Bihar Election 2025: बिहार चुनाव से पहले नई पार्टियों की एंट्री से सियासी हलचल तेज! बिगाड़ सकती हैं सियासी गणित…क्या पुराने नेताओं को मिलेगी चुनौती?

Bihar Chunav 2025: बिहार में साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आर रहे हैं, प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है। कई नई राजनीतिक पार्टियों का जन्म हो रहा है। ये उभरती हुई नई पार्टियां पुराने दलों के लिए सिरदर्द बनती नजर आ रही हैं क्योंकि ये नए खिलाड़ी चुनाव बिगाड़ने की भूमिका निभा सकते हैं। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की अगुआई में जन सुराज के गठन के बाद बिहार में तीन और राजनीतिक दल बन गए हैं।
अभी तक किसी भी नए दल ने यह घोषणा नहीं की है कि वे किसी बड़े गठबंधन का हिस्सा बनना चाहते हैं। ये तीन दल हैं, पहला, ‘आप सबकी आवाज (राष्ट्रीय)’, जिसका गठन पूर्व आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह ने किया है। दूसरा ‘इंकलाब पार्टी (आईआईपी)’ जिसका गठन पूर्व कांग्रेस नेता आई.पी. गुप्ता ने किया है। तीसरा है ‘हिंद सेना पार्टी’ जिसका गठन पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप वामनराव लांडे ने किया है, जिन्होंने हाल ही में सिविल सेवा से इस्तीफा दिया है।
क्या बदलेंगे ये नई पार्टियां चुनावी गणित?
नए राजनीतिक दलों का आना पहले से स्थापित राजनीतिक दलों के लिए चुनौती के रूप में देखा जा सकता है। पिछले पांच दशकों से बिहार की राजनीति राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद, जनता दल-(यूनाइटेड) के अध्यक्ष नीतीश कुमार और संयुक्त लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के दिवंगत रामविलास पासवान के इर्द-गिर्द घूमती रही है।
बिहार में दो प्रमुख गठबंधनों, जेडी-(यू) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के अलावा, असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (एएसपी) भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।
हाल ही में हुए उपचुनाव में किशोर की पार्टी जन सुराज ने 10% वोट हासिल कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी और महागठबंधन की संभावनाओं को खत्म कर दिया था। अतीत में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और पुष्पम प्रिया चौधरी की प्लुरल्स पार्टी (टीपीपी) जैसी छोटी पार्टियों ने वोट कटवा की भूमिका निभाई है।
आई.पी. गुप्ता तांती-ततवा (ईबीसी) और आरसीपी सिंह कुर्मी (ओबीसी) वोटरों को साधने की कोशिश में लगे हैं। वहीं शिवदीप वामनराव लांडे और प्रशांत किशोर जाति और धर्म से परे जाकर “स्वच्छ” राजनीति का मंच तलाश रहे हैं।
जन सुराज ने साफ-साफ कहा है कि उनकी राजनीति जाति पर आधारित नहीं है। ये नई पार्टियां बड़ी पार्टियों के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। महागठबंधन में RJD-कांग्रेस गठबंधन की मुस्लिम-यादव (MY) वोटबैंक पर सेंध AIMIM जैसी पार्टियां लगा सकती हैं। एनडीए में JDU-BJP गठबंधन को पिछड़े वर्गों में नई पार्टियों की पैठ से नुकसान हो सकता है।
क्या कहते हैं बिहार के नए राजनीतिक दलों के मुखिया?
द हिंदू के मुताबिक ‘आप सबकी आवाज (राष्ट्रीय)’ के प्रमुख पूर्व आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह ने कहा है कि हमने हर स्तर पर संगठन बनाया है, चाहे वह ब्लॉक, पंचायत, जिला और विधानसभा सीट स्तर हो। हम हर जिले में कार्यक्रम कर रहे हैं और हम निगरानी कर रहे हैं कि हमारे नेता किस विधानसभा क्षेत्र में चुनाव लड़ने के लिए उत्सुक हैं, निर्वाचन क्षेत्र के समीकरणों के अनुसार ही हम उन्हें सीट देंगे।
उन्होंने आगे कहा, “हम निश्चित रूप से उन सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे, जहां हमें जीतने का भरोसा है। हालांकि, अभी तक संख्या तय नहीं हुई है। मैंने लगभग चार दशकों से बिहार की राजनीति को करीब से देखा है। हमारी पार्टी नई है, लेकिन पार्टी से जुड़े लोग अनुभवी राजनेता हैं। मुझे पता है कि एक नई राजनीतिक पार्टी को छाप छोड़ने में समय लगता है, लेकिन हर राजनीतिक दल एक नई पार्टी के रूप में राजनीति में प्रवेश करता है और फिर बदलाव लाता है। हमारी पार्टी उनमें से एक है।”
किसी गठबंधन में शामिल होने की बात पर आरसीपी सिंह ने कहा, “मेरे सभी राजनीतिक दलों के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं और हमारे लिए विकल्प खुले हैं। अगर हम किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन करते हैं, तो हमारी सफलता दर बहुत अच्छी होगी।”
‘इंकलाब पार्टी (आईआईपी)’ अध्यक्ष आई.पी. गुप्ता ने कहा है कि उनकी पार्टी बिहार में वोट काटने वाली की भूमिका नहीं निभाएगी। उन्होंने अपनी पार्टी के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने की बात कही है।
जन सुराज का दावा- बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर लड़ेंगे चुनाव
जन सुराज के प्रदेश अध्यक्ष मनोज भारती ने कहा, ”हम सभी 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं। हम बिहार के लोगों को एक विकल्प देने आए हैं। हम लोगों को सिर्फ यह बता रहे हैं कि भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं और जो सरकार सत्ता में है, उसे असली मुद्दों की चिंता नहीं है और उसने जो वादे किए थे, उन्हें पूरा नहीं किया। हम लोगों को यह भी बता रहे हैं कि उन्हें अपने बच्चों के भविष्य की चिंता करनी चाहिए।”
भारती ने कहा, “चुनाव लड़ने से ज्यादा हमारा ध्यान बिहार के लोगों को शिक्षित करने पर है। हम उन्हें बता रहे हैं कि वे अपनी दयनीय स्थिति के पीछे की वजह समझें और मौजूदा स्थापित पार्टियां कोई बदलाव नहीं ला सकतीं। इसलिए उन्हें एक नई सोच और नई पार्टी को मौका देना चाहिए।”
जातिगत वोटों का फायदा उठाने के लिए उभर सकती हैं और नई पार्टियां
जातिगत वोटों का फायदा उठाने के लिए और भी पार्टियां उभर सकती हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक नए राजनीतिक दल सिर्फ अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते हैं। जाति आधारित राजनीतिक दल चाहते हैं कि बड़ी पार्टियां उन्हें कुछ तवज्जो दें ताकि वे एक या दो सीटें जीत सकें। चुनाव से पहले राजनीतिक दल बनाने का दूसरा कारण टिकट आवंटन के नाम पर चंदा लेना है। मोटे तौर पर, लोग हमेशा ऐसी पार्टियों को वोट कटवा के रूप में देखते हैं।