Bihar Assembly Election 2025: क्या राहुल गांधी का ‘दलित स्ट्रोक’ बदल पाएगा कांग्रेस की किस्मत? पढ़िए एक्सप्लेनर….

बिहार : बिहार की सियासत गर्मी बढ़ती जा रही है। जैसे-जैसे 2025 का विधानसभा चुनाव करीब आता जा रहा है, राज्य का माहौल राजनीतिक रुप से लगातार बदलता दिखाई दे रहा है। सभी दल अपने-अपने समीकरण साधने के लिए जमीनी रुप से सक्रिय हो चुके हैं। हालांकि, इस बार कांग्रेस की स्थिति कुछ अलग है।
इंडिया गठबंधन के हिस्से के रूप में चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस में एक नई ऊर्जा दिखाई दे रही है और इसकी वजह हैं राहुल गांधी। राहुल गांधी ने बीते कुछ महीनों में बिहार की पाँच यात्राएँ की हैं और लगातार दलित वोट को साधने की कोशिश कर रहे हैं।
राहुल गांधी का कभी दलित छात्रावास में रुकना, तो कभी पिछड़े वर्ग के मुद्दों पर संवाद इन तमाम कोशिशों से यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस इस बार सिर्फ गठबंधन पर निर्भर नहीं रहना चाहती, बल्कि अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान गढ़ने के प्रयास में है।
आज के एक्सप्लेनर में जानते हैं आखिर बिहार में कांग्रेस कितना सफल हो पाएगी….
कांग्रेस की खिसकती जमीन :
एक दौर में बिहार की राजनीति में कांग्रेस की स्थिति बेहद मजबूत हुआ करती थी। उस वक्त राज्य की सत्ता में कांग्रेस का एकछत्र राज था, लेकिन मंडल युग की शुरुआत और क्षेत्रीय दलों के उभार ने कांग्रेस को धीरे-धीरे हाशिये पर ला दिया।
अगर आंकड़ों के खेल को समझें तो 1990 में कांग्रेस को जहां करीब 25% वोट मिला करता था, वहीं 2020 तक यह घटकर महज 9% रह गया। यह गिरावट केवल चुनावी आंकड़ों में ही नहीं, बल्कि जनमानस में पार्टी की कमजोर होती पकड़ में भी झलकती है।
बिहार में कांग्रेस की दुर्दशा का एक बड़ा कारण राज्य में पार्टी में बड़े चेहरे और नेतृत्व की कमी है। कांग्रेस में पिछले कई सालों से कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आया जिस पर जनता विश्वास करती हो। इसके साथ ही दूसरा कारण राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ बना गठबंधन भी रहा है।
यह गठबंधन कांग्रेस को ताकत देने के बजाय, उसकी राजनीतिक पहचान और जनाधार को और कमजोर करता चला गया। भले ही राहुल गांधी बिहार में दलित कार्ड खेल रहे हैं लेकिन आरजेडी का मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण ने कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में गहरी सेंध लगाई। वहीं, नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू ने महा दलितों और EBC वर्ग में अपनी पैठ मजबूत कर ली।
राहुल गांधी के दलित स्ट्रोक से कितना बदलेगा समीकरण?
आज जब कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्गठन के दौर से गुजर रही है, राहुल गांधी बिहार में दलित और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को फिर से साधने की कवायद में जुटे हैं। हाल के महीनों में राहुल की बार-बार बिहार यात्राएं इन सबके माध्यम से कांग्रेस ने एक संदेश देने की कोशिश की है अब पार्टी दलित वोट बैंक को गंभीरता से ले रही है।
इस संदर्भ में इस ओर ध्यान देना चाहिए की कांग्रेस ने संगठनात्मक स्तर पर भी कुछ बड़े बदलाव किए हैं। सवर्ण नेता अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर दलित नेता राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाना और सुशील पासी को सह-प्रभारी नियुक्त करना, इस दिशा में उठाया गया अहम कदम है। यह बदलाव प्रतीकात्मक होने के साथ-साथ दलितों में कांग्रेस के प्रति विश्वास लौटाने की एक कोशिश है। लेकिन सवाल अब भी वही कि क्या सिर्फ चेहरों को बदलने से जमीन पर असर पड़ेगा?
हालांकि कांग्रेस की यह नई रणनीति RJD के साथ तनाव को भी जन्म दे सकती है। दोनों ही दल अब दलित वोट बैंक को अपने-अपने तरीके से लुभाने में जुटे हैं, जिससे वोटों के बिखराव का खतरा भी बढ़ता है। 2025 के विधानसभा चुनाव में जब राज्य की लगभग 19% दलित आबादी निर्णायक भूमिका में होगी, तब यह साफ होगा कि कांग्रेस की यह कवायद रंग लाई या नहीं।
एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि नीतीश कुमार के लिए साइलेंट वोटर माने जाने वाली दलित महिलाएं, राहुल गांधी की प्रत्यक्ष जनसंपर्क और भावनात्मक अपील से प्रभावित हो सकती हैं। यदि राहुल गांधी इस वर्ग में थोड़ी भी सेंध लगाने में सफल होते हैं, तो इसका सीधा असर जेडीयू के वोट बैंक पर पड़ सकता है।
कांग्रेस वापस पाएगी अपनी जमीन?
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की रणनीति बिहार में एक नई उम्मीद की किरण जरूर बन रही है। लेकिन यह राह इतना आसान नहीं है। आरजेडी का मजबूत जातीय समीकरण, जेडीयू की संगठित सत्ता संरचना, और भाजपा के तय वोटर्स और वैचारिक पकड़ इन तीनों के बीच कांग्रेस का 30 साल पुराना साख, इन सबके बीच संतुलन साधते हुए कांग्रेस को अपने लिए जगह बनानी होगी।
यदि कांग्रेस दलित वर्गों के बीच एक विकल्प के रूप में उभरती है, तो यह बिहार ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भी पार्टी के लिए संजीवनी बूटी की तरह काम कर सकती है। लेकिन यदि रणनीति केवल प्रचार तक सीमित रही और जमीनी स्तर पर बदलाव नहीं दिखा, तो कांग्रेस को एक बार फिर भ्रम और राजनीतिक हताशा का सामना करना पड़ सकता है।
बिहार की 2025 की परीक्षा न केवल राहुल गांधी की रणनीति की अग्निपरीक्षा होगी, बल्कि कांग्रेस के भविष्य की दिशा भी तय करेगी। यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि बिहार चुनाव की आंधी कांग्रेस के बहाव को किस ओर ले जाती है।