NBL, 30/04/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. Raipur CG: The usefulness of literature decreased and the dominance of social media increased, but we get knowledge only from books, definitely read.
आज हम नये युग मे जीवन जी रहे है और इस नये युग मे एक से बढ़कर एक विज्ञान द्वारा बनाये गए नये- नये टेकनोलाजी का इश्तेमाल कर रहे हैं और इसका भरपुर आनंद उठा रहे हैं, इसमे से एक मोबाइल फोंन है, जिसमे कई प्लेटफार्म व Aepps है, जिसके उपयोग हम आज कर रहे हैं। और एक से बढ़ कर एक ज्ञान का आदान प्रदान करते हैं, लेकिन जरा सोचो इस ज्ञान का मुख्य ज्ञान आपको कहा से प्राप्त हुई है. जिसे आप एक दूसरे को चिपका रहे हो, पढ़े विस्तार से..
आपके ज्ञान का पिटारे माता व पिता व दादा व दादी व नाना नानी से आगे बढ़ते हुए स्कूल के गुरुओ से लेकर धार्मिक गुरुओ तक सफर करती है, लेकिन इस ज्ञान का अनुभव पुस्तक व साहित्य व घटना व दुर्घटना से मिलती है, इन्ही पुस्तको व साहित्यो से हमे ज्ञान प्राप्त हुई है। और इन्ही ज्ञान को आज मोबाइल के माध्यम से हमे प्राप्त होती है देखने व सुनने व पढ़ने के लिए मिलती है, लेकिन क्या इस ज्ञान को आप सहेजने मे सक्षम है, बिलकुल भी नही कियोंकि यह आपके लिए बिना मेहनत का ज्ञान है, मुफ्त का ज्ञान है।
आप कभी पुस्तक उठा कर ज्ञान प्राप्त नही किया यह ज्ञान किसी पुस्तक पढ़ने वाले मेहनती ज्ञानी का ज्ञान है, जो आपको पढ़ने के लिए भेजे है, आपके मोबाइल मे ताकि कुछ सीखें और अपने जीवन मे उतारे और दूसरो को भी सिखाये और अपने जीवन में बदलाव लायें, लेकिन शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो इस सत्य ज्ञान को आत्मसात करते होंगें, भ्रमित ज्ञान से सदा दूर रहे.
मित्रों अच्छे साहित्य का दौर अब बीत चुका है मुझे या आपको याद नहीं पड़ता कि मैंने कब मुंशी प्रेमचंद को पढ़ा या मैंने किसी किताब के पन्ने अभी हाल में पलटे हों, मुझे नहीं पता चलता कि मैंने कब फणीश्वर नाथ रेणु या दिनकर को दोहराया हो जब दिमाग पर जोर डालता हूं तो पता चलता है किताबों की जगह अब सोशल मीडिया और स्मार्टफोन ने ले ली है ।हम सब की बौद्धिकता facebook और whatsapp से आगे नहीं बढ़ पा रही है । मैंने यह भी पाया है कि किसी जमाने में हम अखबार के संपादकीय पढ़ा करते थे.
अब नया दौर है स्मार्टफोन पर ही हम लोग न्यूज़ एप्प से समाचार पढ़ लेते हैं किसी भी फॉरवर्ड को इतिहास समझ बैठते हैं ।
पर यह रुझान मुझे अच्छा प्रतीत नहीं होता है हम पढ़ने कुछ अच्छा जाते हैं और मानस पटल पर ठेल कुछ और दिया जाता है,
Whatsapp की बानगी देखिए आप कई प्रकार के ग्रुप में जुड़े हुए हैं आपको कई प्रकार के मैसेज मिलते हैं जिसमें कुछ धार्मिक होते हैं कुछ राजनीतिक होते हैं कुछ सांप्रदायिक होते हैं , कुछ मसाले वाले भी.
जिस उद्देश्य से आप ने ग्रुप ज्वाइन किया था वह उद्देश्य तो हाशिये पर चला जाता है और चुनाव /राजनीति मुसलमान/हिन्दू/ शाहरुख खान /सलमान खान /साक्षी महाराज/ट्रम्प महान प्राथमिकताओं में आ जाते हैं ।
इनका दूर-दूर तक हम से कोई लेना देना ही नहीं है। ऐसा साहित्य या ऐसी विचारधारा जिससे हमारा कोई वास्ता ही नहीं हमें मजबूरन पढ़ना पड़ता है और जिसकी वजह से मानसिक तनाव और अवसाद की स्थिति निर्मित होती है । अंतर्मन चाहता कुछ और है ठूंसा कुछ और जा रहा है , अंदर के द्वंद्व से व्यक्ति व्यग्र और चिड़चिड़ा होता जा रहा है ।
ठीक इसी प्रकार से facebook में अलग-अलग राजनीतिक पार्टियां अपने प्रचार प्रसार के लिए अपने पसंदीदा पेज या वेबसाइट को स्पॉन्सर करती हैं जाने अनजाने में हम भेद नहीं कर पाते । जो पोस्ट हमारे सामने चिपकी हुई है वह मौलिक है या जानबूझकर हमारे टाइमलाइन में चिपकाई गई है .
हिंसक, अश्लील , कट्टर , सनसनी , चित्र देख कर बरबस ही हम क्लिक करते हैं और फिर पूरी इच्छित सामग्री, विज्ञापन हमे जबरजस्ती भरभरा के परोस दी जाती है । आप खेलने क्रिकेट गए थे और फुटबॉल खिला दिया जाता है । खोलोगे कुछ, मिलेगा कुछ!!!
अमूनन हम आज 5 से 6 घण्टे मोबाइल के द्ववारा सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं और इस प्लेटफार्म पर बहुत ही प्रवीण और चतुर लोग हमारे अवचेतन मन को मॉडिफाई (modify) और दूषित करने का काम कर रहे हैं ।
सत्य की भांति गलत तथ्य ,तर्क और आंकड़े देकर युवाओं के मानस को बदलने का काम चुप चाप हो रहा है । अपने चरित्रों को महान और दूजे के चरित्रों को खलनायक बना कर पेश किया जा रहा है । बारम्बार परोसी गलत जानकारी को हम प्रमाण मानते जा रहे हैं ।
इसलिए यह समय सतर्क रहने का है , जांचे परखे और फिर पढ़े , कुछ भी फॉरवर्ड या स्पांसर पोस्ट को पढ़ने की जरुरत नही है , दिमाग में अच्छा और सकारात्मक डालिये, खुद भी खुश रहें और चारो और खुशियां फैलाएं.
बाजार, पार्टियों , कंपनियों, नेताओं समूहों के उद्देश्य और एजेंडे समझें और जीवन का आनंद लें।