छत्तीसगढ़

CG – भूमि अधिकार की लड़ाई,भालूपखना में किसानों की निजी जमीन पर कंपनी का अतिक्रमण, विरोध में घेराबंदी !…

भूमि अधिकार की लड़ाई,भालूपखना में किसानों की निजी जमीन पर कंपनी का अतिक्रमण, विरोध में घेराबंदी !

धनवादा प्रोजेक्ट में निजी भूमि पर अवैध रास्ता निर्माण, किसानों पर समझौते का दबाव

धरमजयगढ। रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ तहसील अंतर्गत ग्राम भालूपखना इन दिनों एक बड़े विवाद का केंद्र बना हुआ है। यहां संचालित लघु जल विद्युत परियोजना को लेकर ग्रामीणों और कंपनी प्रबंधन के बीच संघर्ष लगातार गहराता जा रहा है। धनवादा पावर एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संचालित इस प्रोजेक्ट में अब एक नया मोड़ तब आया, जब किसानों की निजी भूमि पर अवैध रूप से रास्ता बनाए जाने का मामला प्रकाश में आया। और वहीं किसानों ने बताया कि किसानों की शिकायत पर हुए राजस्व सीमांकन में यह तथ्य उजागर हुआ कि कंपनी ने अपनी अधिकृत परियोजना सीमा से बाहर जाकर ग्रामीणों की निजी जमीन पर अतिक्रमण किया है। और उस पर अस्थायी रूप से मार्ग निर्माण कर लिया है। सीमांकन के बाद तैयार पटवारी प्रतिवेदन में साफ़ तौर पर उल्लेख है कि कंपनी द्वारा प्रभावित किसानों की भूमि पर निर्माणधीन नहर के अगल बगल अस्थायी मार्ग बनाकर कब्जा जमाया गया है, और इस भूमि का उपयोग कंपनी के भारी वाहनों की आवाजाही के लिए किया जा रहा है। और किसानों ने चौंकाने वाली बात बताई है कि इस भूमि के उपयोग के एवज में किसानों को किसी प्रकार का मुआवजा अथवा भूमि हस्तांतरण का दस्तावेज भी नहीं सौंपा गया।

किसानों की प्रतिरोधात्मक पहल, घेराबंदी कर दी गई जमीन’

मिली जानकारी अनुसार सीमांकन रिपोर्ट आने के पश्चात गांव के प्रभावित किसानों ने अपनी निजी भूमि की सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए वहां घेराबंदी कर दी है। यह कदम न केवल कंपनी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है, बल्कि प्रोजेक्ट कार्यों की गति पर भी इसका सीधा असर पड़ा है। कंपनी के भारी वाहनों की आवाजाही इस रास्ते के अवरुद्ध हो जाने के कारण रुक गई है, जिससे प्रोजेक्ट क्रियान्वयन की गति पर विराम लग गया है। और वहीं स्थानीय सूत्रों की मानें तो इस घटनाक्रम के बाद अब किसानों पर उच्चस्तरीय हस्तक्षेप के माध्यम से समझौते के लिए दबाव बनाया जा रहा है। वहीं, क्षेत्रीय ग्रामीण समुदाय ने स्पष्ट रूप से प्रभावित किसानों के साथ खड़े होने का ऐलान किया है। ग्रामीणों का कहना है कि यह केवल जमीन की लड़ाई नहीं, बल्कि अस्तित्व और अधिकार की लड़ाई है।

लंबे समय से विवादों में रहा है प्रोजेक्ट’

धनवादा कंपनी की यह लघु जल विद्युत परियोजना शुरुआत से ही विवादों से घिरी रही है। वन संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन से लेकर पर्यावरणीय अनियमितताओं तक, इस परियोजना के खिलाफ अनेक बार आवाजें उठी हैं। मगर विडंबना यह है कि प्रशासन की भूमिका हमेशा ही ढुलमुल और निष्क्रिय रही है। कार्रवाई के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति की गई, और ज़मीनी हक़ीक़त को लगातार नजर अंदाज किया गया। लेकिन अब जब किसानों की निजी भूमि पर अतिक्रमण का खुला खुलासा हो चुका है, और सीमांकन रिपोर्ट में इसकी पुष्टि भी हो गई है, तब इस मामले ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। कंपनी प्रबंधन इसे एक ‘तकनीकी भूल’ करार देकर बात को रफा-दफा करने की कोशिश कर रहा है, जबकि प्रभावित किसान इसे ज़मीन की लूट करार दे रहे हैं।

जनता का समर्थन और भविष्य की राह

बता दें,इस पूरे घटनाक्रम में एक सशक्त संकेत यह भी है, कि स्थानीय जनता अब अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हो चुकी है। प्रभावित किसानों के समर्थन में गांव के अन्य ग्रामीण भी एकजुट हैं। फिलहाल घेराबंदी के चलते कंपनी प्रबंधन असहज स्थिति में है, और प्रशासनिक स्तर पर इसे संभालने के लिए दबाव की राजनीति चल रही है। बता दें,यह मामला केवल भालूपखना की सीमाओं तक सीमित नहीं, बल्कि यह पूरे क्षेत्र में चल रही भूमि अधिकारों की उपेक्षा और कॉर्पोरेट हस्तक्षेप की मानसिकता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन इस मामले में निष्पक्ष न्याय दिलाने की दिशा में कौन-से कदम उठाता है, और क्या प्रभावित किसानों को उनकी भूमि का वास्तविक अधिकार मिल पाएगा या नहीं।

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