छत्तीसगढ़

CG – बड़े झाड़ के पट्टे वाली जमीन पर छेड़छाड़ व कूटरचना कर करोड़ो के निजी ग्रीन चुल बायो प्लांट हो रहा तैयार, 541 रकबा के करीब 10 एकड़ भूमि पर चल रहा द्रुत निर्माण कार्य पढ़े पूरी ख़बर

0 राजस्व अमले की भूमिका पर उठ रहे गंभीर सवाल.

कोरबा//करोड़ो की लागत से निर्माण हो रहे ग्रीन चुल बायो प्लांट प्रोजेक्ट को बेजा लाभ पहुँचाने की नीयत से बड़े झाड़ और पट्टा प्राप्त वाली भूमि के खसरा नंबर पर राजस्व अमले द्वारा छेड़छाड़ व कूटरचना करने का एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। प्लांट स्थापित किये जा रहे करीब 10 एकड़ जिस शासकीय भूमि का ग्रामीणों को पांच दशक पहले वन अधिकार पट्टा प्राप्त है तथा ढाई दशक पूर्व वन विभाग द्वारा पौधारोपण कार्य भी कराया जा चुका है। प्लांट को लाभ पहुँचाने इतने बड़े हेरफेर का मामला जिला प्रशासन के संज्ञान में नही आ पाया है।

बेशकीमती शासकीय जमीन के खसरा नंबर पर छेड़छाड़ व कूटरचना कर निजी प्लांट को फायदा पहुँचाने का यह मामला जिले अंतर्गत पाली विकासखण्ड के सीमावर्ती ग्राम शिवपुर का है। जहां के बड़े झाड़ वाले पट्टा प्राप्त भूमि पर राजस्व अमले द्वारा हेरफेर किया गया है और जिसमे निजी ग्रीन चुल बायो प्लांट का निर्माण किया जा रहा है। पुष्ट सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम शिवपुर के अंतिम सीमा व बिलासपुर जिले के सीमा से लगे कोरबा जिले का करीब 10 एकड़ शासकीय बड़े झाड़ की जमीन, जिस जमीन का रकबा नंबर 541 है। सन 1975 में उक्त रकबा वाले डेढ़ एकड़ भूमि का स्थानीय ग्रामीण मनहरण पिता मुनीराम सहित अन्य ग्रामीणों को कृषि कार्य हेतु शासन की ओर से पट्टा प्रदाय किया गया था। वहीं जिस शासकीय भूमि पर वर्ष 2000 में वन विभाग द्वारा पौधारोपण का कार्य भी कराया गया था। पट्टा प्राप्त किसान मुनीराम द्वारा अपनी पट्टे वाली जमीन को कुछ वर्ष पहले रतनपुर निवासी एक व्यक्ति से बिक्रीनामा सौदा किया था। जिसके खरीद- बिक्री की रजिस्ट्री के लिए राजस्व विभाग में दस्तावेज प्रस्तुत किया गया था। जिस जमीन की रजिस्ट्री निरस्त कर एसडीएम कार्यालय पाली में सरकारी भूमि बिक्री के विरुद्ध प्रकरण दर्ज कर मामला राजस्व न्यायालय में वर्तमान लंबित है। जिस जमीन सहित लगभग 10 एकड़ जमीन पर 3 माह पहले ग्रीन चुल बायो प्लांट का निर्माण किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि करोड़ो के इस प्रोजेक्ट को लाभ दिलाने 541 रकबा के खसरा नंबर पर हेरफेर करते हुए फर्जी दस्तावेज, किसान किताब व चौहद्दी को फर्जी तरीके से तैयार कर राजस्व रिकार्ड पर शासकीय भूमि को निजी भूमि बता दिया गया है। जहां प्लांट निर्माण के शुरुआती दिनों में बड़े झाड़ की उक्त भूमि पर लगे साजा, सराई से सैकड़ो बड़े- बड़े पेड़ो को रातो- रात काटकर जमीदोज कर दिया गया, साथ ही ग्राम सरपंच से 6 एकड़ भूमि का एनओसी ले लिया गया, जिसकी जानकारी पंचों को भी नही है और लगभग 10 एकड़ भूमि को अधिग्रहण कर ग्रीन बायो प्लांट निर्माण द्रुत गति से चल रहा है। जिस निर्माण भूमि से लगे कृषि भूमि स्वामियों ने इस निर्माण को अवैध करार दिया है। उनका कहना है कि प्लांट चालू होने और उससे निकलने वाले वेस्ट से पर्यावरण पर प्रभाव तो पड़ेगा ही, साथ ही करीब 40 एकड़ की कृषि भूमि भी प्रभावित होगी। शिवपुर के ग्रामीण किसानों ने सवाल उठाते हुए कहा है कि जिस जमीन पर प्लांट का निर्माण हो रहा है वह बड़े झाड़ की जमीन है तथा जिस जमीन का गांव के कई भूमिहीन किसानों को वर्षों पूर्व कृषि पट्टा आबंटित है। ऐसे में शासकीय भूमि पर निजी निर्माण किस आधार पर हो रहा है? जानकारी के अनुसार बड़े झाड़ के जंगल भूमि का न तो रजिस्ट्री, न सीमांकन और न ही बटांकन का नियम है। वन संरक्षण अधिनियम 1080 की धारा 2 के तहत राजस्व दस्तावेजों में बड़े झाड़ के जंगल के रूप में दर्ज जमीन का आवंटन को केंद्र शासन की अनुमति के बगैर राज्य शासन के अधिकारी नही कर सकते। उच्चतम न्यायालय ने भी इसमें याचिकाएं खारिज कर दी है। लेकिन यहां पैसों की चकाचौंध के आगे सब मुनासिब हो गया, जो गंभीर मामला शायद जिला प्रशासन के संज्ञान में नही आ पाया है। शासकीय भूमि पर हेरफेर व कूटरचित तरीके अपनाकर प्लांट स्थापित किये जाने के इस संदेहास्पद मामले को लेकर शासन- प्रशासन स्तर पर निष्पक्ष और ईमानदाराना जांच की जरूरत है, क्योंकि वनभूमि में जमीन के पंजीयक बिक्री का कोई प्रावधान नही है, साथ ही राजस्व विभाग की भूमिका को भी जांच के दायरे में समाहित करना आवश्यक है। क्योंकि यह शासन- प्रशासन के नाक नीचे यह एक कूटरचना का मामला है।

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