जिस तरह से भोजन को एकांत में खाया जाता है, उसी तरह से दान भी चुपके से ही दिया जाता है – बाबा उमाकान्त महाराज

जिस तरह से भोजन को एकांत में खाया जाता है, उसी तरह से दान भी चुपके से ही दिया जाता है – बाबा उमाकान्त महाराज
मुट्ठी बांध कर के दान देना चाहिए कि जिससे कोई देख ना ले
बावल, रेवाड़ी। हरियाणा बाबा उमाकान्त महाराज ने बताया कि कुछ लोग दिखावे का दान करते हैं और कुछ लोग चुपके से करते हैं। पूज्य बाबा ने इसे समझाने के लिए एक दर्जी और सेठ जी की कहानी का उदाहरण भी दिया; उन्होंने कहा एक दर्जी था जो खूब दान करता था और जनहित के कार्यों में आगे रहता था, जबकि एक सेठ जी मामूली दान देते थे। लोग दर्जी की खूब सराहना करते थे क्योंकि वह खुद आगे बढ़कर ज़रूरतमंदों की मदद करता था—भूखों को भोजन, रोगियों को दवा, और गरीबों को कपड़े देता था। लेकिन जब सेठ जी का निधन हुआ, दर्जी ने अचानक दान देना बंद कर दिया। लोगों ने पूछा तो उसने बताया, “मैं तो सिर्फ एक माध्यम था, असल में दान तो सेठ जी देते थे। मैं तो उन्ही के पैसो से सेवा करता था। अब वह नहीं रहे, तो मैं कहाँ से दूं?” तो कहते हैं कि दान देना चाहिए मुट्ठी बांध कर कि कोई देख ना ले। जिस तरह से भोजन को एकांत में खाया जाता है, उसी तरह से दान भी चुपके से ही दिया जाता है।
ब्याज का जो पैसा होता है वह फलदाई नहीं होता है
ब्याज का जो पैसा होता है वह फलदाई नहीं होता है, लेकिन ब्याज की एक सीमा होती है, व्यापार में मुनाफे की एक सीमा होती है। जैसे कंपनी वाले ही मुनाफा निश्चित कर देते हैं; पैकेट पर जो लिखा रहता है और जितने में वह व्यापारी को मिला उसके बीच का जो अंतर है उसी मुनाफे से उसका खर्चा चल सकता है यदि जरूरत से ज्यादा खर्चा ना किया जाए। या थोड़ा बहुत उसमें जोड़ लिया जिससे नौकर – चाकर का खर्चा, पानी, बिजली का खर्चा, एक जगह से दूसरी जगह भेजने का खर्चा निकल जाए तो वह मुनासिफ है।
एक आदमी हल्दी खरीदने गया। कहा “हल्दी क्या भाव है?” दुकानदार बोला “जैसी चोट दर्द करे!” पूछा “क्या मतलब?” बोला “अगर रात में देर से कोई आए और जगाए तो समझ जाओ कि चोट लगी है (हल्दी से चोट पर सिकाई की जाती थी)” तो इसी तरह जब देख लेते हैं कि कैसा मर्ज है, कैसा मरीज है, तो दवा का दाम बढ़ा देते हैं। तो इस तरह का मुनाफा फलदाई भी नहीं होता है और जैसा आता है वैसा चला भी जाता है और उससे बच्चों का दिल, दिमाग, बुद्धि भी खराब होती है।