Bihar News: बिहार चुनाव कांग्रेस के लिए क्यों बना है ‘करो या मरो’ की लड़ाई? पिछले 10 चुनावी नतीजों से समझिए पूरी कहानी…

बिहार: बिहार में साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। बिहार चुनाव इस बार कांग्रेस के लिए आर या पार की लड़ाई है। क्या बिहार में कांग्रेस की कहानी खत्म होने वाली है? ये सवाल बार-बार उठाया जा रहा है….असल में बीते चार दशकों के आंकड़े, संगठनात्मक कमजोरी, नेतृत्व की कमी और गठबंधन में घटती हैसियत , इन सबने बिहार में कांग्रेस को लगभग हाशिए पर लाकर खड़ा किया है।
1951 से बिहार में विधानसभा चुनाव की शुरुआत हुई थी, इसके बाद 2020 तक बिहार में 17 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। बिहार की राजनीति में कभी अहम भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी आज राज्य में ना के बराबर सीटें ला रही हैं, 1985 में सत्ता में रही कांग्रेस की स्थिति
अब लगातार कमजोर होती जा रही है। इस लेख में हम आपको बिहार के पिछले 10 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लगातार गिरते ग्राफ के बारे में बताएंगे।
बिहार के पिछले 10 चुनाव, गिरती सीटें: कांग्रेस के सामने आर-पार की चुनौती!
1. बिहार विधानसभा चुनाव 2020
- इस चुनाव में कांग्रेस और RJD एक साथ चुनाव लड़ी थी। कांग्रेस 70 में से सिर्फ 19 सीटें जीत पाई थी। वहीं RJD 75 सीटें जीती थी।
- इस चुनाव में भाजपा 74 सीटें और JDU 43 सीटें जीती थीं। चुनाव के बाद जेडीयू ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और नीतीश कुमार सीएम बने।
2. बिहार विधानसभा चुनाव 2015
- लालू यादव की RJD और नीतीश कुमार की नेतृत्व वाली JDU ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस 41 सीटों और भाजपा 157 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। जिसमें RJD 80 सीटें और JDU 71 सीटें, BJP 53 सीटें और कांग्रेस को सिर्फ 27 सीटें मिली थीं।
- चुनाव के बाद महागठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया। 2017 में JDU महागठबंधन से अलग हो गई और नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई।
3. बिहार विधानसभा चुनाव 2010
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- इस चुनाव में JDU और BJP ने मिलकर चुनाव लड़ा था। JDU 141 सीटों पर लड़ी और 115 सीटें जीती। BJP 102 में से 91 सीटें जीती थीं।
- RJD 168 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 22 सीटें जीती थीं। कांग्रेस ने पूरी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन सिर्फ 4 सीटों पर सिमट गई।
4. बिहार विधानसभा चुनाव 2005
- इस साल बिहार में दो बार विधानसभा चुनाव हुए थे। फरवरी 2005 में हुए चुनाव में राजद ने 215 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से उसे 75 सीटें मिली। JDU 138 सीटों पर चुनाव लड़ 55 सीटें जीत पाई। BJP 103 में से 37 सीटें जीती। कांग्रेस 84 सीटों पर लड़ी थी और 10 सीटें ही जीत पाई थी। इन चुनावों में 122 सीटों का बहुमत किसी को नहीं मिला और फिर से अक्टूबर-नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए।
- दूसरे विधानसभा चुनावों में JDU 139 सीटों पर चुनाव लड़ी और 88 सीटें जीती। BJP 102 में से 55 सीटें जीती। RJD 175 सीटों में से 54 सीटें जीतीं। कांग्रेस 51 में से 9 सीटें जीतीं। इन चुनाव में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।
5. बिहार विधानसभा चुनाव 2000
- मार्च 2000 में विधानसभा चुनाव हुए, जब झारखंड बिहार का हिस्सा था और उस वक्त कुल 324 सीटें थीं और बहुमत के लिए 162 सीटें चाहिए थे। RJD 293 सीटों पर चुनाव लड़ी और 24 सीटें मिली थीं।
- BJP 168 सीटों पर लड़ी और 67 सीटें जीतीं। समता पार्टी को 120 में से 34 और कांग्रेस 324 में से 23 सीटें ही जीत पाई थी। इस चुनाव के बाद 2000 राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी थीं।
6. बिहार विधानसभा चुनाव 1995 में कांग्रेस 320 सीटों पर चुनाव लड़कर 29 सीटें ही जीत पाई थी।
7. बिहार विधानसभा चुनाव 1990 में कांग्रेस को 323 सीटों में से 71 सीटें ही जीत पाई थी।
8. बिहार विधानसभा चुनाव 1985 में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। कांग्रेस 323 में से 196 सीटें मिली थीं।
9. बिहार विधानसभा चुनाव 1980 में कांग्रेस (इंदिरा गांधी) को 311 में से 169 सीटें मिली थीं। वहीं कांग्रेस (यू) को 185 में से 14 सीटें मिली थीं।
10. बिहार विधानसभा चुनाव 1977 में कांग्रेस को 286 में से 57 सीटें ही मिली थीं।
बिहार में कांग्रेस का क्यों गिरता जा रहा है ग्राफ?
- संगठनात्मक कमजोरी: बिहार में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा कमजोर है, जिससे जमीनी स्तर पर पार्टी की पकड़ ढीली हुई है।
- नेतृत्व की कमी: राज्य स्तर पर प्रभावी नेतृत्व का अभाव रहा है, जिससे पार्टी की रणनीति कमजोर पड़ी है।
- गठबंधन में निर्भरता: RJD जैसे सहयोगी दलों पर अत्यधिक निर्भरता ने कांग्रेस की स्वतंत्र पहचान को कमजोर किया है।
2025: भविष्य की राह
2025 के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस ने संगठनात्मक सुधार की दिशा में कदम उठाए हैं। हालांकि, पार्टी को अपनी जमीनी पकड़ मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। अगर पार्टी को राज्य में प्रभावी भूमिका निभानी है, तो उसे संगठनात्मक सुधार, प्रभावी नेतृत्व और स्वतंत्र रणनीति पर ध्यान केंद्रित करना होगा।