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बाबा उमाकान्त महाराज ने समझाया कि जीवात्मा अपना स्थान कब – कब छोड़ती है ?…

साधना के समय जीवात्मा सुख के लोक में पहुँच जाती है लेकिन चेतना के कारण फिर नीचे खींच ली जाती है।

बाबा उमाकान्त महाराज ने समझाया कि जीवात्मा अपना स्थान कब – कब छोड़ती है ?

बावल, रेवाड़ी। बाबा उमाकान्त महाराज ने 17 जुलाई 2025 को सतसंग में बताया कि जीवात्मा दोनों आंखों के बीच में बैठी है। इसकी रोशनी, इसका प्रकाश, इसकी धारा पूरे शरीर में फैली हुई है। शिखर (चोटी) से ले कर के पैर के अंगूठे के निचले हिस्से तक इसका जलवा है, इसी की रोशनी है। साधना के दौरान जब ध्यान लगाते हैं, तब शरीर एवं शरीर से संबंधित जो भी चीजें हैं जैसे घर हो, मकान हो, बीवी हो, बच्चे हो, पति हो, रुपया-पैसा हो, मान-प्रतिष्ठा हो, दुकान-नौकरी हो, सब भूल जाते हैं और मन को उधर लगाते हैं जिधर ध्यान लगाना है, तब सारी शक्ति खिंचकर के दोनों आंखों के बीच में पहुंच जाती है। इसी स्थान को तीसरा तिल, पिंडी दसवां द्वार, शिव नेत्र कहा गया है। तो जैसे ही सारी शक्ति यहां पहुंचती है वैसे ही जीवात्मा अपने स्थान को छोड़ देती है। जीवात्मा अपने स्थान को दो हालत में छोड़ती है; साधना के समय और मौत के समय। नहीं तो यह अपने स्थान पर ही बैठी रहती है।

मौत के समय चेतना खत्म हो जाती है और नीचे के प्राण ऊपर की तरफ खिंचने लगते हैं

मौत के समय जो नीचे के प्राण होते हैं वे ऊपर की तरफ खिंचने लगते हैं और तब चित्त खत्म हो जाता है, सिमट जाता है। चित्त का काम चिंतन करना होता है, जिसको चेतना कहते हैं। तो इस समय चेतन शक्ति खत्म हो जाती है, नीचे की चेतना खत्म हो जाती है। तब हाथ, पैर सब सुन्न होने लगते हैं और मरने वाले आदमी को कुछ पता नहीं चलता है। साधना के समय नीचे के प्राण भी रहते हैं और चेतना भी रहती है। और ये जीवात्मा को फिर नीचे खींच लेते हैं, यह फिर चली आती है और नहीं तो आने का मन ही नहीं करता क्योंकि यह उस सुख के लोक में पहुंच जाती है जहां आनंद ही आनंद है, खुशबू ही खुशबू है, जहां 24 घंटे मस्ताना बाजा बजता रहता है, जहां बगैर दीया, चिराग, लाइट जलाए रोशनी ही रोशनी रहती है। जीवात्मा अपनी जगह को तब छोड़ेगी जब इधर से ध्यान हटेगा, इधर से खिंचाव होगा।

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