गुरु महाराज ने “जयगुरुदेव” नाम प्रभु का बताया, तो प्रभु और गुरु महाराज में कोई अंतर नहीं रहा – बाबा उमाकान्त महाराज

गुरु महाराज ने “जयगुरुदेव” नाम प्रभु का बताया, तो प्रभु और गुरु महाराज में कोई अंतर नहीं रहा – बाबा उमाकान्त महाराज
जहाँ का पता ऋषि, मुनि, योगी, योगेश्वर कोई भी नहीं लगा पाए, वहां की जानकारी कराने वाले सन्त कहलाते हैं
मुंबई। बाबा उमाकान्त महाराज ने 24 जुलाई 2025 के सतसंग में कहा कि जो भी आप सतसंग में सुनोगे, सब सन्त मत की बात सुनोगे। प्रार्थना, सुमिरन-ध्यान-भजन; यह सन्त मत के अंतर्गत आते हैं। मत-मतांतर बहुत हैं, मत बन गए और मतांतर हो गए, उसी में बहुत सी शाखाएं हो गईं। जैसे शुरू में एक ही धर्म था; मानव धर्म, उसके बाद कई धर्म बन गए। उन धर्मों में भी कई शाखाएं हो गईं। शुरू में जब यह दुनिया-संसार बना तब एक ही भाषा थी; संस्कृत भाषा, लेकिन अब बहुत सी भाषाएं हो गई। सन्त मत में विचारों में भले ही भिन्नता हो जाए लेकिन मत वही रहता है।
“हद में रहे सो मानवा, बेहद रहे सो साध।
हद, बेहद दोनों तजे, ताकर मता अगाध”।।
“हद में रहे सो मानवा, बेहद रहे सो साध” हद किसको कहते हैं? जैसे मान लो जिले की हद है, एक जिला खत्म हो जाता है, क्योंकि वह उसकी हद है और फिर दूसरा शुरू हो जाता है। ऐसे ही एक देश की भी हद होती है। आप एक जिले से दूसरे जिले, एक प्रांत से दूसरे प्रांत, एक देश से दूसरे देश में तो जा सकते हो, आप हवाई जहाज, जेट से उड़ जाओ या किसी तरह चंद्रमा पर, सूरज पर पहुंच जाओ, ग्रहों का चक्कर लगा आओ, लेकिन उसके ऊपर भी तो कुछ है; वहां नहीं जा सकते हो। लेकिन साधक पिंड लोक से जो ऊपर लोक है; अंड लोक, उसमें भी चले जाते हैं। अब साधक भी बहुत तरह के होते हैं; योग करने वाले भी होते हैं जैसे अष्टांग योग, हठ योग और कुंडलिनियों को जगाने वाले भी होते हैं। उनको ऊपर की जानकारी हो जाती है, वे भी ऊपर आते-जाते हैं लेकिन उनकी भी हद है।
“हद, बेहद दोनों तजे, ताकर मता अगाध” जिसको यह जानकारी हो जाए कि यह दुनिया और दुनिया की चीजें खत्म हो जाएगी एक दिन, यहां तक कि शरीर भी अपना नहीं है, उनको मुनि कहते हैं। जो देवी-देवताओं के लोक में चले जाते हैं, वे देवर्षि कहलाते हैं। उनके आगे फिर योगी, फिर साध और उसके बाद फिर सन्त। तो जिनकी ऊपर तक पहुंच होती है, जहाँ हद की अपार होती है, जहाँ का ऋषि, मुनि, योगी, योगेश्वर कोई भी पता नहीं लगा पाए, वहां की जानकारी जिनको हो जाती है और वहां की जानकारी कराते हैं, वे सन्त कहलाते हैं।
सन्तों के विचार (मत) अपार और अगाध होते हैं।
सन्तों के विचार जो होते हैं वे अपार, अगाध होते हैं। गुरु महाराज ने “जयगुरुदेव” नाम प्रभु का बताया, तो प्रभु और गुरु महाराज में कोई अंतर नहीं रहा। लोग आज भी उन्हीं को जयगुरुदेव कहते हैं। गुरु महाराज जो बातें बता कर के गए, जो साधना बता कर के गए, वह अकथ और अपार है, उसकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है। अब सन्तमत क्या कहता है? इसमें क्या चीजें जरूरी है? तीन चीजें जरूरी है; सतसंग, सेवा और भजन।