भारत में लोकतंत्र के विकास के लिए यदि भारत के सभी न्यायालयों के वकील और न्यायाधीश सच्चे न्याय का पालन करें तो भारत की तस्वीर बदल जाएगी।

NBL, 30/10/2024, Lokeshwar Prasad Verma Raipur CG: For the development of democracy in India, if the lawyers and judges of all the courts of India follow true justice then the picture of India will change. पढ़े विस्तार से.....आज भारत के न्यायालयों में अनेक कमियां देखी जा सकती हैं, जिसके कारण न्याय व्यवस्था आज भी कमजोर है, जिसके कारण वर्षों से भारतीय लोकतंत्र सच्चे न्याय के पालन से कोसों दूर है, जिसे भारत के नए युग में बदलना चाहिए। इस सच्चे न्याय की जांच प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की जरूरत है, अगर इसमें कसावट लाई जाए तो सच सामने आ जाएगा और जांच एजेंसियों की सच्चाई सामने आ जाएगी कि क्या उन्होंने वाकई ईमानदारी से जांच की है या जांच अधिकारी ने अपने पेशेवर ज्ञान का इस्तेमाल करते हुए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया है, यह सब न्यायालयों के न्यायाधीशों की बुद्धि पर निर्भर करता है।

आज भी भारत में हर न्याय प्रणाली में खामियां पाई जाती हैं जैसे राजनीतिक दबाव या व्यापारिक दबाव या आर्थिक दबाव या किसी व्यक्तित्व का व्यक्तिगत दबाव जो सच्चे न्याय को कमजोर करता है जैसे कोई ताकतवर व्यक्ति न्याय के एक छोटे से दरवाजे थाने में जाता है और अपने अधिकार का प्रयोग करके सच्चे न्याय को दबाने के लिए दबाव बनाता है और थानेदार आसानी से मान जाता है और कहता है कि मैं इसका ध्यान रखूंगा और उसके व्यक्तित्व के आगे झुक जाता है और सच्चा न्याय पाने वाले लोग कमजोर होकर झुक जाते हैं और अन्याय करने वाला व्यक्ति अहंकारी हो जाता है अपने आप को महान कहता है और न्याय प्रणाली को अपनी रखैल समझता है। यही स्थिति आप भारत की अधिकांश न्यायपालिका के अंदर देख सकते हैं। जो देश के लोकतंत्र को कमजोर करती है, सही न्याय प्रणाली न मिलने के कारण।

आज देश का लोकतंत्र न्यायालयों से कोई छोटी सी सलाह मांगने की हिम्मत नहीं कर सकता। न्यायपालिका के क्लर्कों से लेकर न्यायालय के जजों तक में इतना पेशेवर अहंकार है, जबकि वे भी देश के नागरिक हैं। जबकि सभी न्यायालयों में जजों के दलाल बैठे हैं, जो उनके इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं। ये दलाल खुद भी पैसा कमाते हैं और न्यायपालिका में बैठे क्लर्कों के माध्यम से इनके जजों को भी पैसा मिल रहा है। ये पूरी तरह से देश में रिसाइकिलिंग सिस्टम पर चल रहे हैं, जो लोकतंत्र और देश को कमजोर करने में अहम भूमिका निभा रहा है। भारत की न्याय व्यवस्था एक व्यापार बन चुकी है, जो देश के संविधान के लिए बहुत ही शर्मनाक बात है। क्या डॉ. भीम राव अंबेडकर ने संविधान न्याय देने के लिए बनाया था या फिर व्यापार के लिए बनाया था, जो देश की न्याय व्यवस्था में देश के सबसे बड़े भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है।

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यह एक गंभीर मुद्दा है जो सच को दबा रहा है। न्याय व्यवस्था में वाकई सुधार की जरूरत है और कुछ हद तक जजों की नई पीढ़ी न्याय व्यवस्था में तेजी से बदलाव ला रही है और इसका फायदा देश के लोकतंत्र को भी मिल रहा है, लेकिन अगर यही न्याय व्यवस्था सटीक न्याय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए कट्टरता दिखाए तो भारत की न्याय व्यवस्था कुछ ही दिनों में सुधर जाएगी। देश की सभी समस्याओं का समाधान भारत की न्याय व्यवस्था में निहित है।

देश के कानून सबूतों को आधार मानते हैं और कानून इन्हीं सबूतों के आधार पर अपना फैसला सुनाते हैं। इसलिए नए भारत के लिए नई कानून व्यवस्था को मजबूत करना होगा और जमीनी स्तर पर न्याय दिलाने वाली न्याय व्यवस्था को मजबूत करना होगा। जैसे पुलिस थाना, तहसील कोर्ट, एसडीएम कोर्ट, डीएम कोर्ट। अगर सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के सख्त निर्देशों के तहत इन अदालतों को मजबूत किया जाए तो देश की न्याय व्यवस्था में तेजी से सुधार होगा। क्योंकि अदालतों का न्याय कोई व्यापार नहीं बल्कि सच्चा न्याय होना चाहिए जो अन्याय करने वालों के लिए यमराज का सीधा आदेश हो कि अब हम बच नहीं पाएंगे। अन्याय करने वाले हर व्यक्ति को इसका डर होना चाहिए। यही न्याय व्यवस्था की मजबूती होनी चाहिए।जब भी आप किसी भी न्यायालय के परिसर में पहुंचते हैं तो वहां आपकी देखभाल करने वालों की कोई कमी नहीं होती है। जैसे प्रयागराज पहुंचते ही पण्डो के गुर्गे आपको घेर लेती हैं, वैसे ही देश की अदालतों में भी आपको घेर लिया जाता है और कई लोगों के सामने आपसे पूछा जाता है कि आपका क्या काम है? खुलकर बताएं और आपकी निजता का पूरी तरह से हनन किया जाता है। हमारे देश की न्याय व्यवस्था का ऐसा बुरा हाल है। वहां हर कोई केस का आधार देखकर बोली लगाने लगता है और केस देने वाला मुवक्किल यह नहीं समझ पाता है कि कौन अच्छा और अनुभवी वकील है और कौन नहीं और पूरी तरह से भ्रमित होकर वह अपना केस किसी को भी दे देता है और वे उसे ऐसे चूसते हैं जैसे खटमल खून चूसते हैं और केस देने वाले को पूरी तरह से आर्थिक रूप से कमजोर कर देते हैं।

फिर भी इन न्यायालयों के परिसर में दया नामक न्याय नहीं मिल पाता है। जबकि उन छोटे-छोटे केसों को लंबे समय तक न्यायालय में खींचना ही न्यायालय में बैठे वकीलों का आर्थिक स्रोत होता है जो उस छोटे-छोटे केस को लंबे समय तक खींचते रहते हैं। इन तरीकों को बदलने के लिए काउंसिल बार को भी ध्यान देने की जरूरत है ताकि देश के कई आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देश के वकीलों के माध्यम से न्याय मिल सके। देश में यह व्यवस्था भी आवश्यक है कि न्यायालय परिसर में क्या हो रहा है, इसकी निगरानी हो, न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से न्यायालय में समुचित व्यवस्था हो तथा जो लोग कानून के नाम पर भय पैदा करके लोगों को लूट रहे हैं, उन पर पूर्णतः रोक लगे ताकि देश की न्यायिक व्यवस्था के माध्यम से देश और लोकतंत्र को मजबूती मिल सके।

 


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