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बच्चों को सतसंग ना मिलने के कारण वह इस दुनिया के बुद्धिनाशक नशों में ही सुख और शांति खोज रहे हैं – बाबा उमाकान्त महाराज

बच्चों को सतसंग ना मिलने के कारण वह इस दुनिया के बुद्धिनाशक नशों में ही सुख और शांति खोज रहे हैं – बाबा उमाकान्त महाराज

बच्चों को इस समय ऐसे नशे की लत लग गयी है जो उनकी जिंदगी को बर्बाद कर दे रही है

पटियाला, पंजाब। बाबा उमाकान्त महाराज ने 13 अगस्त 2025 के सतसंग में कहा कि पंजाब के बच्चों को तो इस समय ऐसी लत लग गई है जो उनकी जिंदगी को बर्बाद कर दे रही है; नशे की लत। चाहे शराब का नशा हो, चाहे गांजे, भांग, अफीम का हो, चाहे जो अन्य नशीली गोलियां चल गई, पाउडर चल गए, उसका नशा हो। बच्चे इसीलिए बिगड़ रहे हैं क्योंकि जो ऊपर का नशा है (अध्यात्म का नशा), जो भजन करने से अंतर में ही मिलता है, वह उनको नहीं मिल पा रहा है और वह इस दुनिया के नशे में सुख और शांति खोज रहे हैं। लेकिन यह जो दुनिया का नशा होता है वह तो उतर जाता है जबकि नाम का नशा कभी नहीं उतरता है। नामी (वक्त गुरु) जब मिल जाते हैं, नाम की डोर जब मिल जाती है तब उसको पकड़ कर के यह जीवात्मा ऊपरी लोकों में जाने लगती है और तब यह जीवात्मा ऐसे नशे में आती है जो जीवन भर नहीं उतरता है और मरने के बाद भी नहीं खत्म होता है, वह अमर नशा है। इसीलिए नानक साहब ने कहा
“भांग, धतूरी, सुरा, पान उतर जाए प्रभात।
नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन रात।।”

पंजाब के दसों गुरु के समय का एक वाकया; बच्चों के संस्कार कैसे बनते हैं

पंजाब के दसों गुरु के समय का एक वाकया है। गुरु जी सुबह उठ कर के साधना कराते थे, उपदेश करते थे। तो एक माँ अपने बेटे को उनके सतसंग में ले जाती थी। बच्चा सतसंग की बातों को पकड़ता था। जितने भी सन्त आए सब ने यही कहा कि यह मनुष्य शरीर किराए का मकान है और एक ना एक दिन इसको खाली कर देना पड़ेगा। जब काल भगवान इसको खाली करा लेंगे तब यह धड़ाम से गिर जाएगा और फिर पुत्र परिवार, मान-प्रतिष्ठा सब यहीं छूट जाएगा। तुम्हारे साथ कुछ नहीं जाएगा, इसीलिए मौत और उस प्रभु को हमेशा याद रखना चाहिए। अब यह भी सत्य है कि पता नहीं कब किसकी मौत आ जाए और इस कलयुग में तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता है। तो गुरु जी की यह बातें लड़के के दिमाग में आ गयी। फिर माँ अगर उसको सतसंग में ना भी लाना चाहे, तो भी वह बच्चा उठकर, माँ के साथ जाने को तैयार हो जाता था। बोलता “चलो माँ, सतसंग में चलो, ध्यान-भजन में चलो”।

एक दिन गुरुजी ने उससे कहा “अरे बेटा! तुझको तो सुबह उठ कर कुछ पढ़ना-लिखना चाहिए, कुछ सीखना चाहिए और मैं देखता हूं तू रोज सुबह यहां आ जाता है” तब उस बच्चे ने कहा “गुरुजी, मैंने आप की ही बातों से यह सीखा है। एक दिन मेरी माँ चूल्हा जला रही थी। तो उन्होंने सबसे पहले छोटी-छोटी लकड़ियों को जलाया और जब उसने आग पकड़ ली तब बड़ी लकड़ी को लगाया। बड़ी लकड़ी में आग देर से लगी जबकि छोटी में जल्दी लग गई। तब मैंने यह सोचा कि कहीं मौत की आग मेरे लिए ही ना आ जाए, इसीलिए हमको चल कर के कुछ सीख लेना चाहिए और आप जो यह कहते हो कि यह मनुष्य शरीर भगवान की प्राप्ति के लिए मिला है, तो मैं इस रास्ते की तलाश में आता हूं कि वह रास्ता हमको कैसे मिलेगा कि जिससे हमको इस शरीर में ही भगवान का दर्शन हो जाए।”

तो ऐसे बनते हैं संस्कार। बच्चों की स्मरण शक्ति, याददाश्त बड़ी तेज रहती है, वे किसी चीज को बहुत जल्दी पकड़ते हैं। लेकिन अब तो बच्चों को आप सतसंग में लाते ही नहीं हो, इसीलिए बच्चे बिगड़ जाते हैं।

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