CG News : छत्तीसगढ़ के चावल से होगा अब कैंसर का इलाज, इन बिमारियों से भी मिलेगी राहत, दुनियाभर में बढ़ रही डिमांड…..

रायपुर। छत्तीसगढ़ जिसे देश का ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, अब सिर्फ अनाज उत्पादन तक सीमित नहीं रहा। रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विवि की जेनेटिक एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग ने बस्तर की विलुप्त होती चावल की एक किस्म पर रिसर्च कर ये पाया है कि इस चावल के सेवन से कैंसर की कोशिकाओं को ख़त्म किया जा सकता है इस चावल को संजीवनी नाम दिया गया है।
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है, छत्तीसगढ़ में 23250 धान की किस्म है। यहां की संस्कृति में धान का अपना महत्व है. तीज-त्यौहार में धान की पूजा से लेकर घर के साज-सज्जा के काम आता है। लेकिन अब बहुत जल्द ही बस्तर के सुकमा की विलुप्त हो रही धान की प्रजाति से कैंसर के मरीजों का इलाज होगा।
दरअसल रायपुर के इंदिरा गांधी विवि के प्रोफेसर दीपक शर्मा रिसर्च स्कॉलर सलाखा जॉन ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के रेडिएशन बायोलॉजी एंड health साइंस विभाग के साथ मिलकर साल 2016 से धान की एक किस्म की मेडिसिनल प्रॉपर्टी पर शोध शुरू किया।
संजीवनी चावल का भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में चूहों पर परीक्षण किया गया जिसमें चूहों में चमत्कारिक परिणाम देखने को मिले, इतना ही नहीं सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट ने भी कैंसर से लड़ने के गुण संजीवनी चावल में पाए हैं। डॉ दीपक शर्मा ने बताया कि संजीवनी चावल का मेडिसिनल ह्यूमन ट्रायल जनवरी से टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल में शुरू करने की तैयारी है। संजीवनी चावल में 213 तरह के बायोकैमिकल पाए गए हैं, जिसमें 7 तरह के तरह के केमिकल कैंसर रोधी माने जाते हैं।
संजीवनी राइस में 213 phytochemical मिले हैं. ये हमारे बॉडी में जाकर एक्टिव रहते हैं। 213 में से 7 ऐसे compound हैं जो एक कारक है जो nrf 2 को एक्टिव करते हैं. nrf 2 को एंटी oxydent भी बोलते हैं। बॉडी में oxydetiv डैमेज की वजह से कैंसर होता है cell mutate हो जाते हैं। ये compound ऐसे cell में घुसकर उन्हें ख़त्म करते हैं।
इसको दस दिन 10 ग्राम लेना है। मौसमी बीमारी से इम्युनिटी मिल जाती है. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है cell डेड होने लगती है। डेड cell tumor में बदल जाता है। इसे लगातार लेते रहेंगे शरीर को फायदा है। दुनिया की पहली चावल की किस्म है, जिसका मेडिसिनल उपयोग होगा। दो से तीन साल में मेडिसिनल उपयोग होना शुरू हो सकता है। डॉ दीपक शर्मा बताते है छत्तीसगढ़ में सबसे पहले डॉ आर एच रिछारिया ने 1974 में चावल की किस्म को पंजीबद्ध करने का प्रयास किया उन्होंने ने करीब 18000 किस्मों की पहचान बताई। उन्होंने पचास साल पहले कहा था कि भविष्य में राइस थैरेपी होगी और आज वो दिन आ गया है।
धान की 23 हजार से अधिक वैराइटी, देश-विदेश में बढ़ती लोकप्रियता
छत्तीसगढ़ के पास धान की 23,000+ वैरायटीज हैं, जिनमें जीआई टैग प्राप्त दुबराज, विष्णुभोग, तरुण भोग, बादशाह भोग जैसी खुशबूदार और पोषणयुक्त किस्में शामिल हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इनकी मांग अब चीन, अफ्रीका और बंगाल-ओडिशा जैसे राज्यों में भी तेजी से बढ़ी है।
कुछ और खास किस्में जो दे रही हैं स्वास्थ्य लाभ
प्रोटेजिन: हाई प्रोटीन वैराइटी, इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक
जिंको राइस एमएस: कुपोषण से लड़ने के लिए आदर्श
TCDM-1: दुबराज म्यूटेंट किस्म, BARC के सहयोग से विकसित
देवभोग: रोग-प्रतिरोधक, कम समय में तैयार होने वाली किस्म