सच्चे गुरु की पहचान : बाबा उमाकान्त महाराज ने बताया दिव्य दृष्टि का रहस्य...

सच्चे गुरु की पहचान : बाबा उमाकान्त महाराज ने बताया दिव्य दृष्टि का रहस्य

मुरैना (म. प्र.) : मुरैना निजधाम वासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, वक्त के समर्थ सन्त सतगुरु पूज्य बाबा उमाकान्त  महाराज ने 25 नवम्बर 2024 को जिला मुरैना, म.प्र. में मध्यान्ह में दिए सतसंग में बताया कि जीवात्मा को अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाले ही सच्चे गुरु होते हैं।

 

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उन्होंने बताया कि गुरु उस ताकत का नाम है जो बाहरी आंखों को बंद कर अंतर में उजाला दिखा सके। इस दिव्य प्रकाश को देखने के लिए जीवात्मा की तीसरी आंख, जिसे शास्त्रों में दिव्य दृष्टि भी कहा गया है, को खोलना आवश्यक है। गुरु के बताए नाम के सुमिरन और उनके उपदेश के अनुसार ध्यान, भजन करने से ही यह तीसरी आंख खुलती है और अंतर में चौबीसों घंटे हो रहा राम का चरित्र भी दिखने लगता है।

'गुरु' शब्द का अर्थ।

रू है नाम प्रकाश का, 
गु कहिए अधिकार। 
ताको करे विनाश जो, 
सोई गुरु करतार।।

पूज्य महाराज  ने बताया कि इन बाहरी आंखों को बंद करने पर जो अंतर के अंधकार में उजाला ला दे,बाहर भी जीवन में ज्ञान का प्रकाश कर दे, वास्तव में वही सच्चा गुरु होता है। अब आप कहोगे कि अंतर में कैसे उजाला होता है ? तो जो लोग गुरु के बताये अनुसार अपने अंदर में गए, उन्होंने लिखा है  -

बिना भूम एक महल बना है, 
तामै ज्योति अपारी रे। 
अंधा देख-देख सुख पावे, 
बात बतावे सारी रे।।

लोगों ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि  जमीन नहीं है , पर महल बना हुआ है और जर्रे-जर्रे में रोशनी है, कण-कण में प्रकाश है। जब देखा लोगों ने तभी तो कहा। गोस्वामी जी महाराज भी कहते हैं - 

राम नाम मणि दीप धरु, 
जीह देहरी द्वार। 
गोस्वामी भीतर बाहेरहुँ, 
जौं चाहसि उजियार।।

राम का मतलब जो सब जगह रम रहा है। उस राम के नाम को बताने वाले अगर गुरु मिल जाएं तो ये जीवात्मा प्रकाश में पहुँच सकती है। पहले लोग एक लकड़ी या मिट्टी की बड़ी देहरी बनाते थे जिसके ऊपर दीपक रख देते थे और पूरे कमरे में रोशनी हो जाती थी। ऐसे ही इस मनुष्य शरीर में सबसे ऊंची जगह यानी दोनों आंखों के बीच में नाम का प्रकाश पहुंचाने वाले, अंधेरे से उजाले में ले जाने वाले को गुरु कहते हैं। उन्हीं को समर्थ गुरु, सच्चा गुरु कहा गया। 

सच्चे गुरु की पहचान क्या है ?

गोस्वामी  महाराज ने कहा है-

 गुर पद नख मनि गन जोती। 
सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥

गुरु जो नाम बताएं, उसके सुमिरने से दिव्य दृष्टि खुलती है। इन दोनों बाहरी आंखों के बीच में जो जीवात्मा बैठी है जिसमें तीसरी आंख है, उसी तीसरी आँख को दिव्य दृष्टि कहते हैं। जब यह तीसरी आंख खुल जाती है तब जो अंतर में राम का चरित्र हो रहा है, वह दिखाई और सुनाई पड़ता है।


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