छत्तीसगढ़

Nurse’s Day special : “एक गुरु……जो नर्सिंग ऑफिसर थे”…

Nurse’s Day special

“एक गुरु……जो नर्सिंग ऑफिसर थे”

मुंगेली, छत्तीसगढ़। एम्स के उस वार्ड में, जहाँ हर बीतता क्षण किसी न किसी के दर्द की गवाही दे रहा था, वहाँ एक लड़की अपने डर और बेचैनी से जूझ रही थी। अस्पताल की ठंडी सफेद दीवारें उसे और भी अजीब महसूस करा रही थीं। वह लेखिका थी, शब्दों की जादूगर, लेकिन उस समय उसके मन में कोई कविता, कोई कहानी जन्म नहीं ले रही थी क्योंकि उस समय उसकी दुनिया में सिर्फ सुइयों का डर समाया था।

वह अस्पताल में भर्ती थी, टेस्ट दर टेस्ट हो रहे थे, और हर बार सुई देखकर उसका दिल बैठ जाता। पहले दिन ही लगभग 5 बार उसे चुभाया गया।

शाम को ड्यूटी बदलते ही एक नए सीनियर नर्सिंग ऑफिसर आलम खान सर जी आए। साधारण-सी बात थी—रूटीन चेकअप। उन्होंने बीपी चेक करने के लिए उसका नाम पूछा। लड़की ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया, जैसे उसे दुनिया से कोई मतलब ही न हो। वह सुइयों के दर्द से चिढ़ी हुई थी।

दूसरे दिन वही सर फिर आए। इस बार उन्होंने उसकी माँ से पूछा, “क्या हुआ इन्हें? कैसे बीमार पड़ीं ?”

माँ ने विस्तार से सब बता दिया। सर बड़े शालीन थे, शांत और व्यवहारिक। वे सभी मरीजों से हँसी-मज़ाक करते, मरीज़ों को सहज महसूस कराते। लेकिन लड़की को तो उस समय सभी नर्सिंग स्टाफ से चिढ़ थी । उसके मन में अस्पताल, डॉक्टरों और उनकी सुइयों के लिए गुस्सा भरा था।

वह मन ही मन उस वैज्ञानिक को भी खूब कोसती:_” खुद तो चले गए महानुभव, मेरे जैसे छोटे छोटे बच्चो की जान मुसीबत में डाल गए ये सुईयां बनाकर… आने दो ऊपर मुझे भी, आपको 500 सुईयां एक साथ लगाऊंगी तब पता चलेगा आपको दर्द का।”

तीसरे दिन लड़की के पिता ने बातों बातों में सर को बताया कि उनकी बेटी लेखिका है। लड़की ने भी अपनी किताबों की तस्वीरें दिखाईं। सर प्रभावित हुए और उन्होंने लड़की की तारीफ भी की।

लड़की को लगा, सर सिर्फ सहानुभूति जता रहे हैं, उन्हें लेखन में कोई रुचि नही होगी? लेकिन जब किसी कारण से उसने सर से उनका नंबर लिया और उन्होंने अपनी स्पंदन नामक किताब में छपी कहानियों की दो तस्वीरें भेजीं, तो उनकी कहानियाँ उसे भीतर तक छू गईं। वह चकित रह गई—इतनी सुंदर और भावपूर्ण रचनाएँ! इतना सुंदर लेखन तो केवल एक अनुभवी लेखक ही कर सकते है।

पहली कहानी “हौसले की उड़ान” एक प्रेरणादायक कहानी थी, जिसमें सरफराज नामक व्यक्ति की संघर्षपूर्ण यात्रा को दर्शाया गया है। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, वह मेहनत और लगन से अपने सपनों को साकार करने की कोशिश करता है। एक कठिन मोड़ पर उसकी मुलाकात अनिल अंबानी से होती है, जो उसकी आर्थिक स्थिति को ठीक करने हेतू दस लाख का चेक एक साल बाद वापिस लेने की शर्त पर कर्ज स्वरूप सरफराज को देते हैं l इसी मोड़ पर कहानी में सर ने सरफराज के स्वाभिमान का बखूबी चित्रण किया था।

सरफराज चेक तो ले लेता है किंतु वह चेक के रुपयों को हाथ न लगाकर अपनी मेहनत से अपनी स्थिति को बदलने में सफल हो जाता है। एक साल बाद जब वह अनिल अंबानी को चेक वापिस करने जाता हैं तब उसे पता चलता है कि खुद को अनिल अंबानी बताने वाला वह शख्स एक पागल है और सबको अनिल अंबानी बताकर नकली चेक बांटता रहता है।

यह कहानी आत्मविश्वास, परिश्रम और विपरीत परिस्थितियों में कभी हार न मानने की सीख देती है।

दूसरी कहानी “वुहान डायरी” के रूप में COVID-19 महामारी के शुरुआती दिनों की भयावह स्थिति को दर्शाती है। इसमें लॉकडाउन, भय, वैज्ञानिक चेतावनी और मानवता की नासमझी को प्रभावी रूप से उकेरा गया है। सर ने महामारी के फैलने, मौतों और लोगों की लाचारी का मार्मिक चित्रण किया है। वैज्ञानिक प्रगति और प्रकृति से छेड़छाड़ के खतरों को उजागर करते हुए यह कहानी एक मजबूत संदेश देती है। संक्षेप में, यह एक चेतावनी है कि हमें विज्ञान और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए।

सर ने सरल और प्रभावशाली भाषा में कहानी को प्रस्तुत किया है, जिससे पाठक सहज ही घटनाओं की गंभीरता महसूस कर सकते हैं। उन्होंने महामारी के भय, वैज्ञानिक चेतावनी और मानवीय संवेदनाओं को संतुलित रूप से उकेरते हुए एक सशक्त लेखन शैली अपनाई है।

दोनो कहानियां पड़कर वह समझ गई कि यह सर सिर्फ एक चिकित्सा विशेषज्ञ नहीं, बल्कि एक संवेदनशील लेखक भी हैं। उसने मन ही मन उन्हें अपना गुरु मान लिया। जीवन में जिससे,जो कुछ भी सीखने को मिले, वही गुरु बन जाता है और लड़की ने ना सिर्फ उनकी रचनाओं को पढ़ा बल्कि उनमें छिपे भावो एवम् शब्दों को गहराई से समझा भी।

कहते है ना कि “हर लिखी बात तो हर पढ़ने वाला समझ नही सकता क्योंकि लिखने वाला भावनाएं लिखता है और पढ़ने वाला केवल शब्द।”

लड़की सर की रचनाओं से काफी प्रभावित थी, खासकर उनके शब्दों के संयोजन और भावनाओं के तालमेल ने लडकी के मन पर गहरा प्रभाव डाला था।

अब लड़की का गुस्सा उन सर पर नही रहा बल्कि अब तो वह उनकी फैन बन गई। वह उन्हें सर कहकर संबोधित करती थी। लडकी ने कई बार गौर किया कि वे सर सभी मरीजों से सभ्यता से बात करते, उनकी तकलीफ पूछते, उनसे मजाक करते और उन्हें अस्पताल में भी बिलकुल घर की तरह सहज महसूस करवाते। वे अनुभवी एवम् वरिष्ठ थे इसलिए सभी का मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी उन्ही की थी। इतने अनुभवी होने के बावजूद उनमें लेशमात्र भी अहंकार नही था। वे अपने काम को पूरी श्रद्धा और ईमानदारी के साथ निभाते थे।

उनके इसी विनम्र स्वभाव के कारण लड़की उनका काफी सम्मान करती थी।

लडकी का एक आखिरी टेस्ट बचा था—नर्व बायोप्सी। यह पहली बार था कि लड़की का कोई ऐसा टेस्ट होने वाला था, जिसमें उसकी नस काटी जानी थी। वह अंदर तक सहम गई थी।

सर को जब यह पता चला, तो उन्होंने उसे सहज करने के लिए बहुत समझाया – “कुछ नही होगा, पता भी नही चलेगा आपको, आप नाहक ही घबरा रही है।”

सर उससे काफी हँसी मजाक भी किए ताकि वो तनावमुक्त रहे पर फिर भी लड़की काफी डरी हुई थी। उसे हौसला देने के लिए सर ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “आप तो लेखिका हैं, आपके तो बहुत प्रशंसक हैं, और हम डॉक्टर भी आपके फैन हैं।”

लड़की को यह सुनकर क्षणिक खुशी हुई, लेकिन डर अभी भी बरकरार था।

ऑपरेशन थिएटर का नेमप्लेट देखकर ही वो रोने लगी।जब ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा बंद हुआ, उसने कैंचियाँ और औजार देखे, उसका डर चरम पर पहुँच गया।

अब तो केवल दो ही रास्ते थे या तो जोर जोर से चिल्लाकर ये बायोप्सी रुकवा दे या फिर चुपचाप डर का सामना करे। उसे दूसरा रास्ता ही बेहतर लगा । अब उसे अपने मन को कही उलझाना था ताकि उसे दर्द का अहसास ना हो। लेकिन पिछले बारह दिनों से तो वह अस्पताल में ही थी इसलिए घर की कोई बात तो उस समय याद ही नहीं आई मगर तभी उसे सर की कहानियां और बातें याद आईं। उसने अपने दिमाग को उन शब्दों में उलझा लिया…—और इस सोच में इतनी मग्न हो गई कि कब टेस्ट पूरा हो गया, उसे पता भी न चला। हां, पर उसके बाद दर्द का अहसास जरूर हुआ।

जब वह वार्ड में लौटी, सर फिर आए। वह दर्द में थी, लेकिन सर ने फिर भी उसे हँसाने की कोशिश की। ऐसे नर्सिंग डॉक्टर बहुत कम ही होते हैं, जो सिर्फ मरीज़ का इलाज नहीं करते, बल्कि उसके मन का डर भी दूर करने की कोशिश करते हैं। लड़की ने अब सर को आदर्श मान लिया था।

अब वह अस्पताल से घर लौट आई थी, लेकिन सर के संपर्क में थी। कोई भी परेशानी होती, तो सर उसकी मदद को तैयार रहते। और अब, जब भी वह कुछ लिखती, सबसे पहले उन्हें ही दिखाती। वे अपनी व्यस्तता के बावजूद लडकी की कहानी ना सिर्फ पढ़ते बल्कि अपनी प्रतिक्रिया भी देते। उसमे छिपी खूबियों या गलतियों का विश्लेषण भी करते।

अब लड़की की एक ही इच्छा थी — “सर फिर से लेखन शुरू करें।”

उसे पता था कि सर की ज़िंदगी में बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ थीं—ड्यूटी, परिवार, बच्चे—लेकिन वह जानती थी कि उनके लेखन में जादू है। और जादू को कभी खोने नहीं देना चाहिए।

सर पहले लिखते थे किंतु वर्तमान में काम की अधिकता एवम् समय की कमी के कारण लेखन हो नही पाता मगर वह चाहती थी कि उनके शब्द एक किताब का रूप लें, ताकि दुनिया उनके भीतर छिपे अनुभवी लेखक को जान सके।

कुछ दिनों बाद उस लड़की को फिर कोई खास सुईयां लगवाने के लिए भर्ती होना पड़ा। उसे लगातार 5 दिनों तक 26 सुईयां लगनी थी।

सुईयां लगने का डर तो जैसे उसकी रगों में बस गया था। हर सुबह जब नर्स वार्ड में आती, उसकी धड़कनें तेज़ हो जातीं।

उसका मन बार बार भगवान से प्रार्थना करता :-” प्लीज भगवान जी, उन सर या तनु दीदी को भेज दीजिए, वे ही सुई लगाए ताकि ज्यादा दर्द ना हो।”

क्योंकि सर या तनु दीदी जब सुई लगाते तो दर्द का पता भी ना चलता।

वह हर रोज भगवान से यही प्रार्थना करती – “भगवान, प्लीज़…आज सर या तनु दीदी को भेज दो… ।” पर शायद इस बार उसे इन सुईयों का दर्द सहन करना ही था इसलिए तो डॉक्टर सर की ड्यूटी कभी उसके लिए नहीं लगी और ना ही उन नर्स दीदी की। उसकी यह प्रार्थना अस्पताल के नियमों में कहीं गुम हो गई।

लड़की घर लौट आई, लेकिन उसकी ख्वाहिश अब भी बरकरार थी—”सर अपने शब्दों को सबके सामने लाएँ, ताकि जिस तरह मैंने उन्हें गुरु माना, वैसे ही और नवोदित लेखक उनसे प्रेरणा ले सकें।”

“क्योंकि कभी-कभी, नर्सिंग ऑफिसर केवल चिकित्सा सेवा नहीं करते , वे गुरु भी होते हैं।”

स्वतंत्र लेखिका एवम् साहित्यकार
शिखा गोस्वामी “निहारिका”
मारो, मुंगेली, छत्तीसगढ़

Related Articles

Back to top button