बच्चों ! पढ़ाई पूरी होने के बाद खाली मत बैठो, जहां नौकरी मिल जाए कर लो – बाबा उमाकान्त महाराज

बच्चों ! पढ़ाई पूरी होने के बाद खाली मत बैठो, जहां नौकरी मिल जाए कर लो – बाबा उमाकान्त महाराज
सफल होने वाले बच्चे हर चीज का टाइम टेबल बनाए हुए रहते हैं
उज्जैन। वक्त गुरु परम सन्त बाबा उमाकान्त महाराज ने कहा कि हर काम का टाइम टेबल बना लो। अच्छे पढ़ने लिखने वाले जो बच्चे होते हैं, वे चाहे कोई भी विषय पढ़ना हो उसका टाइम टेबल बनाए हुए रहते हैं कि इतनी देर अंग्रेजी पढ़ेंगे, इतनी देर गणित पढ़ेंगे, इतनी देर इतिहास, भूगोल पढ़ेंगे। पढ़ाई के साथ-साथ और भी काम जैसे उनके खेलने का टाइम, समाचार सुनने का जिससे दुनिया की जानकारी हो जाए, वह भी निश्चित रहता है।
जब टाइम टेबल बन जाता है, तब फिर मन एक समय एक ही काम में लगता है। जैसे किसी बच्चे का टाइम टेबल बना हुआ है और चार बजे खेलने का टाइम है तो चार बजते ही खेल में मन लग जाता है कि चलो अब थोड़ा खेल आते हैं जिससे व्यायाम हो जाएगा, पेट सही रहेगा, नसें ढीली हो जाएंगी, रक्त का संचार शरीर में ठीक से हो जाएगा। तो उस समय बच्चे का पढ़ाई पर से ध्यान हट जाता है। और जितनी देर खेलता है, मन उसी में लगा रहता है। ऐसे ही जब पढ़ता है तो मन उसी में लगा रहता है।
जहां नौकरी मिल जाए वहीं नौकरी कर लो, और फिर जब अच्छी नौकरी मिल जाए, तब उसमें चले जाओ
बच्चों, देखो ! पढ़ाई करने के बाद खाली मत बैठो, खाली दिमाग शैतान का घर होता है। ऐसा भी होता है कि गलत बच्चे मिल गए और ब्रेनवॉश कर दिया। समझाते-समझाते जाति बदल देते, धर्म बदल देते, आतंकवादी बना देते हैं, माओवादी बना देते हैं, नक्सलवादी बना देते हैं, देशद्रोही बना देते हैं, फिर जब पकड़े जाते हैं और उनके इतिहास का पता लगाया जाता है, तब पता चलता है कि बहुत शरीफ घर का लड़का था, पढ़ने में बहुत तेज था, लेकिन संग का दोष आ गया। तो ऐसे संग दोष से बचने के लिए दिमाग को खाली मत रखो, कुछ ना कुछ दिमाग कहीं लगाते रहो। कहां लगाते रहो? जहां नौकरी मिल जाए वहीं नौकरी कर लो, और जब अच्छी नौकरी मिल जाए, तब उसमें चले जाओ।
भौतिक विद्या के साथ-साथ आध्यात्मिक विद्या की भी आवश्यकता होती है
आध्यात्मिक विद्या किसे कहते हैं? जहां ये भौतिक विद्या खत्म हो जाती है, वहां से आध्यात्मिक विद्या की शुरुआत होती है। जो विद्या इन आंखों से देख कर के पढ़ते हैं, मुंह से बोलते हैं, याद करते हैं, रटते हैं, वह भौतिक विद्या कहलाती है और इन आंखों से जो विद्या नहीं पढ़ी जा सकती, नहीं देखी जा सकती है, वह आध्यात्मिक विद्या कहलाती है। अब जैसे भौतिक विद्या पढ़ने के लिए वक्त के मास्टर की जरूरत पड़ती है, ऐसे ही आध्यात्मिक विद्या सीखने के लिए वक्त के गुरु (आध्यात्मिक गुरु) की जरूरत होती है। भौतिक विद्या के साथ-साथ आध्यात्मिक विद्या की भी आवश्यकता होती है। संगत में बहुत सी बच्चियाँ हैं जो पढ़ाई भी करती हैं और साधना भी करती हैं। वे बच्चे और बच्चियां जो समय निकाल कर के विश्वास के साथ साधना कर लेते हैं, वे भौतिक विद्या और आध्यात्मिक विद्या दोनों में सफलता प्राप्त कर जाते हैं।