राजस्थान

दूसरे की पीड़ा को समझने वाला पीर और दूसरे की पीड़ा को नहीं समझने वाला काफिर (बेपीर) होता है – बाबा उमाकान्त महाराज

दूसरे की पीड़ा को समझने वाला पीर और दूसरे की पीड़ा को नहीं समझने वाला काफिर (बेपीर) होता है – बाबा उमाकान्त महाराज

जो समरथ गुरु को पहचान जाते हैं, वे उनके हर आदेश का पालन करने को तैयार रहते हैं

जोधपुर, राजस्थान। बाबा उमाकान्त महाराज ने 02 सितंबर 2025 के सतसंग में कहा कि गुरु को देखते खूब हैं, समझने की कोशिश भी करते हैं। देखते हैं कि बहुत भीड़ आती है, बहुत लोग आते हैं अपनी दुख-तकलीफ कहते हैं, तो फायदा जरूर होता होगा, इनके पास क्यों आते हैं? इनसे प्रेम क्यों करते हैं? यह उनसे ज्यादा ( प्रेमियों से ) प्रेम करते होंगे। इन सब चीजों का तो अध्ययन करते हैं, देखते हैं लेकिन पहचान नहीं हो पाती है। सन्तों, महात्माओं के शिष्य बहुत से लोग बन जाते हैं लेकिन गुरु की पहचान उनको नहीं हो पाती है।

कारण क्या है? खाली उनके शरीर को देखते हैं। उनकी आंखों को देखते हैं जिसमें से तेज निकलता है, शरीर में एक आकर्षण पैदा होता है, प्रेम की धारा निकलती है, तो उससे सराबोर होते हैं, तो वही देखते हैं। लेकिन कुछ तो पहचान जाते हैं और जो पहचान जाते हैं, वे आदेश पर कुर्बान होने के लिए तैयार होते हैं।

कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जानिया, सो काफिर बेपीर।।

पीर किसको कहते हैं? पीर का मतलब होता है “पीड़ा”, “दर्द”। तो जो दूसरे के दर्द को जानता है, दूसरे के दर्द को समझता है, वही पीर होता है। और जो दूसरे के दर्द को नहीं समझता, कपड़ा पहन ले, गद्दी पर बैठ जाए, दरबार लगाने लगे, वह पीर नहीं माना जाता है, उसको तो कबीर साहब ने कहा कि काफिर बेपीर है ये, किसी की पीर, दर्द को समझता ही नहीं है।

ये मुर्गा, भैंसा, बकरा काट देता है, दर्द नहीं समझता है कि हमारी अंगुली अगर काटी जाए तो कितना दर्द होगा। ऐसे ही इसका गला जब हम काटेंगे तब कितना दर्द होगा; इस चीज को नहीं समझता है। यह नहीं समझता है कि
“जो गल काटे और का, अपना रहा कटाय।
साहेब के दरबार में बदला कहीं ना जाए।।”

साहेब के दरबार में बदला देना पड़ेगा। साहेब को ही भूला हुआ होता है, मालिक को ही भूला हुआ होता है। तो जो दूसरे का दर्द समझता है उसको पीर कहते हैं।

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