CG – साल में एक दिन के लिए खुलता है यह रहस्यमयी मंदिर, यहां से आज तक कोई नहीं लौटा खाली हाथ, जानिए अजब-गजब मान्यता…..

कोंडागांव। सालभर के इंतजार के बाद छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में स्थिति मां लिंगेश्वरी माता का मंदिर 3 सितंबर को खुलेगा। कोंडागांव जिले के ग्राम आलोर झाटीबन की पहाड़ी गुफा पर मां लिंगेश्वरी विराजमान हैं। मां लिंगेश्वर गुफा मंदिर का द्वार साल में एक दिन के लिए खुलता है और हजारों भक्त माता के दर्शन करने आते हैं। हर साल की तरह इस साल मां लिंगेश्वरी मंदिर का द्वार बुधवार 3 सितंबर को खुलेगा। इस साल मंदिर के द्वार खुलने से दो दिन पहले सोमवार से ही श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया है। माता के दर्शन करने छत्तीसगढ़ के साथ अन्य राज्यों से भी भक्त पहुंचे हैं।
मां लिंगेश्वरी मंदिर की मान्यता है कि यहां संतान की मन्नत पूरी होती है। सोमवार की शाम 5 बजे तक प्रदेश के दुर्ग, बालोद, चारामा, कोंडागांव, बस्तर, केशकाल, सिहावा, रायपुर, कुरूद, कोयलीबेड़ा, भानपुरी सहित अन्य राज्य ओडिशा और मध्यप्रदेश व अन्य प्रदेशों के करीब 300 से अधिक श्रद्धालु पहुंच चुके थे। अभी से लोग मंदिर के रास्ते पर चटाई बिछाकर बैठ गए हैं। सभी मंदिर खुलने का इंतजार कर रहे हैं।
प्रशासन की तैयारी पूरी, 300 से अधिक जवान रहेंगे तैनात
बुधवार की सुबह मंदिर समिति के पुजारी विधिवत पूजा-अर्चना कर मंदिर का द्वार खोलेंगे। इसके बाद भक्त माता के दर्शन कर पाएंगे। मंदिर समिति व जिला प्रशासन सारी तैयारियां पूरी कर चुके हैं। वहीं सुरक्षा के तौर पर 300 से अधिक पुलिस जवान तैनात हैं। समिति से सेवा दल में 250 सदस्य शामिल हैं। चार जगहों पर वाहनों की पार्किंग की सुविधा भी रखी गई है। साथ ही श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य सेवा के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम भी मौके पर उपस्थित है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा भंडारे का भी आयोजन की तैयारी की जा रही है, ताकि बुधवार को भक्तों की तकलीफ न हो।
लिंगेश्वरी माता मंदिर खास तौर पर संतान प्राप्ति की आस्था से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि यहां आने वाले दंपति को प्रसाद के रूप में खीरा दिया जाता है। इसे पति-पत्नी मिलकर नाखून से दो भागों में बांटकर ग्रहण करते हैं। ऐसा करने से संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है।
माता लिंगेश्वरी की गुफा को बंद करते समय द्वार पर रेत बिछाई जाती है। अगले साल जब गुफा खोली जाती है तो उस रेत पर बने पदचिह्नों को देखकर पुजारी भविष्यवाणी करते हैं। कमल के निशान समृद्धि का संकेत माने जाते हैं, जबकि बाघ या बिल्ली के निशान विपत्ति और भय का प्रतीक माने जाते हैं। इसी परंपरा के आधार पर पूरे क्षेत्र का वार्षिक कैलेंडर तय होता है।
कहा जाता है कि बहुत समय पहले एक शिकारी खरगोश का पीछा करते-करते इसी गुफा तक पहुंचा। खरगोश वहां अचानक गायब हो गया और उसी जगह पत्थर के रूप में लिंग प्रकट हुआ। बाद में माता ने स्वप्न में आदेश दिया कि साल में केवल एक दिन मेरी पूजा की जाएगी। तभी से इस परंपरा की शुरुआत हुई और आज तक यह मान्यता कायम है।