सन्त, युक्ति और उपाय के द्वारा जीवात्माओं को वापस अपने वतन, अपने मालिक के पास पहुंचा देते हैं – बाबा उमाकान्त महाराज

सन्त, युक्ति और उपाय के द्वारा जीवात्माओं को वापस अपने वतन, अपने मालिक के पास पहुंचा देते हैं – बाबा उमाकान्त महाराज
ऊपर से नीचे गिरी हुई चीज, किसी युक्ति, उपाय से ही वापस ऊपर जाती है
अंबाला, हरियाणा। बाबा उमाकान्त महाराज ने 17 अगस्त 2025 के सतसंग में कहा कि जब सतपुरुष की मौज हुई कि सृष्टि की रचना की जाए तब उन्होंने सतलोक की जीवात्माओं को नीचे की तरफ खिसका दिया। जब उन जीवात्माओं ने उनसे पूछा कि हमें नीचे क्यों भेज रहे हो? हमने कौन सा गुनाह किया है? तब सतपुरूष बोले कि मेरी रचना करने की, कुछ लोक बनाने की, और तुम्हें वहाँ भेजने की मौज हो गई है, तुम सभी वहाँ जाओ।
तब वे जीवात्माएं बोली कि हम जा तो रहे हैं लेकिन यह बताइए कि क्या हम कभी फिर वापस आ पाएंगे? तब सतपुरुष ने कहा कि तुम फिक्र मत करो, जो भेज रहा है, वही तुम्हें वापस भी लाएगा, वापस बुलाएगा।
सतपुरुष ने इन्हीं में से कुछ जीवात्माओं को काल भगवान को उनकी तपस्या के बल पर दे दिया। अब यह जीवात्माएं काल के बस में हो गईं और काल अब इन्हें छोड़ना नहीं चाहता है। इनको जाल से निकलने नहीं दे रहा है, और यह जीवात्माएं दूसरे के अधिकार में हो गईं।
अब जिसके अधिकार में हो गईं, वह जैसा काम इनसे कराता है, वैसा काम ही यह करने लग गईं और इसी में सेट हो गईं। कैसे सेट हो गईं? देखिए जो जहाँ है, वहीं सुखी है।
काल भगवान द्वारा सतपुरुष से मांगे गए तीन वरदान
जब सृष्टि की रचना हो गई, तब काल भगवान ने सतपुरुष से कुछ और जीवात्मों को मांगा था। जब वे जीवात्माएं भी रोई तो सतपुरुष ने कहा कि तुम घबराओ नहीं, हम वापस बुलाएंगे तुमको। यह सुनकर काल भगवान ने कहा कि आप इनको कैसे बुलाओगे? क्योंकि जब यह हमारे पास आ जाएंगी तब मैं तो इनको भेज नहीं पाऊंगा।
तब सतपुरुष ने कहा कि सन्तों के द्वारा बुलाएंगे। सन्त जाएंगे और उनको वहाँ से निकाल कर के लाएंगे। तब काल भगवान ने सतपुरुष से तीन और वरदान मांगे। पहला वरदान यह था कि जो जिसमें रहे उसी में सुखी रहे। दूसरा वरदान यह था कि अपने पिछले जन्म का किसी को कुछ याद ना रहे और तीसरा यह था कि जो भी सन्त जाएं, वे यहाँ पहुंचने की युक्ति बता कर के ही वहाँ पहुंचाए, अपनी शक्ति से, अपने साथ किसी को ना लाएं।
जीवात्माओं को वापस सतलोक पहुंचाने के लिए सन्तों ने शब्द की सीढ़ी लगा दी
ऊपर से नीचे गिरी हुई चीज, किसी युक्ति, उपाय से ही वापस ऊपर जाती है। जैसे ऊपर से पानी की बूंद गिरती है तो पानी इकट्ठा हो जाता है। उसी पानी को अगर गर्म कर दिया जाए, तो भाप बन कर के आसमान की तरफ चली जाती है। सतपुरुष ने इस शरीर को बनाने का सारा मसाला काल भगवान को दे दिया, लेकिन माँ के पेट में बन रहे बच्चे में जिस सुराख से जीवात्मा अन्दर जाती है, वह सुराख बंद करने का मसाला नहीं दिया।
इसीलिए जिस रास्ते से बच्चे में आत्मा डाली जाती है, उसी रास्ते से निकाल ली जाती है (साधना द्वारा)। तो जब जीव फंस गए, नरकों में जाने लगे और रोए, चिल्लाए, तब सन्त आए और उन्होंने जीवात्माओं को सतलोक पहुंचाने के लिए शब्द की सीढ़ी लगा दी।