सावन का पहला सोमवार आज : छत्तीसगढ़ के शिवालयों में गूंजे हर-हर महादेव के जयकारे, जल चढ़ाने के लिए लगी भक्तों की भीड़…..

कवर्धा/ गरियाबंद। भगवान भोलेनाथ का प्रिय सावन महीना प्रारंभ हो चुका है। आज सावन का पहला सोमवार है जिसे लेकर देशभर में शिवभक्तों में भारी उत्साह है। हिंदू धर्म में सावन का महीना आस्था, भक्ति और आत्मशुद्धि का प्रतीक माना जाता है। प्रदेशभर के शिवलयों में आज सुबह से भक्तों का तांता लगा हुआ है। मंदिरों में हर हर महादेव गूंज रहा है। भोले की भक्ति में श्रद्धालु रम गए हैं। जलाभिषेक के लिए शिवभक्तों की कतार दिखाई दे रही है।
बूढ़ामहादेव मंदिर में उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब
सावन महीने के पहले सोमवार को कवर्धा शहर के प्राचीन मंदिर पंचमुखी बुढ़ा महादेव मंदिर से पद यात्रा भोरमदेव मंदिर तक निकलेगी। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी है। डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने भी मंदिर पहुंचकर बाबा भोलेनाथ की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद लिया।
प्राचीन बूढ़ामहादेव मंदिर में सुबह से ही भक्तों का तांता लग गया। चारों ओर “हर हर महादेव” और “बोल बम” के जयघोष से वातावरण भक्तिमय हो गया है।
भोलेनाथ के दर्शन को उमड़ा जनसैलाब
सावन के पवित्र माह में भगवान शिव को जल अर्पित करने और मनोकामनाओं के पूर्ति हेतु दूर-दराज से श्रद्धालु बूढ़ामहादेव मंदिर पहुंच रहे हैं. भक्तजन सुबह से ही जल, बेलपत्र, धतूरा और फूल लेकर भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हैं.
मंदिर प्रबंधन और प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं। दर्शन के लिए कतारबद्ध व्यवस्था, पेयजल, प्राथमिक उपचार और सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं।
प्राचीन कुलेश्वर नाथ महादेव मंदिर में भक्तों का सैलाब
छत्तीसगढ़ की धर्म नगरी कहे जाने वाले राजिम के त्रिवेणी संगम पर स्थित प्राचीन श्री कुलेश्वर नाथ महादेव मंदिर में सावन माह के पहले सोमवार को आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा। तड़के सुबह से ही हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन और जलाभिषेक के लिए मंदिर पहुंचे।
प्रसिद्ध भुतेश्वरनाथ मंदिर में दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी हुई है। भगवान भूतेश्वरनाथ की ऊंचाई हर वर्ष बढ़ती ही जा रही है, बताया जाता है इसकी ऊंचाई 80 फीट और गोलाई 210 फीट है, स्वयंभू शिवलिंग होने के चलते यहां लगातार श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है, बता दें कि सावन के पहले सोमवार को सुबह से ही शिवालयों में कांवरियों का जलाभिषेक और पूजा-पाठ का सिलसिला जारी रहा।