मध्यप्रदेश

मेहनत-ईमानदारी की कमाई से ही मिलती है बरकत व शांति – बाबा उमाकान्त महाराज

मेहनत-ईमानदारी की कमाई से ही मिलती है बरकत व शांति – बाबा उमाकान्त महाराज

आलस्य सबके लिए दुश्मन होता है

उज्जैन। वक्त गुरु परम संत बाबा उमाकान्त महाराज ने बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन पर नववर्ष सतसंग कार्यक्रम में कहा कि शुरू से ही जो पेड़ जमीन से निकलता है वह अगर सीधा ना किया और टेढ़ा हो गया तो फिर उसको सीधा कर पाना बड़ा मुश्किल है। वह पेड़ मोटा तो होता जाएगा लेकिन टेढ़ा ही रहेगा। ऐसे ही बच्चे बड़े हो जाते हैं, ताकतवर हो जाते हैं, शरीर से हष्ट-पुष्ट हो जाते हैं लेकिन जो आदत उनकी बन गई वह छूटती नहीं है। मां बच्चों को ज्यादा प्यार जब करती है तो वही बच्चे बिगड़ जाते हैं। मां को बचपन में ही छोटे बच्चों को समझाना चाहिए, मनाना चाहिए लेकिन तब भी ना माने तो पिता से डांट लगवा देना चाहिए, तब वे आगे चलकर बिगड़ते नहीं हैं।

आलस्य परमार्थी का दुश्मन होता है

आलस्य नींद किसाने खोवा, चोरे खोवा खांसी।

तो खोवा मतलब बर्बाद किया। अगर किसान, व्यापारी, नौकरी करने वाला, भजना नंदी आलस्य कर जाए तो समझो कामयाब नहीं होगा। आलस्य सबके लिए दुश्मन होता है लेकिंन परमार्थी के लिए ज्यादा होता है क्योंकि आलस्य में ही जीवन निकल जाता है और फिर कर्मों की सजा मिल जाती है इसलिए बच्चे एवं बच्चियों जो भी काम करते हो खेती का, दुकान का, दफ्तर का, मजदूरी का, पढ़ाई लिखाई का, नौकरी का, चाहे घर का काम करती हो. बच्चों की देखरेख करती हो उसको आप मेहनतऔर ईमानदारी से करो कि जिससे बरकत मिले सुख मिले और शांति मिले।

गरम रोटी और ठंडी रोटी किसे कहते हैं ?

एक महा आलसी लड़का था। वह कुछ करता नहीं था और बाप दादा की कमाई से ही खाता था। उसकी माँ जब भी उसे खाना परोसती, तो कहती, “खा ले, खा ले, ठंडी रोटी खा ले।” लड़का बिना कुछ कहे खाना खा लेता। समय बीतने पर उसकी शादी हो गई। माँ ने अपनी बहू से कहा, “बेटी, यह बड़ा मनुहार करवाता है। जैसे मैं इसे प्यार से समझाकर खिलाती हूँ, वैसे ही तुम भी इसे प्यार से समझाकर खाना खिला देना।” एक दिन, जब बहू ने उसे गरम-गरम रोटी परोसी और कहा, “खा लो, खा लो, ठंडी रोटी खा लो,” तो लड़का गुस्से में आकर उठ गया और खाना नहीं खाया। माँ के लौटने पर बहू ने सारी बात बताई। माँ ने लड़के से पूछा, “तुमने खाना क्यों नहीं खाया?” लड़के ने गुस्से में कहा, “आप भी कहती हैं, ‘खा लो, खा लो, ठंडी रोटी खा लो,’ और वह भी यही कहती है, जबकि रोटी गरम-गरम होती है। इसलिए मैंने नहीं खाया।”। माँ ने समझाया, “बेटा, मैं ऐसा इसलिए कहती हूँ क्योंकि तुम अपने पिता की कमाई खा रहे हो, जो ठंडी रोटी के समान है। यदि तुम मेहनत करके खुद कमाते और खाते, तो मैं दिल से कहती, ‘खा लो बेटा, गरम-गरम रोटी।’। इसीलिए हमेशा मेहनत करके ला कर ही खाना चाहिए।

बीमारी व तकलीफों में आराम देने वाला नाम “जयगुरुदेव”

किसी भी बीमारी, दुःख, तकलीफ, मानसिक टेंशन में शाकाहारी, सदाचारी, नशामुक्त रहते हुए जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव की ध्वनि रोज सुबह-शाम बोलिए व परिवार वालों को बोलवाइए और फायदा देखिए।

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