मध्यप्रदेश

बाबा उमाकान्त महाराज ने गाड़ी व पतंग के उदाहरण से समझाया मनुष्य जीवन का सत्य…

बाबा उमाकान्त महाराज ने गाड़ी व पतंग के उदाहरण से समझाया मनुष्य जीवन का सत्य

मनुष्य शरीर रूपी गाड़ी

उज्जैन। यह मनुष्य शरीर एक गाड़ी की तरह से है। जैसे गाड़ी के अलग-अलग पुर्जे होते हैं, वैसे ही इस शरीर के भी अंग, नसें और तत्व हैं, जो इसे चलाने में सहायक होते हैं। गाड़ी तेल से चलती है। जब तेल जलता है, भाप बनता है, हवा बनती है तब वह गाड़ी चलती है। इसी प्रकार यह शरीर भी तत्वों से बना हुआ है और उन्हीं तत्वों की कमी या अधिकता से ही इसमें रोग उत्पन्न होते हैं। यह शरीर पाँच तत्वों से बना हुआ है और जब किसी तत्व की कमी हो जाती है तो शरीर रोगग्रस्त हो जाता है।

अदृश्य शक्ति रूपी ड्राइवर

मोटर गाड़ी का स्टेयरिंग ड्राइवर के हाथ में होता है लेकिन इस मनुष्य शरीर का स्टेयरिंग किसके हाथ में है? इसे कौन चला रहा है? इसे कौन सुनवा रहा है? इसे कौन बुलवा रहा है? इसे कौन बुद्धि लगाकर काम करा रहा है? बाहरी आँखों से यह ड्राइवर नहीं दिखता क्योंकि यह एक अदृश्य शक्ति है जो इस शरीर को चला रही है।

जीवन की डोर का कोई भरोसा नहीं

यह शरीर पतंग की तरह है जिसकी डोर उड़ाने वाले के हाथ में होती है। जिस तरह पतंग ऊपर-नीचे उड़ती है, उसी तरह यह शरीर भी उस अदृश्य शक्ति पर निर्भर है। जैसे पतंग की डोर कट जाए तो वह अनियंत्रित होकर गिर जाती है, वैसे ही जब इस शरीर की डोर (श्वास) कट जाती है तो यह जीवन समाप्त हो जाता है। इसलिए यह सोचना कि अभी हम जवान हैं, दस साल, पंद्रह साल, पच्चीस साल, चालीस साल के हैं, अभी तो मौज-मस्ती करनी है और बुढ़ापे में भजन करेंगे तो यह भ्रम है। बुढ़ापा किसी ने नहीं देखा है और आज के समय में कोई यह नहीं कह सकता कि वह बुढ़ापे तक पहुँचेगा। इसीलिए पूज्य महाराज जी कहते हैं – “कर ले निज काज जवानी में, इस दो दिन की जिंदगानी में।”

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