शरीर के रहते-रहते अपनी आत्मा का कल्याण कर लो, यही सनातन धर्म है…
शरीर के रहते-रहते अपनी आत्मा का कल्याण कर लो, यही सनातन धर्म है
यह संसार स्वप्नवत है, सत्य तो केवल प्रभु का भजन है- बाबा उमाकान्त महाराज
उज्जैन। विश्व विख्यात परम संत बाबा उमाकांत जी महाराज जी ने अपने सतसंग में कि बताया शंकर जी पार्वती को उपदेश करते हुए कह रहे थे कि –
उमा कहउँ मैं अनुभव अपना।
सत हरि भजन जगत सब सपना।।
यह जो दुनिया-संसार है, यह स्वप्नवत है, सत्य तो केवल प्रभु का भजन है। यहां जितनी भी चीजें हैं, काम नहीं आयेंगी। यह तन-धन किसी के काम नहीं आएगा। अगर यह अपना होता तो लोग इसको छोड़ कर क्यों चले जाते ? एक से एक धनी-मानी आए, राजा-महाराजा आए, महात्मा आए सब छोड़ कर चले गए। जो भी धन-दौलत इस शरीर के उपयोग के लिए, दुनिया के खर्चे के लिए था, उसको सब छोड़कर चले गए थे। तो यह जिसका है, वह ले लेगा, वह खाली करा लेगा।
माया क्या है और किसकी है ?
रुपया-पैसा, धन-दौलत, मान-सम्मान, इन चीजों को माया बताया गया है। इस माया के लोक में शरीर भी चल रहा है। माया का इस पर भी अधिकार है। मन की डोर माया के ही हाथ में है इसलिए वह जैसा चाहती है, शरीर को चलाती और घुमाती है। यह भी उसके अधिकार में है। यह माया तो जगदीश की है, जगत के ईश की है। जिसने दुनिया को बनाया, दुनिया की व्यवस्था जो संभालता है, दुनिया को जो मिटाने का अधिकार रखता है, वही है जगदीश।
असली धर्म क्या है ?
पूज्य महाराज ने कहा कि जिन लोगों ने सनातन धर्म को शुरू में चलाया और माना, जो सनातन धर्म के जानकार लोग हैं, उन्होंने इस चीज को धार्मिक किताबों में, मजहबी किताबों में लिख दिया है कि सनातन धर्म क्या है। सनातन धर्म है कि शरीर के रहते-रहते अपनी आत्मा का कल्याण कर लो। यह शरीर दोबारा फिर नहीं मिलेगा। इस जीवात्मा पर दया करो, यह नर्कों में न जाने पाए, चौरासी लाख योनियों में बन्द ना होने पाए, यह है असली धर्म। अब इस असली धर्म को अगर आप अपना लोगे तो यहां जितने भी धर्म हैं, यह सारे धर्म समझ में आ जाएंगे।
बीमारी व तकलीफों में आराम देने वाला नाम “जयगुरुदेव”
किसी भी बीमारी, दुःख, तकलीफ, मानसिक टेंशन में शाकाहारी, सदाचारी, नशामुक्त रहते हुए *जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव* की ध्वनि को रोज सुबह-शाम बोलिए व परिवार वालों को बोलवाइए और फायदा देखिए।