धर्म से अलग होने के कारण ही आज लोगों का खान-पान खराब हो रहा है, चरित्र गिर रहा है और लोभ बढ़ रहा है – बाबा उमाकान्त महाराज

धर्म से अलग होने के कारण ही आज लोगों का खान-पान खराब हो रहा है, चरित्र गिर रहा है और लोभ बढ़ रहा है – बाबा उमाकान्त महाराज
लोग इस चीज को नहीं समझ पा रहे हैं कि यदि हम धर्म से अलग हो जाएंगे तो हमारे कर्म खराब हो जाएंगे
नरवाना, जिन्द, हरियाणा। परम सन्त बाबा उमाकान्त महाराज ने 12 अगस्त 2025 के सतसंग में कहा कि इस समय पर सतसंगों में आना लोगों का बड़ा मुश्किल हो रहा है। आदमी इतना व्यस्त हो गया है कि वह धर्म, कर्म से अलग होता चला जा रहा है। वह इस चीज को नहीं समझ पा रहा है कि यदि हम धर्म से अलग हो जाएंगे तो हमारे कर्म खराब हो जाएंगे। अगर समझ नहीं पाएंगे कि हाथ किस लिए मिला है, पैर किस लिए मिला है, कान, आंख किस लिए मिले हैं, यह मनुष्य शरीर किस लिए मिला है, तो इन्हीं अंगों से बुरा कर्म करने लग जाएंगे। तब तो कर्मों की सजा से कोई बच नहीं पाएगा । सजा मिलने लगेगी, और आज यही हो रहा है।
धुरी से अलग होने के कारण ही लोग दुख झेल रहे हैं
पहले लोग बराबर सतसंगों में जाते थे, तब उनको यह मालूम रहता था कि यह शरीर किस लिए मिला है। लेकिन अब लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि अच्छा काम करने के लिए यह हाथ-पैर मिले, अच्छी चीजों को देखने के लिए आंख मिली, अच्छी बातों को सुनने के लिए कान मिला, मन को अच्छे काम में लगाना चाहिए, चित्त से अच्छी बातों का चिंतन करना चाहिए, तभी तो बुद्धि सही रहेगी। यह चीज नहीं समझ में आने के कारण ही आदमी मन से मनमुखी काम करता है, जो मन में आता है वही करता है।
आजकल लोगों का खान-पान खराब हो रहा है, चरित्र गिर रहा है, लोभ बढ़ रहा है और उसी लोभ में आदमी फंसता चला जा रहा है, उसके साथ छल हो रहा है। यह सब इसीलिए हो रहा है क्योंकि धर्म से लोग अलग हो गए। धुरी को लोगों ने छोड़ दिया तो अब संकट में पिस रहे हैं। धुरी से अलग होने के कारण ही लोग दुख झेल रहे हैं। घर-घर मे लड़ाई, घर-घर मे बीमारी और टेंशन बढ़ रहा है, ठगी हो रही है। कमाते तो हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि खर्च कहाँ करना चाहिए। लक्ष्मी को शराब और माँस की दुकान पर फेंक आते हैं, मनोरंजन की जगह पर फेंक आते हैं तो लक्ष्मी रुकती ही नहीं हैं, चली जाती हैं। बहुत से लोग परेशानियों में आत्महत्या कर ले रहे हैं, जो बहुत बड़ा पाप है।
धुरी को पकड़ लोगे तो संकट से मुक्त हो जाओगे
गाँवों में पहले जब बिजली की चक्कियां नहीं थी तब माताएं हाथ से गेहूं पीसती थीं। उस हाथ से पीसने वाली चक्की में दो पाट होते हैं और बीच में एक आधार होता है, उसी आधार को धुरी कहते हैं। जब चक्की चलती है तो उसमें ही गेहूं डाले जाते हैं, वे पिस जाते हैं लेकिन कुछ गेहूं बिना पिसे रह जाते हैं क्योंकि वे धुरी के नजदीक होते हैं। तो आप जो सतसंग सुनने के लिए आए हो, आप भी धुरी के नजदीक आ रहे हो। आप जब सतसंग की बातों को सुनोगे, उनको मानोगे और जो बताया जाएगा उसको करोगे, जो कि वास्तव में धुरी है इसको पकड़ लोगे तो धुरधाम(निजधाम) पहुंच जाओगे, संकट से मुक्त हो जाओगे।