जन्मदिन विशेष : सुधीर (यमराज मित्र) : साहित्यिक साधना के प्रखर साधक…

जन्मदिन विशेष : सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र): साहित्यिक साधना के प्रखर साधक…
गोण्डा (उत्तर प्रदेश)। साहित्य की पावन भूमि पर कुछ नाम ऐसे होते हैं, जो सिर्फ लेखक नहीं होते, बल्कि एक युग, एक प्रेरणा और एक परंपरा बन जाते हैं। सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र) भैया जी का नाम हिंदी साहित्य के उसी उज्ज्वल सितारे की तरह है, जिसकी रोशनी दूर-दूर तक फैल चुकी है। उत्तर प्रदेश के गोण्डा जनपद से आने वाले सुधीर भैया जी ने न केवल कठिन परिस्थितियों को मात दी, बल्कि साहित्य के माध्यम से समाज को जागरूक करने का अथक कार्य भी किया।
उनकी लेखनी में एक ऐसा तेज है जो अंधेरे को चीर कर सत्य की ओर ले जाती है। उनकी प्रकाशित पुस्तकें ‘यमराज मेरा यार’, ‘तीर्थयात्रा’ और ‘कथालोक’ केवल रचनाएँ नहीं हैं, बल्कि वे जीवन के अनुभवों और सामाजिक यथार्थ का जीवंत दस्तावेज़ हैं। सुधीर श्रीवास्तव भैया जी की लेखनी में व्यंग्य की धार, संवेदना की गहराई और शब्दों की सच्चाई का अद्भुत संगम दिखाई देता है। उनकी हर रचना समाज/व्यक्ति के किसी न किसी कोने को झकझोरती है, जागृति करती, चेतना जगाती और सोचने पर मजबूर करती है।
आज के समय में जहाँ बहुत से लेखक मंच की चकाचौंध में खो जाते हैं, वहाँ सुधीर भैया जी हर मंच पर अपनी सादगी, प्रतिभा और ओजस्वी शैली से छा जाते हैं। शायद ही ऐसा कोई मंच नहीं बचा जहाँ उनकी उपस्थिति न रही हो और जहाँ उन्हें सम्मानित न किया गया हो। वे मंचों के नहीं, दिलों के लेखक हैं। साहित्य जगत में उनकी लोकप्रियता इतनी अधिक है कि शायद ही कोई साहित्यप्रेमी हो, जो उन्हें न जानता हो या सम्मान न देता हो।
सुधीर भैया जी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे साहित्य को केवल लेखन नहीं, बल्कि समाज सेवा और आत्मसमर्पण का माध्यम मानते हैं। मृत्यु के पूर्व ही मृत्यु के उपरांत उन्होंने अपने देहदान की घोषणा करके यह सिद्ध कर दिया कि उनका जीवन और मृत्यु दोनों समाज के लिए समर्पित है। यह केवल एक साहसी निर्णय नहीं, बल्कि उनकी संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
वे न केवल स्वयं उत्कृष्ट साहित्य रचते हैं, बल्कि नवोदित लेखकों के मार्गदर्शक, प्रेरक भी हैं। वे सभी लेखकों को अपने भाई-बहन की तरह मानते हैं और निरंतर उन्हें प्रोत्साहित करते रहते हैं। उनकी उपस्थिति नए रचनाकारों के लिए प्रेरणा और संबल का स्रोत बन चुकी है।
मैं जब जब हताश या निराश हुई तो भैया ने ही मुझे हौसला दिया। उन्होंने कभी पिता की तरह सिखाया, तो कभी बड़े भाई की तरह समझाया, तो कभी एक गुरू की तरह डांट भी लगाई। तमाम मुश्किलों को दरकिनार कर भैया साहित्य जगत में चमकता सितारा बन कर उभरे हैं। भैया की जितनी प्रशंसा करूँ कम ही होगा।
‘जीना नहीं जिंदा रहना चाहता हूँ’ को अपना ध्येय बनाकर शारीरिक दुश्वारियों से जीवटता के साथ लड़ते हुए सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)भैया आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे स्वयं एक साहित्यिक संस्था हैं, एक चलती-फिरती प्रेरणा के साथ हिंदी साहित्य की वह किरण हैं, जो तमस में भी आशा की लौ जलाए रखती है। ऐसे साहित्य साधक को नमन, जिनकी लेखनी समाज का आइना भी है और दीपशिखा भी।
प्रिय भैया आपको जन्मदिवस की अनेक शुभकामनाएं।
छोटी बहन
शिखा गोस्वामी “निहारिका”
मारो, मुंगेली छत्तीसगढ़