EXCLUSIVE VIDEO:-सिहावा के दंडक वन के बीचों बीच कोटेश्वर धाम जहाँ भीमा कोटेश्वर महादेव का शिवलिंग है मौजूद….युगों पुराने करीब साढ़े चार फीट की इस शिवलिंग की सबसे बड़ी खासियत ये है कि जमीन से निकला हुआ यह स्वयंभू शिवलिंग…अद्भुत है इस शिवलिंग की कथा…इस तरह चढ़ाने से नीला होता है दूध होता है…देखिए नयाभारत की खास रिपोर्ट….. देखिए वीडियो…!

धमतरी: छ्त्तीसगढ के जंगल में जहाँ आज भी मौजूद है भगवान शंकर का नीलकंठेश्वर रूप…..मान्यता है जहाँ आज भी रावण के पूर्वज करते है उस चमत्कारी शिवलिंग की पूजा…….छ्त्तीसगढ की राजधानी रायपुर से 250 किमी दूर तथा धमतरी जिला मुख्यालय से 65 किमी दूरी पर सिहावा इलाके के घने जंगलों में कोटेश्वर महादेव नामका एक शिवलिंग मौजूद है…….. कहते है इस शिवलिंग में भगवान शिव का नीलकंठेश्वर रूप आज भी मौजूद है……… घनघोर जंगल के बीच मौजूद इस शिवलिंग में दूध डालने पर दूध का कलर नीला पड़ जाता है….. मान्यता है कि रावण के पूर्वजों द्वारा यह शिवलिंग स्थापित किया गया था और वो इस शिवलिंग की आज भी पूजा करते है…..श्रावण माह में भगवान शिव के इस रूप को देखने भक्तो की भीड़ उमड़ती है …….देखिए एक रिपोर्ट

सागर मंथन के वक्त जब हलाहल विष की उत्पति हुई और इस विष से सृष्टि का विनाश होने लगा तब भगवान शिव ने उस विष का पान करकर उसे अपने कंठ में रोक लिया और उसे पीकर और …….तभी से भगवान शिव नीलकंठेश्वर कहलाये।……….. कहते है की धमतरी जिले के सिहावा इलाके के दंडक वन में आज भी भीमा कोटेश्वर महादेव धाम के शिवलिंग में भगवान शिव का नीलकंठेश्वर रूप मौजूद है……… अगर इस शिवलिंग पर गाय के दूध से अभिषेक किया जाए तो शिवलिंग पर दूध गिरते ही दूध अपने आप नीले रंग का हो जाता है।

ऐसा एकबार नहीं अक्सर होता है. और इसको देखने के दावे हजारो लोग करते है. यही नहीं तो इस शिवलिंग को लेकर एक मान्यता और यह भी है दंडक वन में मौजूद इस शिवलिंग की पूजा ……..त्रेतायुग में रावण के पूर्वज किया करते थे. खुद राक्षस राजा रावण ने भी इसी शिवलिंग के सामने कई वर्षो तक कड़ी तपस्या करकर सारे दिव्यास्त्रों और राक्षस राजा होने का वर पाया था.

 

मान्यता ……..यह भी है की रावण के दादा पुलत्स्य ऋषि आज भी छत्तीसगढ़ के इस दंडक वन में मौजूद है. और हर मध्यरात्रि को वो इस शिवलिंग की पूजा आज भी करते है. और इसके दावे भी हजारो लोग करते है………….छत्तीसगढ़ के धमतरी से ही देश के 5 राज्यों में फैले दंडकारण्य वन की शुरवात होती है भगवान राम के १४ वर्षो के वनवास के साथ ही ये दंडक वन कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पौराणिक कीवदंतियो का साक्षी रहा है……. दण्डक के द्वार कहे जानेवाले इसी सिहावा में सप्तऋषियों का वास रहा है और इसी सिहावा से भगवान राम को सप्तऋषियों ने दिव्यास्त्रों की शिक्षा भी दी थी……. साथ ही दण्डक वन रावण और उनके दादा पुलत्स्य ऋषि की तपोभूमि भी रहा है. करीब साढ़े चार फिट के युगो पुराने इस शिवलिंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह जमीन से निकला हुआ स्वयंभू शिवलिंग है किसी तरह पत्थर या चट्टान को काटकर या तराशकर बनाया गया नहीं….

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बहरहाल लोग इसे अपने आस्था से जोड़कर देख रहे है और बाबा का चमत्कार मान रहे है

देखे विडियो

 



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