जीवात्मा ही इस जड़ शरीर को चेतन बनाए हुए है – बाबा उमाकान्त महाराज
जीवात्मा ही इस जड़ शरीर को चेतन बनाए हुए है – बाबा उमाकान्त महाराज
सन्तों ने ही इस शरीर, जीवात्मा व सृष्टि का पूरा भेद खोला
पेंड्री। वक्त के सन्त सतगुरु परम पूज्य बाबा उमाकान्त महाराज ने बताया कि जो वस्तु स्वयं एक जगह से दूसरी जगह आ जा ना सके उसको जड़ कहते हैं एवं जो अपनी इच्छा अनुसार चल फिर सके उसको चेतन कहते हैं। यह शरीर जड़ है। परमात्मा की अंश जीवात्मा ही इस शरीर को चेतन किए हुए है, तभी यह चल फिर रहा है। अब जड़ और चेतन की गांठ बन गई और गांठ जब मजबूत बन जाती है तो जल्दी खुलती नहीं है। कहां बन गई? इसी मनुष्य शरीर के अंदर में।
जड़ और चेतन की मजबूत गांठ खुल नहीं रही है।
अब जड़ और चेतन की ऐसी गांठ बन गई कि खोलने पर भी नहीं खुल रही है और बंधी होने के नाते यह जीवात्मा ऊपरी लोकों की तरफ जा नहीं पाती है तो आदमी का ज्ञान-भान खुलता नहीं है। मनुष्य के अंदर उतना ही ज्ञान रहता है, उतनी ही जानकारी हो पाती है कि जितनी शरीर से जानी जा सकती है, शरीर की आंखों से देखा जा सकता है, शरीर के कानों से सुना जा सकता है, मुंह से बोला जा सकता है। आगे की जानकारी नहीं हो पाती कि आगे भी कुछ है। अगर वह गांठ खुल जाए तो यह जीवात्मा जो इधर इंद्रियों के घाट पर मन के साथ बैठी हुई है, वह ऊपरी लोको में चली जाए, इस पिंड लोक को छोड़ कर के अंड, ब्रह्मांड, पार ब्रह्मांड लोक में चली जाए तो उधर की भी जानकारी हो जाए।
सन्तों ने ही सारा भेद खोला।
जब सतगुरु मिले, सतगुरु की दया हुई और उन्होंने भेद खोला और जो उन्होंने देखा और सुना, कहा ना कि –
कहा सुनी की बात नहीं, देखा देखी की बात।
सुरत समाई शब्द में, मगन रही दिन रात।।
तो ये कहा सुनी, लिखा पढ़ी की बात नहीं है। ये तो देखा देखी की बात है। सन्तों ने जब ऊपर में जाकर के देखा, तब सारा भेद बताया और फिर उपदेश किया। लोगों को समझाने लगे कि भाई तुम इतने जकड़ में हो कि निकल नहीं पा रहे हो।