बिहार

Bihar Elections 2025: OBC, EBC, SC उम्मीदवारों की रणनीति से NDA को मिलेगा बढ़त? 243 सीटों पर क्या है खास प्लान….

बिहार: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के तहत भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने राज्य की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवारों के चयन में सामाजिक समीकरणों को प्राथमिकता देने का फैसला लिया है। एनडीए की योजना है कि 75 फीसदी से ज्यादा सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग ( OBC), अति पिछड़ा वर्ग (EBC), अनुसूचित जाति (SC) और महादलित समुदायों से उम्मीदवार उतारे जाएं।

भाजपा की यह रणनीति केवल सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश नहीं है, बल्कि इससे एनडीए बिहार की राजनीतिक जमीन पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। इस रणनीति के तहत, एनडीए ने बिहार की सभी विधानसभा सीटों पर जातीय आधार पर सर्वे और ‘कास्ट मैपिंग’ की प्रक्रिया पूरी कर ली है।

भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों और सहयोगी दलों के नेताओं ने राज्य का दौरा कर स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाकात की, ताकि हर सीट पर प्रभावशाली जातीय समूहों की पहचान की जा सके। ऐसे में आइए ये समझने की कोशिश करते हैं कि आगामी चुनाव में NDA को इस रणनीति का फायदा मिलेगा।

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उम्मीदवारों की घोषणा कर सकता है NDA

भाजपा इस बार किसी एक नेता को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने के बजाय, सामूहिक नेतृत्व को आगे बढ़ाने की योजना बना रही है। इसमें बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा, राज्य सरकार में मंत्री मंगल पांडेय, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय सहित अन्य प्रमुख नेता शामिल हैं।

एनडीए का मकसद समय से पहले सीटों का बंटवारा तय करना है, ताकि सहयोगी दलों के बीच किसी भी तरह की असहमति से बचा जा सके। इस रणनीति के तहत, उम्मीदवारों की घोषणा भी चुनाव आयोग के चुनावों की घोषणा से पहले की जा सकती है। जैसा भाजपा ने अन्य राज्यों में भी करती आई है।

NDA की रणनीति का सामाजिक आधार

बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण लंबे समय से अहम भूमिका निभाते आए हैं। राज्य में ओबीसी , ईबीसी और एससी मतदाता कुल जनसंख्या का बड़ा हिस्सा हैं। एनडीए इस पूरे वर्ग को एक राजनीतिक मंच पर लाकर, एक बड़े सामाजिक गठबंधन को तैयार करना चाहता है। बिहार के जाति सर्वे के मुताबिक अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) 36.01%, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) 27.12%, और अनुसूचित जाति (SC) 19.65% की आबादी इतनी है।

ये वर्ग परंपरागत रूप से अलग-अलग दलों के वोट बैंक रहे हैं…

ओबीसी (OBC): इनमें यादव, कुशवाहा, कुर्मी, माली जैसे समुदाय आते हैं। यादवों का झुकाव पारंपरिक रूप से राजद की ओर रहा है।

ईबीसी (EBC): इनकी संख्या 100 से ज्यादा जातियों में बंटी हुई है और ये किसी एक दल के प्रभाव में नहीं रहे। यह वर्ग निर्णायक भूमिका निभा सकता है। हालांकि इनका झुकाव बदलता रहता है।

एससी (SC): चमार, पासवान, धोबी जैसे समुदाय, जिनमें से कुछ लोजपा (रामविलास) और जेडीयू के साथ जुड़े रहे हैं।

भाजपा-JDU का गणित

एनडीए में भाजपा और जेडीयू, दोनों ही पार्टियां इन वर्गों में अपनी मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश कर रही हैं, भाजपा को शहरी, उच्च वर्ग और व्यापारिक वर्गों के साथ-साथ अब ओबीसी-ईबीसी वर्गों में भी अपना आधार बढ़ाना है। जेडीयू पहले से ही नीतीश कुमार के “सात निश्चय” अभियान, “महादलित” और “ईबीसी आरक्षण” जैसे अभियानों के चलते ग्रामीण वंचित वर्गों में लोकप्रिय रही है।

ऐसे में पूरी संभावना है कि यह संयुक्त रणनीति विपक्षी पार्टी राजद और कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है, जो इन जातियों में अपनी परंपरागत पकड़ खोते जा रहे हैं।

क्या इस रणनीति से फायदा होगा?

जातीय गणित को साधना बिहार में चुनाव जीतने की कुंजी मानी जाती है। अगर सही उम्मीदवार चुने जाते हैं तो इन वर्गों का स्थायी समर्थन भी मिल सकता है। हालांकि अगर उम्मीदवार चयन में किसी जाति या समूह को कमतर आंक लिया गया, तो यह उल्टा भी पड़ सकता है। जाति के अलावा स्थानीय मुद्दे और उम्मीदवार की छवि भी मायने रखती है।

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