राम बैंगा द्वारा दिये पूजित धान को खेत में बोता है ताकि पैदावार अच्छी हो। 

दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में कठोरी पूजा को दिल के गहराई से मनाया जाता है । खाने खिलाने तथा पीने पिलाने का भी दौर चलता है।



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