CG – कोरबा जिले के पाली सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नदारद और स्वास्थ्य अमले की अनदेखी ने ले ली सर्पदंश पीड़िता की जान….! स्वास्थ्य व्यवस्था पर उठे गंभीर सवाल पढ़े पूरी ख़बर
0 पुत्री के सदैव खो जाने के गम में डूबे परिजन शासन- प्रशासन से मांग रहे जवाब.
कोरबा//जिले के पाली शासकीय अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं में गंभीर लापरवाही का दुखद मामला सामने आया है। जिसमे डॉक्टर व स्वास्थ्य अमले की घोर अनदेखी व लापरवाही के परिणामस्वरूप सर्पदंश पीड़िता 16 वर्षीय एक किशोरी बालिका की उपचार के अभाव से मौत हो गई। जिससे घर- परिवार व गांव में मातम छा गया है। यह दुखद घटना न सिर्फ पाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की बदहाल व्यवस्था को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे एक लापरवाह तंत्र ने मासूम की जान छीन ली। स्वास्थ्य सेवाओं में ऐसी लुंज- पुंज व्यवस्था को लेकर दुखी परिजन शासन- प्रशासन से जवाब चाहते है।
पाली विकासखण्ड के ग्राम चटुवाभौना में निवासरत एक घर में दुखों का पहाड़ उस वक्त टूट पड़ा जब घर की 16 वर्षीय पुत्री अकाल मौत के मुंह मे समा गई। प्राप्त जानकारी के मुताबित यहां के निवासी कांति कुमार की 16 वर्षीय पुत्री शालिनी कुमारी को बीते शुक्र- शनिवार की मध्य रात्रि करीब 3 बजे जहरीले सांप ने डस लिया। परिजन उसे तत्काल इलाज के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पाली लेकर पहुँचे। लेकिन वहां न तो कोई डॉक्टर मौजूद था और न ही इमरजेंसी सेवाएं सक्रिय थी। परिजन ने प्रभारी खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ. अनिल सराफ को फोन लगाया तब उन्होंने अस्पताल पहुँचने की बात कही लेकिन काफी देर बाद भी नही पहुँचे। दूसरी बार फोन लगाने पर घण्टी जाती रही लेकिन कोई जवाब नही मिला। परिजन ने उपस्थित नर्सों से उपचार की मिन्नतें की, पर उन्होंने डॉक्टर के आने पश्चात इलाज करने की बात कही। ऐसे में घण्टे बीत जाने पर परिजन सर्पदंश पीड़िता बालिका को पाली के एक निजी अस्पताल में लेकर गए, जहां से उसे बिलासपुर रेफर कर दिया गया, और इस दौरान बीच रास्ते मे बालिका की मौत हो गई। मृतिका के परिजनों की माने तो सांप काटने के आधे घण्टे में पीड़िता को पाली शासकीय अस्पताल पहुँचाया पर वहां ड्यूटी में कोई डॉक्टर उपस्थित नही था। डॉक्टर अनिल सराफ को फोन के माध्यम से घटना से अवगत कराया गया, फिर भी वे इलाज करने नही पहुँचे। वहीं नर्सों ने भी उपचार करने में आनाकानी की। उचित उपचार की आस में सर्पदंश पीड़िता पुत्री को काफी देर तक सरकारी अस्पताल में रखे, लेकिन जब उपचार को लेकर किसी ने ध्यान नही दिया तब निजी अस्पताल लेकर गए। तबतक बेटी की हालत काफी बिगड़ चुकी थी। वहां से बिलासपुर सिम्स रेफर किया गया। जिसके कुछ देर बाद रास्ते मे उसने दम तोड़ दिया। डॉक्टरों और स्वास्थ्य अमले की अनदेखी व लापरवाही के कारण पुत्री की मौत के बाद परिजन बेहद आक्रोशित है और उनका आरोप है, हम समय पर सरकारी अस्पताल पहुँचे थे, अगर इलाज तुरंत मिल जाता तो शायद हमारी बच्ची की जान बच जाती। यह पहली बार नही है जब पाली सीएचसी में डॉक्टर नदारद मिले हो। इससे पहले भी अस्पताल प्रबंधन की निष्क्रियता व चिकित्सकों, नर्सों की लापरवाही, मनमानी से कइयों जाने जा चुकी है। हालांकि अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब सर्पदंश पीड़िता बालिका को समय पर अस्पताल लाया गया तो उसे तत्काल एंटी स्नैक वेमन इंजेक्शन क्यों नही लगाया गया? क्या डॉक्टर को ही यह इंजेक्शन लगाने का अधिकार है नर्सों को नही? यदि नर्सों को है तो डॉक्टर के आने का इंतजार क्यों किया गया? अगर अस्पताल में सर्पदंश के गंभीर मामले का तत्काल उपचार संभव नही था तो इसकी जानकारी से परिजन को अवगत क्यों नही कराया गया या जिला अस्पताल रेफर क्यों नही किया गया? बहरहाल ये सारे सवाल सरकारी अस्पताल के अव्यवस्था और मनमानी की ओर इंगित करता है और सवालों को लेकर पुत्री के सदैव खो जाने के गम में डूबे परिजन शासन- प्रशासन से उक्त ज्वलंत सवालों का जवाब चाहते है।