मध्यप्रदेश

भक्त प्रहलाद की कथा से यह समझना चाहिए कि भक्त का कोई बाल भी बांका नहीं कर पाता है – बाबा उमाकान्त महाराज

भक्त प्रहलाद की कथा से यह समझना चाहिए कि भक्त का कोई बाल भी बांका नहीं कर पाता है – बाबा उमाकान्त महाराज

होली के दिन कर्मों को जलाया जाए, यही सन्त मत की होली होती है

उज्जैन। उज्जैन बाबा उमाकान्त महाराज ने बताया कि पहले के समय में त्यौहारों पर लोग महात्माओं के आश्रमों पर जाते थे और समझते थे कि त्यौहार का मतलब क्या होता है? त्यौहार में क्या किया जाता है? और फिर जब उनके बताए अनुसार त्यौहार मनाते थे, तो पूरा लाभ मिलता था। होलिका दहन के दिन लोग होली जलाएंगे। भक्त प्रहलाद, हिरण्य कश्यप और होलिका की कथा से यह समझना चाहिए कि भक्त का कोई बाल भी बांका नहीं कर पाता है। और भक्त जब भक्ति करता है, तब कहते हैं भगवान का हाथ उसके पैरों के नीचे हुआ करता है, ताकि वो गिरने, लुढ़कने ना पावे, उसको कुछ लगने ना पावे। तो भगवान उसकी बराबर सम्भाल करता रहता है। तो भक्त कौन थे? प्रहलाद थे। प्रहलाद को कैसी कैसी यातना मिली, लेकिन बचते चले गए, और होलिका जो उसकी बहन थी, बोली हम वरदानी चुनरी ओढ कर के, प्रहलाद को गोदी में लेकर के अग्नि में बैठ जाएंगे और हम तो जलेंगे नहीं, प्रहलाद जल जाएंगे। अब प्रहलाद तो जले नहीं और वो जल करके खत्म हो गई। तो भक्त की हमेशा विजय होती है। आपको भी भक्ति सीखना चाहिए, भक्ति अपने अंदर लाना चाहिए।

सतयुग के समय सब निष्कर्म थे

सन्त मत की होली ये होती है कि होली के दिन कर्मों को जलाया जाए। कर्म बड़ी ही प्रमुख चीज है, यह हर मनुष्य के साथ लगा हुआ है। पहले जब इस सृष्टि की रचना हुई तब सतयुग था, तो उस समय पर सब निष्कर्म थे, कोई किसी भी प्रकार के कर्मों के चक्कर में नहीं था; ना ही अच्छा कर्म और ना बुरा कर्म, कर्म विहीन थे सब लोग। लेकिन बाद में कर्म बनाया, किसने बनाया? जिनका ये देश है (काल भगवान), जिन्होंने ये मनुष्य शरीर दिया है, जिन्होंने ये सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग बनाया है, उन्होंने ये कर्म बनाया। क्यों बनाया? क्योंकि कहा है “सतयुग योगी सब विज्ञानी, करि हरि ध्यान तरहिं भव प्राणी” तो सतयुग में ध्यान लगाते ही लोग पार हो जाते थे। उस समय मनुष्य की उम्र एक लाख वर्ष की होती थी, और उम्र जब पूरी होती थी तो सब लोग अपने घर, अपने देश, अपने मालिक (प्रभु) के पास, जहां से हम सब की जीवात्माएं आई हैं, वहां पहुंच जाते थे (जन्म – मरण से छुटकारा मिल जाता था)। और वहीं पहुंचने के लिए हम सबको ये मनुष्य शरीर मिला है। सन्त इस धरती पर हमेशा रहते हैं। गोस्वामी जी महाराज ने कहा “कलियुग योग यज्ञ नहीं जाना, एक आधार नाम गुण गाना”। नाम की डोर को पकड लो तो भवसागर से पार हो जाओगे। अब ये नाम मिलेगा कहां? तो गोस्वामी जी महाराज ने ये भी लिखा कि “नाम रहा संतन आधीना, सन्त बिना कोई नाम ना चिन्हा” तो बगैर सन्तों के नाम की पहचान नहीं होती है।

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