छत्तीसगढ़/धमतरी
एैसा ही कुछ धमतरी के वनांचल इलाके मे रहने वाले आदिवासी गोड समाज में मृत व्यक्ति के मठ पर उसके पसंदीदा वस्तुओं की आकृति बनाने की एक अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है...और यह परंपरा अब भी अदिवासी बरकारर रखे हुऐ है...वही इस आदिवासियो की परंपरा को दिगर समाज वाले भी धीरे धीरे अपनाने लगे है....
धमतरी जिले का नगरी सिहावा इलाका वनांचल क्षेत्र है आदिवासी बाहुल होने के कारण यहां सदियों पुरानी परंपराएं अब भी कायम है....यहा के गोड समाज में माता या पिता अथवा परिवार के शादीशुदा सदस्य की मृत्यु होने पर उसके अंतिम संस्कार के बाद मठ बनाया जाता है..चबूतरानुमा मठ के ऊपर मृतक के पसंद के वस्तुओं की आकृति बनाई जाती है... आमतौर पर पुरुष मठ में बैलगाडी, घोडा, हाथी, भाला पकडे दरबान, जीप, कार, मोटरसाइकिल और स्कूटर की आकृति बनाई जाती है...वही महिला मठ में सिर्फ कलश ही बनाने का रिवाज है..और अब ये परंपरा दिगर समाजो मे भी शुरू होने लगी है...
आदिवासी लोग बताते है कि उनके यहा मरने वाले को लोग जो नाम से जानते है या फिर मषहूर रहते है उसी तरह का मठ उस व्यक्ति का बनाया जाता है...एक व्यक्ति ने बताया कि उनके एक परिजन इलाके मे बहादूर नाम से मषहूर था..लोग उन्हे बहादूर नाम से बुलाते थे...इस लिये उनके मरने के बाद उनके मठ मे उनकी गदा पकडे हुई मूर्ति बनाई गई है.....
बहरहाल आदिवासिायो मे मठ मे कलाकृति बनाने की परंपरा सदियो से चली आ रही है..और इस दौर के पीढी भी अपने पूर्वजो व्दारा बनाये परंपरा को संजोय रखने का भरोसा दिला रहे है..वाकई मे आदिवासियो की रिति रिवाज और परंपरा जो सदियो से चली आ रही है..उसमे आज तनिक भी बदलाव नही देखने को मिल रही है..जो अपने आप मे अनूठा और काबिले तारिफ है...
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