Bihar News: हरनौत में फिर दिखेगा नीतीश का जलवा या होगा सियासी उलटफेर? जानें चुनावी समीकरण….

बिहार: बिहार की नालंदा लोकसभा क्षेत्र की हरनौत विधानसभा सीट इन दिनों राजनीतिक उथल‑पुथल का केंद्र बनी हुई है। ऐतिहासिक, सामाजिक और चुनावी दृष्टि से यह सीट बेहद अहम है। हरनौत सीट को जेडीयू का अभेद किला माना जाता है। 2005 से लेकर अब तक के हुए चुनावों में जेडीयू यहां से लगातार जीत रही है। नीतीश कुमार का राजनीतिक करियर भी हरनौत से ही शुरू हुआ था।
हरनौत सीट पर जनता ने जदयू को पिछले चुनावों में विश्वास और वोट दिए हैं, लेकिन इस बार सोशल इंजीनियरिंग, जातीय गठजोड़ और RJD-महागठबंधन vs जदयू-NDA मुकाबले की राजनीति इसे दिलचस्प बना रही है। क्या नीतीश का अजेय किला टूटेगा? या फिर जदयू अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखेगा? यह लड़ाई 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव की सबसे नजदीकी निगरानी वाली सीट साबित हो सकती है।
हरनौत सीट का इतिहास
- हरनौत विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1972 में हुई। जेडीयू के नीतीश कुमार इस सीट से चार बार चुनाव लड़े हैं। 1985 और 1995 में इस सीट से उन्होंने जीत दर्ज की, लेकिन 1977 और 1980 में दो हारें भी झेलीं
- 2005 से अब तक (2005, 2010, 2015, 2020) जदयू का कब्जा रहा है। 2020 के चुनाव में जेडीयू के हरि नारायण सिंह 27 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी।
- 2015 के चुनाव में जेडीयू के उम्मीदवार हरिनारायण सिंह ने एलजेपी के अरुण कुमार को हराकर जीत दर्ज की थी। इससे पहले 2010 में भी हरिनारायण सिंह ने जेडीयू के टिकट पर जीत हासिल की थी। 2005 में जब दो बार विधानसभा चुनाव हुए, तब दोनों ही बार जेडीयू के सुनील कुमार ने हरनौत सीट पर जीत का परचम लहराया था।
हरनौत सीट जाति-जनसांख्यिकी
कुर्मी, यादव, ब्राह्मण, पासवान, महादलित, मुसलमान और अन्य पिछड़ी जातियां मिलकर इस सीट की राजनीतिक तस्वीर बनाती हैं। अनुसूचित जातियों की भागीदारी लगभग 24% है, जबकि मुस्लिम आबादी सिर्फ 0.5% है
2025 की रणनीतियां और संभावित उम्मीदवार
जदयू / NDA: नीतीश कुमार के गृहक्षेत्र होने की वजह से हरनौत को पार्टी के लिए A+ महत्व प्राप्त है। चूंकि पिछली बार LJP भी NDA में शामिल थी, आशा है कि इस बार भी गठबंधन में यह सीट मजबूत रहेगी। संभावित उम्मीदवार: हरि नारायण सिंह या कोई नया OBC/SC चेहरा।
महागठबंधन (RJD-कांग्रेस): RJD खासकर यादव आबादी के बहुसंख्यक वोट को साधने की कोशिश करेगा। हालांकि, अहम् मुद्दा होगा क्या गठबंधन इस सीट पर भी अपना उम्मीदवार उतारेगा या जदयू को चुनौती देगा।
स्वतंत्र/तीसरे मोर्चे: समय-समय पर निर्दलीय उम्मीदवार खड़े हुए हैं, लेकिन जदयू की ताकत कम नहीं हो पाई।
आगामी जंग: कौन कितना दांव लगाने को तैयार?
जातीय समीकरण: कुर्मी यादवों की भूमिका निर्णायक रहेगी, जहां RJD की उम्मीदें बनी रहेंगी, लेकिन जदयू की रणनीति समाज के अन्य वर्गों को जोड़ेगी।
लोकप्रियता और संगठन: हरि नारायण सिंह की मजबूत पकड़ के सामने नया उम्मीदवार ही चुनौती हो सकता है, चाहें वह युवा हो या गठबंधन का चेहरा।