बाबा उमाकान्त महाराज ने सतसंग में लोगों को बताया सुख शांति और कर्मों की सफाई करने का उपाय
धौलपुर : राजस्थान इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले दुःखहरता बाबा उमाकान्त महाराज ने 26 नवम्बर 2024 को राजस्थान के धौलपुर के बाड़ी में दिए अपने सतसंग में बताया कि कर्मों की सफाई के बिना आत्मा का उद्धार संभव नहीं है। यदि समय के किसी समर्थ सन्त द्वारा बताये रास्ते के अनुसार इसी घर गृहस्थी में रहते हुए थोड़ा सा समय रोजाना सुमिरन, ध्यान, और भजन में आज लोग करने लग जाएं तो इससे उनके कर्म कटने लगते हैं और कर्मों के बुरे प्रभाव से बचा जा सकता है।
अन्यथा जो भारी कर्म हैं, उनका फल भोगना ही पड़ता है। गुरु जी ने कहा कि सन्तों ने कर्मों को काटने के लिए तन, मन और धन की सेवा का विधान बनाया, और उनके उपदेश पर चलते हुए नाम की कमाई की जाय तो आत्मा को उसका असल भोजन भी मिल जाता है जिससे उसका जनम - मरण हमेशा हमेशा के लिए छूट सकता है।
सुमिरन, ध्यान, भजन और सेवा से कर्मों की सफाई।
पूज्य महाराज जी ने बताया कि कर्मों की सफाई करना जरूरी है। अगर सुमिरन, ध्यान, भजन में मन लग गया तो कर्म कटते जाएंगे, और नहीं तो जो शरीर से जान-अनजान में भारी कर्म बन गए या पुराने संचित कर्म हैं, वह नहीं कटते हैं। अब कर्मों का विधान ऐसा बन गया है कि -
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा।
जो जस करइ सो तस फलु चाखा॥
यदि कर्म नहीं कटेंगे तो फल भोगना पड़ जाएगा। अब यह कर्म कैसे कटेंगे? उसके लिए सन्तों ने सेवा करने का विधान बना दिया। चूँकि तन, मन, धन से पाप होता है, इसलिए जब इन तीनों से सेवा करोगे, जनहित का काम करोगे, भटके हुए को रास्ता बताओगे, तब आपके कर्म कटेंगे।
आत्मा का भोजन : शब्द
पूज्य महाराज जी ने फरमाया कि भूखे को रोटी खिलाना, प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम होता है। किसी दु:खी का दु:ख दूर करने लग जाओ तो उसका फल मिल जाता है। जो असहायों के लिए जितना अनाज, रुपया-पैसा खर्च करता है, उसी हिसाब से उसको बरकत मिल जाती है। लेकिन आत्मा का इससे कोई ताल्लुक नहीं है; आत्मा भूखी रह जाती है।
आत्मा को भोजन कैसे मिलेगा , इसको जानना जरूरी है। आत्मा की खुराक है ‘शब्द’। इसलिए आप प्रचार करो और लोगों को बताओ जिससे वे भी नामदान लेकर नाम की कमाई करके अपनी जीवात्मा को शब्द की खुराक दें। जब उनकी जीवात्मा को भोजन मिल जाएगा, वह खुश हो जाएगी, तो इसी से सारी चीजें आपको मिल जाएंगी।
पहले ऐसा समय था कि एक कमाए और दस खाएं। अब दस कमाते हैं और फिर भी पूरा नहीं पड़ता क्योंकि बरकत खत्म हो गई। तो इससे (नाम की कमाई करने से) बरकत तो मिल ही जाएगी, साथ ही जब जीवात्मा शब्द को पा जाएगी, तो शब्द की सीढ़ी चढ़-चढ़ करके अपने मालिक, असल पिता के पास पहुंच जाएगी; जन्म मरण से छुटकारा हो जाएगा।