पूर्व विधायक जैन ने कुलाधिपति को लिखा पत्र
बस्तर विश्वविद्यालय द्वारा प्रस्तावित शुल्कों में बढ़ोत्तरी न किए जाने की मांग की
जगदलपुर : पूर्व विधायक व संसदीय सचिव रेखचंद जैन ने शुक्रवार को छत्तीसगढ के राज्यपाल व कुलाधिपति को पत्र भेजकर शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय बस्तर द्वारा प्रस्तावित शुल्कों में बढ़ोत्तरी न किए जाने की मांग की है। पत्र में कहा गया है कि विश्वविद्यालय के इस निर्णय का अनुमोदन विद्या परिषद एवं कार्य परिषद से होना था लेकिन उनकी मंजूरी के बिना ही मात्र अनुमोदन की प्रत्याशा में अधिसूचना जारी कर बढाए गए शुल्कों को लागू किया गया है। इसके बाद से यहां के हजारों नियमित व प्राइवेट छात्र- छात्राएं उद्वेलित व आंदोलित हैं।
बस्तर संभाग के 53 महाविद्यालय में लागू
पूर्व विधायक जैन ने पत्र में लिखा है कि शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय बस्तर के क्षेत्राधिकार में बस्तर संभाग के सात जिलों के 53 महाविद्यालय आते हैं। सत्र के मध्य में विश्वविद्यालय द्वारा लिए गए निर्णय से नियमित व प्राइवेट विद्यार्थियों समेत उनके अभिभावक प्रभावित हुए हैं।
पिछले शिक्षा सत्र में विश्वविद्यालय की विभिन्न परीक्षाओं में 62 हजार से अधिक विद्यार्थियों के सम्मिलित होने का उल्लेख करते जैन ने इस बात पर खेद जताया है कि आनन- फानन में इस निर्णय के लागू किए जाने से हजारों छात्र- छात्राओं के साथ उनके अभिभावकों पर प्रतिकूल असर पड़ा है। मात्र अनुमोदन की प्रत्याशा में शुल्कों में बढ़ोत्तरी लागू किए जाने के निर्णय को पूर्णतया अनुचित, अव्यवहारिक व अदूरदर्शी बताते उन्होने परीक्षा शुल्क समेत 42 प्रकार के अन्य शुल्कों में वृद्धि को पीड़ादायक कहा है।
नीति आयोग के आंकड़ों को उद्धृत किया
जैन ने भेजे पत्र में लिखा है कि नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बस्तर संभाग के सात में से तीन जिलों दंतेवाड़ा, नारायणपुर व बस्तर में तो गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों का औसत छत्तीसगढ़ राज्य के औसत से अधिक है। दंतेवाड़ा व नारायणपुर जिला तो राज्य के सर्वाधिक गरीबी वाले जिलों की सूची में प्रथम दो स्थान पर आते हैं।
इन दोनों जिलों की लगभग आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है। यही स्थिति बस्तर संभाग के अन्य जिलों बस्तर, सुकमा, बीजापुर, कोंडागांव व कांकेर में भी नजर आती है। श्री जैन ने कहा है कि इन परिस्थितियों में विश्वविद्यालय प्रशासन का फीस वृद्धि का निर्णय न केवल असंगत - अतार्किक है अपितु अव्यवहारिक माना जाएगा जिसने फीस बढोत्तरी के पूर्व इस दिशा में ध्यान ही नहीं दिया।
न्याय की अपेक्षा में छात्र- छात्राएं
पूर्व विधायक व बस्तर विवि कार्य परिषद के पूर्व सदस्य रेखचंद जैन ने पत्र में लिखा है कि चूंकि विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में आने वाले समस्त सातों जिले संविधान के पांचवी अनुसूची में आते हैं जिनके प्रशासन की तमाम शक्तियां राज्यपाल में निहित हैं।
उन्होने फीस वृद्धि के निर्णय को लागू किए जाने से तत्काल रोकने को राज्यपाल का परम कर्तव्य निरुपित करते लिखा है कि फीस निर्णय का फैसला वापस लिए जाने से हजारों नियमित व प्राइवेट छात्र-छात्राओं तथा उनके अभिभावकों को राहत मिलेगी।
विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हजारों विद्यार्थियों को न्याय मिलने की अपेक्षा भी पूर्व विधायक ने व्यक्त की है। एक ओर जहां विश्वविद्यालय के 85 फीसद से अधिक छात्र- छात्राएं आरक्षित वर्ग के हैं वहीं दूसरी ओर यह निर्णय लेकर उनके अधिकारों पर कुठाराघात किया जा रहा है।