कभी किया करते थे किसान बेलन से धान मिंजाई
बेलन से धान मिंजाई और वो पुरानी यादें...
केशकाल/विश्रामपुरी : कोंडागांव जिले के विकासखंड बड़ेराजपुर अंतर्गत सभी ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों किसान खेतों में धान कटाई के साथ साथ धान मिंजाई भी कर रहे हैं इसी तरह हरवेल बालेंगा धामनपुरी पिढापाल तितरवंड गम्हरी पिटीसपाल लिहागांव पारोंड तराईबेड़ा डिहीपारा पातरीपारा में भी यह सिलसिला लगातार जारी है।
आज छत्तीसगढ़ के ऐसे जानकारी बता रहे हैं जो आधुनिक युग में किसान मिंजाई करते हैं और विलुप्त के कगार पर है।
छत्तीसगढ़ में बेलन से धान मंजाई बहुत प्रसिद्ध है. कोंडागांव के आसपास कुछ घरों में अब भी बेलन से धान मिंजाई की जाती है. बेलन लकड़ी का एक यंत्र होता है जो बहुत भारी होता है। प्रयास साल वृक्ष से इसका निर्माण किया जाता है।
बेलन की डांडी दो हिस्सों में बांट कर बेलन के दोनों किनारों से जुड़ती है। यहां स्नेहक के रूप में ओंगन का प्रयोग किया जाता है। डांडी के आगे जुआँड़ी की सहायता से दो बैल फांदकर बेलन चलाया जाता है। बीच बीच में फसल को दो तीन बार पलटना पड़ता है, यह प्रक्रिया धान डोबना कहा जाता है।
धान डोबने का हाथियार भी होता है। धान मिंजाई का यह तरीका अधिक कारगर है क्योंकि बेलन की बाहर से धान बहुत जल्दी अलग हो जाता है।
चांदी सी चमकती शीतल चांदनी रात हो और आपको बेलन फांदने का अवसर मिले तो समझिए कि स्वर्ग ही मिल गया। अंगीठी के नजदीक बैठकर बुजुर्गों के पुराने किस्से कहानियां सुनना बड़ा ही मजेदार और रोमांचक हुआ करता था।
इसके बाद की कहानी तो और भी रोमांचक है। रात के समय सोने से पहले कोठार में बिखेरे गए फसल की सुरक्षा के लिए एक "डोकरा" बनाया जाता है। यह डोकरा धान के पैरे से बनाया जाता है, जिसे बाकायदा साग-भात परोसा जाता है।
यही नहीं रात को कोठार में बिखरे गए धान चाहे वह पैरा सहित हो या पैरा रहित, के चारों ओर पैरा जलाकर काली राख की रेखा बनाई जाती है। लोगों का विश्वास है कि इससे डुमा (भूत- प्रेतादि) उनके फसल पर कुदृष्टि नहीं डाल पाते।
बस्तर में चावल रहित धान "दरभा" कहलाता है। जिसे हवा की मदद से उड़ाकर अलग कर दिया जाता है। उड़ाने की तकनीक भी बिल्कुल ही बदल गई पहले हवा के तेज बहने का इंतजार किया जाता था अब पंखे आ गए पहले हाथ पंखे और अब इलेक्ट्रॉनिक पंखे।
अब थ्रेसर मशीन ने तो धान उड़ाने का झंझट ही खत्म कर दिया। पहले लोग धान सूप में लेकर हवा के बहने का इंतज़ार किया करते थे। हवा का रुख पता करने के लिए एक लंबी लकड़ी पर धागे की सहायता से एक सूखा पत्ता बांध दिया जाता था। यह दिक्सूचक यंत्र का काम करता था। कंधे की ऊंचाई से धीरे-धीरे धान सूप से नीचे गिराया जाता है. धान अलग और दरभा अलग।
क्या तकनीक थी, बचपन का वो समय कितना शानदार था वो। पर अफसोस की आज के "कल" ने हमारा वो सुन्दर और सुनहरा कल छीन लिया।