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Bihar News- ‘बिहार वोटर वेरिफिकेशन सही, लेकिन टाइमिंग अहम मुद्दा’: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, जानिए क्या-क्या कहा?

बिहार: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर उठे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि चुनाव आयोग का यह कदम भारतीय संविधान के तहत पूरी तरह वैध और अनिवार्य है। हालांकि पीठ ने यह भी कहा कि ‘चुनाव से कुछ महीने पहले बिहार वोटर वेरिफिकेशन करना सही नहीं है। लेकिन और पहले किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्य बागची ने इस मामले में दायर 10 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा, “चुनाव आयोग द्वारा किया जा रहा बिहार वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन संविधान द्वारा अनिवार्य और वैध है। इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है।” कोर्ट ने यह भी बताया कि ऐसा विशेष पुनरीक्षण पिछली बार 2003 में हुआ था, और अब 2024 में दो दशक बाद यह प्रक्रिया की जा रही है।

आधार कार्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्य बागची की पीठ ने चुनाव आयोग से पूछा कि आखिर आधार कार्ड नागरिकता के प्रमाण के तौर पर क्यों स्वीकार्य क्यों नहीं है? जिसका जवाब देते हुए चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है।

जिसपर जस्टिस धूलिया ने कहा, “लेकिन नागरिकता का मुद्दा भारत के चुनाव आयोग द्वारा नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय द्वारा तय किया जाना है।” चुनाव आयोग के वकील ने जवाब दिया, “हमारे पास अनुच्छेद 326 के तहत शक्तियां हैं।” पीठ ने पलटवार करते हुए कहा कि चुनाव आयोग को यह प्रक्रिया बहुत पहले शुरू कर देनी चाहिए थी।”

“मान लीजिए, 2025 की मतदाता सूची में पहले से मौजूद व्यक्ति को मताधिकार से वंचित करने का आपका फैसला, उस व्यक्ति को इस फैसले के खिलाप अपील करने और इस पूरी प्रक्रिया से गुजरने के लिए बाध्य करेगा और इस प्रकार आगामी चुनाव में उसके मतदान के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा। गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में न रहने देने के लिए गहन प्रक्रिया के माध्यम से मतदाता सूची को शुद्ध करने में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन अगर आप प्रस्तावित चुनाव से कुछ महीने पहले ही यह निर्णय लेते तो ज्यादा सही रहता।”

याचिकाकर्ताओं ने उन मतदाताओं की गणना के लिए नागरिकता के दस्तावेजों के रूप में चुनाव आयोग द्वारा सुझाए गए 11 दस्तावेजों की सूची से आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को बाहर करने पर सवाल उठाया था, जो 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं थे।

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