रोज़गार, बेरोज़गारी, महँगाई का ये मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए और भारत के लोकतंत्र के लिए हर साल नया क्यों रहता है? क्या इस मुद्दे को उठाने वाले इसे जड़ से ख़त्म कर देंगे?

NBL, 16/09/2023, Lokeshwer Prasad Verma Raipur CG: Why does this issue of employment, unemployment and inflation remain new every year for political parties and India's democracy? Will those raising this issue root it out? पढ़े विस्तार से.... 

सदियों से देश में एक ही मुद्दा चले आ रही हैं वह है, गरीब, अमीर, छोटी जाति बड़ी जाति, हिंदू धर्म मुस्लिम धर्म अब यह रिवाज राजनीति करने वालों के लिए पुराने हो गए है, कही कही पर अब सुनने को मिलता है, अब देश के लोग शिक्षित हो गया है तो धीरे धीरे यह सब छोटे बड़े की गहराई मिट रही है अब देश मे कुछ ही लोग बचे हुए हैं जो जाति के नाम पर और धर्म के नाम पर उत्पात मचाता है व वोट बैंक की राजनीति करते हैं, बस इन्ही के द्वारा मालूम चलता है कि देश में छोटी जाति के साथ बड़े जाति के लोग अन्याय किया हिंदू धर्म के लोगों के त्यौहार पर मुस्लिम धर्म के कुछ मुसलमान लोग पत्थर फेंकते हुए पाए गए, लेकिन रोजगार बेरोजगारी और महंगाई की मुद्दा हर दिन हर पल हर वक्त विपक्षी दलों के नेताओं के द्वारा बोली जाती हैं, और हर साल हर वक्त यह मुद्दा नया रूप में रहता है और इसका अंत कोई भी राजनीतिक दल नही कर पाता इसलिए यह मुद्दा देश के लोकतन्त्र के लिए अहम मुद्दा होता है हर पल हर वक्त नया रूप में ही रहता है यह रोजगार, बेरोजगारी व महंगाई वाले मुद्दा।

रोजगार, बेरोजगारी, महंगाई की बात को लेकर देश के अंदर सत्ता पक्ष को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं के द्वारा घेरी जाती है और इन्ही को बड़े मुद्दा बनाकर देश के लोकतन्त्र को अपने पक्ष में लाने के लिए विपक्षी दलों के नेता हर पल हर वक्त राजनीति करती रहती है। तो क्या इस मुद्दे को उठाने वाले इसे जड़ से ख़त्म कर देंगे?

 

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और इन्ही विपक्षी दलों के इन मुद्दाओ को विफल करने के लिए सत्ता पक्ष देश राज्य के कुछ लोगों के लिए रोजगार मुहैया करवा देती है, और कुछ पढ़े लिखे बेरोजगार युवक युवती के लिए सरकारी विभाग में पद स्थापित कर देती है और देश राज्य में बढ़ी हुई महंगाई दर को कम कर राज्य के लोगों को फ़ायदा दिला देती है और यह ज्यादातर चुनाव के कुछ दिन बचे हुए समय पर ही यह खेल की शुरुआत होती हैं सत्ता पक्ष के दलों के द्वारा और उनके यह विकास पाँच साल के उनके कार्य काल को कवर करती है और देश के मीडिया पर छाए रहते है विज्ञापन के रूप में देश राज्य के लोगों को आकर्षित करते हैं हमने ये किया हमने वह किया पूर्व की पिछली सरकार नही कर सका उसे हमने करके दिखाया हम भरोसे की सरकार है। जबकि चार साल तक इनके सर पर जू तक नही रेंगता जो पांच साल के आखरी एक साल मे बड़ा ही अद्द्भुत विकास होता है इसे कहते है राजनीति। 

जब इन विपक्षी दलों के नेताओं के द्वारा उठाई गई मुद्दा सत्ता पक्ष के द्वारा कुछ हद तक निभा लिया जाता है तो इन विपक्षी दलों के नेताओं का स्टंट कुछ और होता है, जिसे कहते हैं तुष्टिकरण की राजनीति इसमें विपक्षी एक धर्म को दूसरे धर्म के भिन्नता कर देश के भाईचारे को अलग कर भारत में सत्ता पक्ष को घेरती है। और कहती हैं देश के अल्प संख्यक मुसलमान देश में सुरक्षित नहीं है उनके साथ देश में सत्ता पक्ष के द्वारा भेद भाव की जाती हैं और उनके हितैषी बन कर उनके धर्म के लोगों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश करते हैं विपक्षी दलों के नेताओं के द्वारा कुछ हद तक सफल भी हो जाते हैं। जो भी आप देश मेें देखते हैं दंगा फसाद जाति धर्म के भेद भाव यह सब राजनीति का एक हिस्सा है, और सुलगे हुए आग में विपक्षी दलों के नेताओं के द्वारा घी तेल डालने का काम करते हैं कैसा भी करके उनको पुनः सत्ता चाहिए येन केन प्रकारेन से।

रोजगार, बेरोजगार, महंगाई इन तीनों से सत्ता का अदल बदल होता है, भले ही सत्ता पक्ष चहुँओर विकास का जाल बिछाने में कामयाब रहे धरती से आकाश से लेकर ग्रह नक्षत्र से लेकर देश विदेश तक अपना देश का धाक जमा ले और अपने देश का सम्मान बढ़ा रहे हो इससे देश के विपक्षी दलों के नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता जो यह विपक्षी दलों के नेताओं के द्वारा बोली जाती हैं वही तीनो मुद्दा रोजगार, बेरोजगारी और महंगाई से बड़ा कोई मुद्दा इनके होते ही नहीं है, और देश के लोकतन्त्र को यही तीनों मुद्दा से प्रभावित करता है विपक्षी दलों के नेता और सत्ता पक्ष को हटाने और विपक्षी सत्ता पाने के लिए कुछ भी देश में कूटनीति करते रहते हैं और यह सिलसिला देश में अनवरत जारी रहते है राजनीति करने वाले नेताओं के द्वारा। जबकि इन तीनों मुद्दाओ को जड़ से कोई भी राजनीतिक दल मिटा नहीं सकता। 

और यह मुद्दा देश के लोकतन्त्र के लिए हर हमेशा नया ही रहता है इसलिए विपक्षी दलों के नेताओं के द्वारा उठाये गए यह तीनों मुद्दा पर देश के लोकतन्त्र को कोई विशेष ध्यान नही देना चाहिए और देश के लोकतन्त्र को पूर्व की सरकार की दशा और दिशा और वर्तमान सरकार में देश राज्य की दशा और दिशा कैसी है और पूर्व की सरकार के समय काल की भारत और वर्तमान सरकार की समय काल की भारत के विकास, सम्मान सभी को तुलना करते हुए देश के लोकतन्त्र को अपनी वोट मत बहुमत देनी चाहिए सच्चे देशभक्त बनकर बिना भेद भाव के तब भारत का सुरक्षा होगा नही तो इन राजनीति करने वाले नेेताओं के बेबुनियाद मुद्दा रोजगार, बेरोजगारी व महंगाई के चक्कर मे पड़ कर खाया पिया कुछ नही और ग्लास थोड़ा बारह आना वाले हाल आप देश की लोकतन्त्र की ना हो जाए इसलिए पहले राष्ट्र भक्त बनो राष्ट्र सुरक्षित तो हम लोकतन्त्र सुरक्षित।

विपक्षी दलों के पास बोलने के लिए कोई मुद्दा नहीं बचा रहता है तो वह नेता लोग देश की सबसे बड़ी आबादी वाले हिंदुओं की सनातन धर्म संस्कृति या उनके पवित्र ग्रंथों के बारे में उल्टे सीधे बयान देकर देश के अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सुर्खियों में बने रहते हैं और इस मुद्दे पर बहस होती रहती है, ताकि सनातन धर्म की आड़ में बैठकर अखबारों और टीवी न्यूज चैनलों पर रोजगार, बेरोजगारी, महंगाई पर बात कर सकें और इन तीन मुद्दों का देश के लोकतंत्र पर पड़ने वाले असर को दिखा सकें. क्या सही में देश के हिंदुओं क्या वाकई में उनके धर्म को गाली देने वाले को सहन करने वाले कमजोर लोग है?

क्या वाकई इन विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा सनातन धर्म के बारे में कहे गए इन गलत शब्दों को देश के हिंदुओं को एक राजनीतिक भाषण मानकर देश की बड़ी हिंदू आबादी अपने सनातन धर्म का अपमान करने वाले नेताओं को माफ कर देना चाहिए? या आने वाले चुनाव में इन बयानों का जवाब दिया जाना चाहिए ? या फिर देश के हिंदुओं को उनके सनातन धर्म को गाली देने वालों की परवाह नहीं है? क्या यह भारत के हिंदुओं की सबसे बड़ी कमजोरी है?

इस बात की भी विचार देश के हिंदुओं को करनी चाहिए और राजनीति करने वाले हिंदु नेेताओं को भी विचार करनी चाहिए की हमारा धर्म बड़ा है या हमारा राजनीति बड़ा है करके। या सत्ता पाने के लालच में अपने धर्म के अपमान करने वाले को गले लगा रहे है हमारे साथ सहयोगी है करके या अपने माँ रूपी धर्म की बेइज्जती राजनीतिक सत्ता सुख पाने के लिए विवश होकर सहन कर रहे है या खुद से जानबुझकर ये पाप कर्म कर रहे है,  आज तक जो भी सनातन धर्म को मिटाने की बात की वह इतिहास के पन्नो पर इतिहास बन कर रह गए लेकिन सनातन धर्म को नही मिटा सके क्योंकि सनातन स्वयमभू है निराकार है। जिसका आकार सबमे है। नर से नारायण बनाने की शक्ति सनातन धर्म संस्कृति में है। आप अच्छे गौर से देख ले किसी सनातन धर्म संस्कृति के मंंदीर पर जाकर वहाँ के लगे पत्थर भी गवाही दे देंगे कि मैं सनातन धर्मी हूं। 

 

 


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