सन्तों की बोली सुन कर के जीव आकर्षित हो जाते हैं और उनके समझाने पर जीवों को अपना घर (सतदेश) याद आता है – बाबा उमाकान्त महाराज

सन्तों की बोली सुन कर के जीव आकर्षित हो जाते हैं और उनके समझाने पर जीवों को अपना घर (सतदेश) याद आता है – बाबा उमाकान्त महाराज
सन्तों की आवाज को जीवात्माएं सुनती हैं क्योंकि इन पर सतदेश की आवाज का संस्कार पड़ा हुआ है
बावल, हरियाणा। परम् पूज्य बाबा उमाकान्त महाराज ने 2025 के सतसंग में कहा कि जब-जब सन्त इस धरती पर आते हैं तो वे आवाज लगाते हैं और उनकी आवाज को यह जीवात्मा सुनती है। क्योंकि इस पर वहाँ (सतदेश) की आवाज का संस्कार पड़ा हुआ है। जैसे हरियाणा का कोई आदमी किसी अन्य राज्य में चला जाए जहाँ दूसरी भाषा बोली जाती है और जा कर के जब हरियाणवी बोली बोलेगा, हरियाणा के टोन में बोलेगा, तब जो हरियाणा के लोग वहाँ होंगे वे सुनेंगे और पूछेंगे कि आप हरियाणा के हो? तब वह बताएगा कि हां मैं हरियाणा का हूं। और जब उनसे पूछेगा कि आप कैसे पहचाने? तब वे कहेंगे कि आपकी बोली से पहचाने।
यह मिट्टी और पत्थर का घर तुम्हारा घर नहीं है, तुम्हारा घर तो वहाँ सतदेश में है
सन्तों की बोली सुन कर के जीव आकर्षित हो जाते हैं और जब उनकी बातों को सुनते हैं; वे जब याद दिलाते हैं कि यह मिट्टी और पत्थर का घर तुम्हारा घर नहीं है, तुम्हारा घर तो वहाँ सतदेश में है तब जीवों के समझ में आ जाता है। सन्त जब बताते हैं कि वहाँ (सतदेश में) कोई गंदगी नहीं है, दुख-तकलीफ नहीं है, कोई टेंशन नहीं है, कोई भी तरह की तकलीफ नहीं है, चलो! हम तुमको वहाँ ले चलेंगे, तब जीवात्माओं को अपना घर याद आता है। उनके अंदर इच्छा पैदा होती है।
जैसे बहुत से लोग जो विदेश में रहते हैं, यहां जब आते हैं और लोग उनसे पूछते हैं तब वहाँ की तारीफ करने पर आज के नौजवान विदेशों में जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। उनकी इच्छा जग जाती है कि चलो एक बार अमेरिका, लंदन घूम आयें। ऐसे ही सन्त जब सतदेश की लीला के बारे में समझाते-बताते हैं तब ये जीवात्माएं वहाँ जाने के लिए लालायित हो जाती हैं।
सन्त जब यह कहते हैं कि मैं तुमको रास्ता बताता हूं, तुम इस रास्ते पर आगे बढ़ो और हम तुम्हारी मदद करेंगे, तब उनको विश्वास हो जाता है। जब तड़प जगती है तब ये जीवात्माएं पूछती हैं कि हम सतदेश कैसे पहुंचेंगे? युक्ति क्या है? उपाय क्या है? तब सन्त उपाय बताते हैं।