Bihar News: बिहार चुनाव 2025 की स्क्रिप्ट तैयार, मोदी-नीतीश की जोड़ी विपक्ष की सबसे बड़ी चुनौती, 5 प्वाइंट में जानिए NDA क्यों है मजबूत?

बिहार : बिहार में साल के अंत तक जैसे-जैसे चुनावी गर्मी बढ़ेगी, वैसे-वैसे राजनीतिक फिजा और भी तीखी होती जाएगी। पटना से चुनावी संग्राम की गूंज अब तेज होती जा रही है। अनुमान यही है कि अक्टूबर के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज जाएगी। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि चुनाव की स्क्रिप्ट पहले ही तैयार होती नजर आ रही है-जिसमें मुख्य नायक एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनकर उभर रहे हैं, और विपक्ष उनके सामने राजनीतिक अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में जुटा है।
इस बार बिहार चुनाव का मुकाबला आम चुनाव जैसा नहीं, कहीं ज्यादा तीखा और नुकीला होगा, क्योंकि एक ओर है मोदी-नीतीश की विकास और स्थिरता वाली जोड़ी, और दूसरी ओर है बिखरा, बौखलाया और अंदरूनी कलह से जूझता विपक्ष। बीते पांच सालों में केंद्र और राज्य सरकार की साझा कोशिशों ने बिहार में बुनियादी ढांचे, सामाजिक सुरक्षा, कृषि, स्वास्थ्य और युवाओं के लिए कई ऐसी योजनाओं को जमीन पर उतारा है, जो वोटर के दिल और जमीन दोनों पर असर छोड़ चुकी हैं। यही वजह है कि विपक्षी खेमे में बेचैनी बढ़ गई है -खासकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के लिए ये चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। आइए 5 प्वाइंट में समझते हैं कि आखिर बिहार में NDA मजबूत स्थिति में क्यों है।
मोदी मैजिक बनाम बिखरा विपक्ष
पिछले पांच सालों में एनडीए सरकार ने बिहार की जमीन पर विकास की जो फसल बोई है, अब चुनाव के मौसम में उसी की कटाई का वक्त आ गया है। पीएम मोदी के विजन और सीएम नीतीश कुमार के तजुर्बे ने साथ मिलकर जिस “गवर्नेंस + ग्राउंड वर्क मॉडल” को आगे बढ़ाया, उसकी चमक से विपक्ष की आंखें चौंधिया रही हैं।
एनडीए की नीतियों ने गरीब, दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक और महिलाओं के बीच मजबूत पकड़ बनाई है। आज जब विपक्षी दल ‘भ्रष्टाचार, परिवारवाद और बिखराव’ के आरोपों से जूझ रहे हैं, तब NDA विकास, स्थिरता और विश्वसनीयता का पर्याय बन चुका है।
विकास की रफ्तार: सड़कों से आसमान तक
- बिहार की राजनीति में विकास अब चुनावी मुद्दा बन चुका है, और इसका श्रेय केंद्र सरकार की योजनाओं को जाता है।
- सड़क मंत्रालय ने 5 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट्स के साथ बिहार की सड़कें चमका दीं।
- नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने पूर्णिया और बिहटा को हवाई नक्शे पर ला दिया।
- दूसरे एम्स, आयुष्मान भारत योजना, और करोड़ों के स्वास्थ्य बजट ने जनविश्वास पक्का किया।
- कृषि क्षेत्र में 7.25 लाख मीट्रिक टन के साइलो निर्माण और 74 लाख किसान परिवारों को सीधे आर्थिक लाभ ने NDA को ग्रामीण वोट बैंक का चहेता बना दिया। ये आंकड़े नहीं, राजनीतिक टूलकिट हैं-जो 2025 में एनडीए को बढ़त दिला सकते हैं।
चिराग पासवान से लेकर जीतनराम मांझी तक-जातीय संतुलन का मास्टरस्ट्रोक
बिहार की राजनीति जातिगत गणित से अलग नहीं हो सकती। लेकिन एनडीए ने इसे भी अपना चुनावी हथियार बना लिया है। नीतीश कुमार के पास कुर्मी-कोइरी वोटबैंक, चिराग पासवान का दलित समुदाय पर मजबूत प्रभाव, जीतनराम मांझी महादलितों की आवाज,
उपेंद्र कुशवाहा ओबीसी समीकरणों के खिलाड़ी
NDA इन सभी ताकतों का एकजुट चेहरा है और जब इस समीकरण में मोदी फैक्टर जुड़ता है, तो विपक्षी गणना लड़खड़ा जाती है। ये समीकरण आरजेडी और कांग्रेस को कहीं ठहरने नहीं दे रहे।
INDIA गठबंधन: अंदरूनी घमासान और नेतृत्व संकट
विपक्ष के पास न कोई साफ नेतृत्व, न कोई एकजुटता। INDIA ब्लॉक सीटों के बंटवारे, चेहरे के चयन और मुद्दों की प्राथमिकता पर आपस में उलझा पड़ा है। कांग्रेस को संगठन का भारी संकट है और RJD खुद अपने पारिवारिक घमासान से परेशान।
तेज प्रताप यादव की नाराजगी और तेजस्वी की सीमित स्वीकार्यता, “नौकरी के बदले जमीन” घोटाले का राजनीतिक असर, महिला मतदाताओं में लालू परिवार की नकारात्मक छवि, इन सबने आरजेडी को कमजोर कर दिया है। लालू परिवार की पारिवारिक कलह RJD की सबसे बड़ी कमजोरी है।
विपक्षी INDIA गठबंधन को देखकर लगता है कि वो सिर्फ नाम के लिए गठबंधन है। आरजेडी और कांग्रेस में सीट बंटवारे को लेकर झगड़ा, अंदरूनी खींचतान और नेतृत्वहीनता, वाम दलों की प्रभावहीनता। इस गठबंधन की हालत बिना मांझी की नाव जैसी है-जो चुनावी लहरों में डगमगा रही है।
NDA का चुनावी प्लान: बूथ से लेकर बुलेटिन तक हर स्तर पर तैयारी
बिहार में NDA चुनावी मशीन को 2025 के लिए फुल स्पीड में चला चुके हैं। हर सीट पर रणनीति, हर गांव में मौजूदगी यही है NDA का चुनावी प्लान। बीजेपी का विधानसभावार कार्यकर्ता संपर्क अभियान,जेडीयू का “मिशन 225”, चिराग पासवान की आक्रामक शैली और पीएम मोदी की जनसभाओं की सीधी अपील- इन सबने एनडीए को 2025 के लिए जमीनी तौर पर पहले ही चुनावी मोड में डाल दिया है।