विद्वता के अहंकार में विद्वान पक्षियों की तरह जबानी चोंच लड़ाते हैं, असली आध्यात्मिक विद्या ग्रहण नहीं कर पाते
99वे के चक्कर में फंसे लोगों को रात में नींद भी नहीं आती, सब छोड़ जाना है-ये पता होते हुए भी नहीं छोड़ पाते
नई दिल्ली : उपरी निर्देशों को सुनने वाले कान को खोलने का उपाय नामदान देने वाले, 24 घंटे उजाला करवा देने वाले, दुनियावी भौतिक किताबी और आध्यात्मिक दोनों विद्याओं के सम्पूर्ण जानकार इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि उपरी (दिव्य) आवाज को इन कानों से सुना नहीं जा सकता। उसे सुनने वाला कान, जो इसी काम के लिए बनाया गया है, वो हो गया बंद। उस उपरी आवाज को सुनते रहना और ऊपर से जो निर्देश-आदेश हो रहा है, उसका नियम का पालन करते रहना। गीता रामायण वेद पुराण आदि में सारे नियम लिखे हुए हैं। मनुष्य शरीर के पालन करने के उन नियमों का पालन नहीं हो पा रहा क्योंकि वह आवाज मिल नहीं रही, सुनाई कुछ पड़ नहीं रहा है। और जो अंदर में प्रकाश रोशनी है, वह कर्मों की वजह से हो गयी बंद। अब हो गया अंधेरा। यहाँ अभी तो दिन है, सूरज निकला है लेकिन आंख बंद कर लो तो अंधेरा हो जाता है। तो इन बाहरी आंखों से जितनी भी चीजें देखी जाती हैं, वह सब अंधेरे की ही चीज है। जब वो अंदर की आंख खुलेगी तब- परम प्रकाश रूप दिन राती। नहीं कछु चाहिए दिया घृत बाती।। तब फिर वह प्रकाश मिलेगा, जिस प्रकाश की नगरी में वह प्रभु रहता है। लेकिन सवाल यह है कि वो दिखाई कैसे पड़ेगा? उस (तीसरी आँख) पर तो अच्छे-बुरे कर्मों की मोटी परत पर्दा लग गया। कुछ तो पिछले जन्मों के हैं और कुछ इस जन्म के भी हैं। अच्छे-बुरे कर्म दोनों रहते हैं। अच्छे कर्मों की वजह से देव दुर्लभ मनुष्य शरीर मिला।
बहुत से लोगों को रात को नींद क्यों नहीं आती है
क्योंकि वो 99 के चक्कर में पड़े रहते हैं। 99 का 100, 100 का हजार, हजार का लाख और लाख का करोड़ हो जाए। हालांकि वो ये सुनते भी है कि (मृत्यु के समय) यह सब छोड़ के जाना पड़ेगा। जब वो मालिक आखरी वक़्त पर इस काया कुटी को खाली कराएगा, इस शरीर रूपी पिंजरे से जब जीवात्मा रूपी पक्षी को निकालेगा तो धन-दौलत, रुपया-पैसा कोई भी काम नहीं आएगा, पुत्र-परिवार सब देखते रह जाएंगे, सब यहीं छूट जाएगा। लेकिन मन उस (दुनिया कमाने) में लग गया। मन की आदत है कि जिस चीज में लग जाता है, उसी में लग जाता है। मन कोई चीज भूलना भी चाहे तो वही बार-बार याद आता रहता है। तो बहुत से लोगों को रात को नींद नहीं आती है। तो देखते रहते हैं कि कब अंधेरा खत्म हो, कब उजाला आवे। तो जब यह जीवात्मा अंधेरा से उजाले में जाती है तब इसको कोई दिक्कत नहीं होती है। और यह उजाला नाम की कमाई से ही आता है।
पढ़े-लिखे लोगों को बहुत कठिन क्या लगता है ?
कहते हैं कि जब चार विद्वान बैठ जाते हैं तब जैसे पक्षी चोंच लड़ाते हैं, ऐसे ही वो जबानी चोंच लड़ाते हैं। आपस में वाद-विवाद करते हैं। अपनी-अपनी योग्यता, विद्वता दिखाते हैं। यह विद्वता तो यहां (मृत्युलोक) की है। और यह विद्या जहां खत्म हो जाती है, वहां से अध्यात्म विद्या की शुरुआत होती है। इसीलिए कहा गया- पढ़ना लिखना चातुरी, यह तो काम सहज, काम दलन मन वश करण, गगन चढ़न मन मुश्किल। वो काम (आत्म कल्याण की साधना) इन पढ़े-लिखे लोगों को बहुत कठिन लगता है। और ये अपने विद्वता के आगे इस चीज को अपनाना, लेना, समझना नहीं चाहते हैं। (नुक्सान में रहते हैं।