CG – पत्नी को मानसिक रोगी बताकर पति ने मांगा तलाक, हाईकोर्ट ने ये कहकर खारिज की याचिका…..

बिलासपुर। मानसिक बीमारी के आधार पर तलाक के मामले में हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सिर्फ डाॅक्टर की पर्ची या नुस्खा पेश करना पर्याप्त नहीं है। ऐसे मामलों में याचिकाकर्ता को ठोस सबूत प्रस्तुत करने होंगे और मनोरोग चिकित्सक की विशेषज्ञ गवाही अनिवार्य होगी। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच ने परिवार न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए पति की याचिका खारिज कर दी।
दरअसल, रायगढ़ जिले के पति ने अपनी पत्नी को मानसिक रोगी बताते हुए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12 (1)(बी) के तहत विवाह रद्द करने की मांग की थी। पति-पत्नी का विवाह 3 मार्च 2008 को हुआ था और उनकी दो बेटियां भी है। पति का आरोप था कि विवाह से पहले ससुराल पक्ष ने पत्नी को पूर्ण रूप से स्वस्थ बताया था, लेकिन शादी के बाद उसका व्यवहार असामान्य हो गया। वह चिल्लाने-चीखने, सामान फेंकने और बच्चों को मारने-पीटने लगी। चिकित्सकीय जांच में उसके सिजोफ्रेनिया से पीड़ित होने की बात सामने आई।
पत्नी ने अदालत में कहा कि अक्टूबर 2018 में वह ससुराल छोड़कर मायके चली गई थी और फिर कभी वापस नहीं लौटी। पति ने इसी आधार पर विवाह रद्द करने की याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद पारिवार न्यायालय ने पति की याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने माना कि पति यह साबित करने में नाकाम रहा कि पत्नी विवाह के समय से ही सिजोफ्रेनिया की मरीज थी, जिसके बाद पति ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी।
हाई कोर्ट ने पारिवार न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए पति की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि विवाह रद्द करने का दावा करने वाले याचिकाकर्ता पर स्पष्ट और ठोस सबूत पेश करने की जिम्मेदारी है। केवल डाक्टर की पर्ची या नुस्खा दाखिल कर देना पर्याप्त नहीं होगा। जब तक उपचार करने वाले मनोरोग विशेषज्ञ की गवाही और पुष्टि नहीं होती, मानसिक बीमारी का आधार साबित नहीं माना जा सकता।