छत्तीसगढ़ धमतरी.... धर्म, आस्था और देशभक्ति का संगम देखना है तो धमतरी के सटियारा से बेहतर कोई जगह नहीं है. यह प्रदेश का ही नहीं, अपितु देश का इकलौता गांधी मंदिर है जहां पर लोग देवी-देवताओं के साथ स्वतंत्रता संग्राम के 'नायक महात्मा गांधी' की पूजा करते है....
धमतरी में स्वतंत्रता के महानायक की होती है पूजा गंगरेल बांध की खूबसूरत हंसीन वादियों के पीछे बसे सटियारा गांव में 'गांधी' और उनके विचारों' की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है. 'महात्मा गांधी' का यह मंदिर धमतरी जिला मुख्यालय से गंगरेल बांध के रास्ते 40 किलोमीटर और सड़क मार्ग से करीब 70 किलोमीटर दूर सटियारा गांव में मौजूद है.भारत माता सेवा समिति के हाथों मंदिर का संचालनयहां जाने के लिए गंगरेल से नाव या फिर "बोट' का सहारा" लेना पड़ता है. इसके अलावा सड़क मार्ग से जाने के लिए कांकेर जिले के चारामा से होकर जाना पड़ता है. यहां सटियारा में 'भारत माता सेवा समिति' द्वारा 'गांधी मंदिर' का संचालन किया जाता है. बताया जाता है कि समिति से जुडे़ लोगों के 'गुरूदेव दुखू ठाकुर' महात्मा गांधी' के 'परमभक्त' थे. उन्होंने 'गांधी विचारों' को आगे बढ़ाने के लिए गंगरेल के डूबान में 'गांधी मंदिर' की स्थापना किया था.होती है गुरूदेव और 'गांधी' जी की पूजा...उन्होंने अपने साथ अलग-अलग स्थानों से कई परिवारों को भी जोड़ा और गांधी जी के विचारों को अपना कर काम करने सहित उन्हें आगे बढ़ाने का आह्वान किया. गंगरेल बांध बनने से मंदिर डूब गया. जिसे बाद में नदी किनारे फिर से बनाया गया. तब से ले कर आज तक गुरूदेव और 'गांधी' जी की पूजा की जा रही है. इसके अलावा यहां 'भारत माता' की भी पूजा की जाती है. हालांकि इनकी पूजा पद्धति अन्य जगहों से अलग है. 'मंदिर समिति' के लोग चावल के आटे का इस्तेमाल करते हैं. वह मानते हैं कि यहां पूजा करने से 'दुख-संताप' दूर होते हैं....
इस गांधी मंदिर में लगभग सभी पर्वों को धूमधाम से मनाया जाता है. नवरात्र में यहां 'मनोकामना ज्योति' भी जलाई जाती है. राष्ट्रीय पर्व 'स्वतंत्रता दिवस' और 'गणतंत्र दिवस' पर 'ध्वजारोहण' कर 'आजादी की खुशियां' मनाई जाती हैं..
देवतुल्य माने जाते हैं 'अखबार'...
इसके अलावा यहां अखबार की भी पूजा की जाती है. क्योंकि माना जाता है कि इसी अखबार के जरिये लोगों को 'देश की आजादी' का संदेश मिला था. तब से ले कर आज दिन तक अखबार भी यहां 'देवतुल्य' माना जाता है. जिला कलेक्टर का कहना है कि पानी से लगा हुआ 'प्राचीन मंदिर' है. 'गांधी जंयती' पर यहां कार्यक्रम आयोजित करने सहित मंदिर क्षेत्र को 'पर्यटन क्षेत्र' के रूप में विकसित करने का प्रयास किया जाएगा. बहरहाल यहां के लोग आज भी 'गांधी जी'की पूजा के साथ-साथ उनके विचारों को आत्मसात कर रहे हैं. और दूसरों को भी 'गांधीवादी विचारधाराओं' के आत्मसात पर बल दिया जा रहा है.