Bihar News: बिहार चुनाव से पहले नीतीश का जातीय संतुलन का दांव, CM ने चला मास्टरस्ट्रोक, बढ़ेगी RJD और कांग्रेस की मुश्किलें…

Bihar Upper Caste Commission 2025: बिहार की राजनीति में एक बार फिर जातीय संतुलन की सियासत तेज हो गई है। बिहार चुनाव 2025 से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फिर से वही पॉलिटिकल फॉर्मूला अपनाना शुरू कर दिया है, जिसने उन्हें पहले सत्ता में पहुंचाया था-जातीय संतुलन और सामाजिक समावेशन। सवर्ण आयोग और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व के ताजा फैसलों से यह साफ है कि NDA का लक्ष्य अब हर वर्ग को साथ लाकर एक व्यापक चुनावी जीत सुनिश्चित करना है।
सीएम नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा कदम उठाते हुए सवर्ण जातियों के लिए ‘उच्च जाति आयोग’ बनाने का ऐलान 30 मई 2025 को किया है। ये आयोग सवर्ण जातियों के विकास के लिए बनाया गया है। इसके अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता महाचंद्र सिंह बनाए गए हैं और जेडीयू (JDU) नेता राजीव रंजन प्रसाद उपाध्यक्ष बनाए गए हैं। इसके साथ ही अल्पसंख्यक वर्ग को साधने के लिए जेडीयू नेता गुलाम रसूल को बिहार अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है।
बिहार जातीय समीकरण: किस वर्ग को साधने की कोशिश में NDA?
जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बिहार दौरा आज (30 मई) खत्म हुआ और इसके तुरंत बाद नीतीश सरकार ने सवर्ण वाला दांव खेल दिया। नीतीश सरकार का यह जातीय संतुलन वाला कदम कई राजनीतिक संदेश दे रहा है। नीतीश कुमार चुनाव से पहले सभी वर्गो को साधने की कोशिश में लगे हुए हैं। बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय गणित पर आधारित रही है। नीतीश कुमार का यह फैसला स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि एनडीए अब सवर्ण समुदाय को संगठित रूप से अपने साथ लाना चाहता है।

सवर्ण वोट बैंक
ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ जैसी जातियां राज्य में कुल मिलाकर 13-15% आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं। पारंपरिक रूप से यह वर्ग भाजपा का वोट बैंक माना जाता रहा है, लेकिन हालिया वर्षों में इस वर्ग में असंतोष देखा गया है। पिछले विधानसभा चुनाव 2020 और लोकसभा चुनाव 2024 में जनरल कास्ट के वोट भाजपा के लिए बंट गए थे। इसी का असर था कि लोकसभा चुनाव 2024 में बक्सर से पहली बार भाग्य आजमा रहे मिथिलेश तिवारी को हार मिली थी। 2019 में एनडीए को 39 सीटें मिली थीं लेकिन 2024 में 30 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। ऐसे में अब आयोग के गठन से यह संकेत दिया गया है कि सवर्णों के विकास और पहचान को लेकर सरकार गंभीर है।
अल्पसंख्यक संतुलन
नीतीश कुमार जानते हैं कि सिर्फ सवर्ण समर्थन से बात नहीं बनेगी। इसलिए अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए गुलाम रसूल को बिहार अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। यह कदम RJD और कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश है। ये वही गुलाम रसूल हैं, जो वक्फ कानून 2025 को लेकर भाजपा की जमकर आलोचना करते देखे गए थे, अब ऐसे में उनका अल्पसंख्यक आयोग की जिम्मेदारी सौंपकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की गई है।
सीटों का गणित: किस दिशा में बढ़ रही है NDA?
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने महज कुछ सीटों के अंतर से बहुमत हासिल किया था। लेकिन तब से राजनीतिक हालात बदल चुके हैं। नीतीश कुमार का बार-बार पाला बदलना, उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर चुका है। ऐसे में अब एनडीए को फिर से हर जाती-समूह के वोट को टारगेट करना पड़ेगा। ऐसे में अब यह देखना होगा कि क्या भाजपा और जेडीयू की यह नई सोशल इंजीनियरिंग रणनीति, बदले हुए राजनीतिक हालातों में भी उतनी ही कारगर साबित होगी जितनी पहले थी।
राजनीतिक संदेश क्या है?
PM मोदी के दौरे के तुरंत बाद यह घोषणा दिखाती है कि भाजपा नीतीश कुमार के साथ बेहतर तालमेल बनाने में जुटी है। सवर्ण आयोग से यह संकेत भी जाता है कि NDA अब चुनाव में हर तबके को अलग-अलग टारगेट करके वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है। ये विपक्षी गठबंधन ‘महागठबंधन’ पर दबाव बनाने की भी कोशिश है, जो OBC-मुस्लिम समीकरण के भरोसे बैठे हैं।
इससे पहले जाति जनगणना का कार्ड खेलकर भाजपा ने कांग्रेस के चुनावी मुद्दे को हाईजैक कर लिया है।RJD के पास यादव और मुस्लिम वोटबैंक का ठोस आधार है लेकिन सवर्ण और महिला वोटरों में सीमित पकड़ है। अगर नीतीश और बीजेपी मिलकर सवर्ण +अति पिछड़ा+महिला वोटरों को फिर से अपनी और करने में माहिर हो जाते हैं तो, RJD की राह मुश्किल हो सकती है। कांग्रेस और अन्य दल अभी तक बिहार में रणनीतिक रूप से कमजोर दिख रहे हैं।