“उत्तराधिकारी कौन ? — बिहार की जनमानस यात्रा और नेतृत्व का संकट” : विकास कुमार

“उत्तराधिकारी कौन ? — बिहार की जनमानस यात्रा और नेतृत्व का संकट” : विकास कुमार
“नेतृत्व केवल पद का उत्तराधिकारी नहीं होता, वह पीड़ा का साझेदार और परिवर्तन का वाहक होता है।”
बिहार। वह भूमि जिसने नालंदा-तक्षशिला को जन्म दिया, बौद्ध विचारधारा को वैश्विक पहचान दी, चाणक्य जैसे राजनीतिक चिंतकों को गढ़ा और स्वतंत्रता संग्राम में लोकनायक जयप्रकाश से लेकर वीर कुंवर सिंह तक अनगिनत मणियों को पिरोया — आज नेतृत्व के सवाल पर “उत्तराधिकारी कौन?” जैसे मूलभूत प्रश्न से जूझ रहा है।
Vikas : तक्षशिला, बिहार में नहीं है बल्कि आजके पाकिस्तान में आता है
नेतृत्व नहीं, राजनीति की विरासत चल रही है
आज बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि नेतृत्व नहीं उग रहा, बल्कि विरासतें पनप रही हैं।
कोई पुश्तैनी राजनीति का उत्तराधिकारी है तो कोई भावनात्मक सहानुभूति की रोटियाँ सेंक रहा है।
कोई खुलकर धार्मिक ध्रुवीकरण का खेल खेल रहा है, तो कहीं शैक्षणिक योग्यता भी जातिवादी आरक्षण का मुखौटा बन चुकी है।
समाज को जोड़ने की बजाय ऊँच-नीच और जातिवाद के घातक बीज बोए जा रहे हैं।
नेतृत्व का मूल स्वभाव जहाँ त्याग, विचार और संघर्ष होता है, वहीं आज बिहार में वह जन्म प्रमाणपत्र और प्रेस कांफ्रेंस का पर्याय बन गया है।
वास्तविक समस्याएँ हाशिए पर हैं
पलायन जैसे मुद्दे पर किसी पार्टी का स्थायी दृष्टिकोण नहीं है। दिल्ली, पंजाब, गुजरात के ईंट-भट्टों और निर्माण स्थलों पर बिहारी श्रमिकों की मेहनत की कोई सियासी आवाज नहीं है।
बेरोजगारी केवल एक चुनावी शब्द है, जिसका उपयोग घोषणापत्र में किया जाता है, समाधान में नहीं।
जनसंख्या विस्फोट और जनसंख्यात्मक परिवर्तन जैसे ज्वलंत विषय अब बहस का हिस्सा नहीं, बल्कि निषेध का विषय बन चुके हैं।
नेतृत्व समस्याओं के प्रति सजग नहीं, बल्कि मीडिया प्रबंधन और माइक्रोफ़ोन की ब्रांडिंग में लगा है।
सोचिए, यदि हर बिहारी प्रवासी को मतदान का अधिकार उसकी वर्तमान स्थिति से मिलता, जैसे पैसा आज ऑनलाइन ट्रांसफर हो जाता है, तो चुनाव के नतीजे और नेतृत्व की संरचना दोनों ही बदल जाते।
Vikas : ऑनलाइन वोटिंग करने की बात थी न की नतीजे जानने की
यदि गाँवों में सभागार या मंदिर का चबूतरा सूचना-साझा का केंद्र बनता, जहाँ आसपास की गोपनीय जानकारी प्रशासन तक पहुँचती, तो शासन और जनता के बीच की दूरी कम हो जाती।
Vikas: गोपनीय का मतलब है लोगों को विश्वास होना चाहिए कि उनकी जानकारी सिर्फ प्रशाशन तक ही सिमिति है, कोई ना चोरी करेगा , न गलत इस्तेमाल होगा और सरकारी सहायता भी सही तरीके से पहुँचता रहेगा
पहचान पर संकट
बिहारी की पहचान अब मछली-भात, छठ व्रत, टॉपर्स घोटाले या नौकरियों की भीड़ से हो रही है।
मीडिया बिहार को सिर्फ ‘फुहड़ भोजपुरी गीतों’, ‘गैंगस्टर’, ‘बाढ़ पीड़ितों’ या ‘किसी के Noida स्थित भव्य घर’ से परिभाषित करता है।
Vikas: यहाँ नॉएडा से मतलब था कि आजके पत्रकार दिल्ली से बार कि स्थिति नहीं जानते हैं
जब छठ को विदेशों में मनाया जाता है, तो हम गर्व करते हैं, लेकिन जब भाषावाद हावी होता है, तब हम बिखर क्यों जाते हैं?
Vikas: यहाँ छठ मुंबई में मनाने से था , जहाँ संगठित होकर बिहारी छठ तो मनाते हैं लेकिन जब उनके साथ हिंसा होती हैं तो सब अकेले पड़ जाते हैं
हमारी संस्कृति को व्यंग्य का विषय बनाया जा रहा है, और हम उसमें हास्य ढूँढने लगे हैं। यह आत्महीनता नहीं तो और क्या?
नेतृत्व की प्राथमिकताएँ कहाँ हैं?
कोई दल एआईआईएमएस खुलने को उपलब्धि बताता है, तो कोई रेलवे स्टेशन पर भीख माँगने वालों को वंदे भारत की सवारी से जोड़कर प्रचार करता है।
Vikas: यहाँ भीख जैसा एक दो ट्रैन दे देने से था
शिक्षकों की नियुक्ति को राजनीतिक चमत्कार माना जाता है, और विकास को केवल सड़क और शौचालय की गणना में समेट दिया जाता है।
विकास का तात्पर्य केवल ठोस संरचनाओं से नहीं, बल्कि मानव जीवन के सर्वांगीण उन्नयन से होता है — यह बात पड़ोसी राज्यों और विकसित देशों ने समझ ली, लेकिन बिहार अब भी ‘नेता’ के बजाय ‘परिवार’ खोज रहा है।
अब भी समय है—जागो, सोचो और संगठित होओ
बिहार को अब माइक नहीं, मिशन चाहिए।
हमें टीचर की भर्ती और जिला अस्पताल के उद्घाटन पर ही संतुष्ट रहने की मानसिकता से बाहर आना होगा।
हमें सोचने की जरूरत है —
क्या हम केवल ‘चुनाव में चेहरे’ खोजते रहेंगे या नीति, दृष्टि और समर्पण के आधार पर नेतृत्व चुनेंगे?
क्या हम फिर से अपनी बौद्धिक, नैतिक और सांस्कृतिक नेतृत्व क्षमता को पहचान पाएँग पहचान की लड़ाई में नेतृत्व की आवश्यकता
बिहार के पास इतिहास है, पर वर्तमान दिशाहीन है।
यह राज्य महावीर, बुद्ध, चाणक्य, विद्यापति और जे.पी. का है। यह सिर्फ ‘भात-मछली’ या ‘पलायन’ से नहीं पहचाना जा सकता।
बिहार को चाहिए एक ऐसा नेतृत्व जो सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं, बल्कि हर युवा के मन और भविष्य में बैठे।
“नेतृत्व वह नहीं जो उत्तराधिकारी हो, बल्कि वह जो दिशा दे और परिवर्तन का पथ प्रशस्त करे।”