छत्तीसगढ़

CG – खूंखार नक्सली हिड़मा को राजे से हुआ प्यार, बीहड़ में रचाई शादी, लेकिन नहीं पैदा किए बच्चा, पढ़िए आतंक के सरगना की दिलचस्प लव स्टोरी……

बस्तर। छत्तीसगढ़ में जारी नक्सल उन्मूलन अभियान के बीच एक बड़ी खबर निकलकर सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि, एक मुठभेड़ में पुलिस और सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के टॉप लीडर और पीएलजीए के कमांडर माड़वी हिडमा को ढेर कर दिया गया है। लेकिन क्या आपको पता है कि खूंखार नक्सली के रूप में पहचान बनाने वाले माडवी हिडमा की एक लव स्टोरी भी है, जो बेहद दिलचस्प है।

अनोखी है हिडमा-राजे की लव स्टोरी

माडवी हिडमा की पहचान यूं तो एक कुख्यात के तौर पर होती है, लेकिन उसके सीने में दिल धड़कता था। बताया जाता है कि हिड़मा राजे से बेहद प्यार करता था और उसी से शादी भी की। दोनों की लव स्टोरी और शादीशुदा जिंदगी हिंसा और संघर्ष से भरी एक कहानी को बयां करती है। हिडमा और राजे एक ही कमांड स्ट्रक्चर में काम थे, जिसके चलते अक्सर बिहड़ों में दोनों की मुलाकात होती थी। ​बीहड़ों की मुलाकात कब प्यार में बदल गया दोनों की खबर ही नहीं लगी और एक दिन शादी करने का फैसला कर लिया। कहा जाता है कि इसी दौरान दोनों ने संगठन के भीतर ही विवाह कर लिया था। उनके रिश्ते को नक्सली कैडर एक प्रभावशाली जोड़ी के रूप में देखता था, हालांकि यह रिश्ता भी बाकी जीवन की तरह हिंसा और जोखिम से घिरा रहा। लेकिन सबसे अहम बात ये है कि हिडमा और राजे ने शादी के बाद कभी बच्चा पैदा करने की नहीं सोची

कौन था हिडमा?

हिडमा जिसका पूरा नाम माड़वी हिडमा है, कई और नामों से भी जाना जाता है। हिडमा उर्फ संतोष उर्फ इंदमुल उर्फ पोडियाम भीमा। मोस्ट वांटेड की सूची में टॉप इस नक्सली की कद काठी कोई खास आकर्षक नहीं बल्कि यह कद में नाटा और दुबला-पतला है, जैसा कि सुरक्षा बलों के पास उपलब्ध पुराने फोटो में दिखाई देता है। हालाँकि अब पुलिस के पास उसकी ताजा तस्वीर भी मौजूद है। ये बात अलग है कि बस्तर के माओवादी आंदोलन में शामिल स्थानियों की तुलना में उसका माओवादी संगठन में कद काफी बड़ा है। वर्ष 2017 में अपने बलबूते और रणनीतिक कौशल के साथ नेतृत्व करने की क्षमता के कारण सबसे कम उम्र में माओवादियों की शीर्ष सेन्ट्रल कमेटी का मेम्बर बन चुका है। माओवादियों के इस आदिवासी चेहरे को छोड़कर नक्सलगढ़ दण्डकारण्य में बाकी कमाण्डर्स आंध्रप्रदेश या अन्य राज्यों के रहे हैं। इनमें भी ज्यादातर कमांड मारे जा चुके है, लेकिन हिडमा पुलिस के लिए प्राइम टारगेट बना हुआ था।

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आखिर हिडमा कैसे बन गया नक्सली?

इस सवाल का जवाब वो इलाका है ,जहां से वो आता है। हिडमा का गांव पुवर्ती बताया है, जो सुकमा जिले के जगरगुण्डा जैसे दुर्गम जंगलों वाले इलाके में स्थित है। यह गांव जगरगुण्डा से 22 किलोमीटर दूर दक्षिण में है,जहां पहुंचना बहुत मुश्किल है। ये वो इलाका है। पिछले साल तक यहां सिर्फ नक्सलियों की जनताना सरकार का शासन चलता था लेकिन पुलिस और सुरक्षबलों ने नक्सलियों के इस राजधानी को अपने कब्जे में लिया और यहाँ अब पुलिस कैम्प भी स्थापित कर लिया गया है।

बता दें कि, नक्सलियों के यह गाँव न सिर्फ एक आम गाँव था बल्कि प्रयोगशाला भी थी। नक्सलियों ने यहां अपने तालाब बनवाये थे, जिनमें मछली पालन होता था, गांवों में सामूहिक खेती होती थी। हिडमा की उम्र यदि 40 साल के आसपास भी मान ली जाए, तो वो ऐसे समय और स्थान पर पैदा हुआ,जहां उसने सिर्फ माओवादियों और उनके शासन को देखा और ऐसे ही माहौल में वो पला-बढ़ा और पढ़ा। हालांकि वो सिर्फ 10 वीं तक ही पढ़ा था, लेकिन अध्ययन की उसकी आदत ने उसे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने में अभ्यस्त बना दिया था। बताते है कि, अंग्रेजी साहित्य के साथ माओवादी और देश-दुनिया की जानकारी हासिल करने में उसकी खासी रुचि थी।

कैसे हुई पहचान कि यही हिडमा है?

हिडमा की पहचान का सबसे बड़ा निशान उसके बाएं हाथ की एक अंगुली ना होना है। हमेशा नोटबुक साथ में लेकर चलने वाला ये दुर्दांत नक्सली समय-समय पर अपने नोट्स भी तैयार करता था। वह माओवादी विचारधारा को लेकर बेहद गंभीर था। इसकी पुष्टि, उसके कई अंगरक्षक, जो अब सरेंडर कर चुके है, उन्होंने भी साक्षात्कारों में किया है।

वर्ष 1990 में मामूली लड़ाके के रुप में माओवादियों के साथ जुड़ने वाला यह आदिवासी सटीक रणनीति बनाने और तात्कालिक सही निर्णय लेने की क्षमता के कारण बहुत ही जल्दी एरिया कमाण्डर बन गया था। वर्ष 2010 में ताड़मेटला में सीआरपीएफ को घेरकर 76 जवानों की जान लेने में भी हिडमा की मुख्य भूमिका रही। इसके 3 साल बाद 2013 में जीरम हमले में कांग्रेस के बड़े नेताओं सहित 31 लोगों की जान लेने वाली नक्सली घटना में भी हिडमा के शामिल होने का दावा किया आजाता रहा है। वर्ष 2017 में बुरकापाल में हमला कर सीआरपीएफ के 25 जवानों की शहादत का जिम्मेदार भी इसी ईनामी नक्सली को माना जाता है। खुद ए के -47 रायफल लेकर चलने वाला हिडमा चार चक्रों की सुरक्षा से घिरा रहता था।

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